Pitru Paksha 2025: 7 सितंबर से 21 सितंबर तक चलेगा पितृपक्ष

By डॉ. अनीष व्यास | Sep 03, 2025

देवी-देवताओं के अलावा पितर भी हमारे जीवन के लिए, मंगलकार्यों के लिए बहुत जरूरी हैं। हमारे ये पूर्वज पितृ लोक में वास करते हैं और श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों के लिए वे धरती पर आते हैं। इसीलिए उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण, अर्पण और दान देने की परंपरा है। ऐसा करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और उन्हें मोक्ष मिलता है। वह हमें आशीर्वाद देकर जाते हैं। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि इस बार पितृ पक्ष का आरंभ 7 सितंबर से हो रहा है और 21 सितंबर तक चलेगा। लेकिन पूर्णिमा का श्राद्ध 7 सितंबर को होगा और उसी दिन साल का अंतिम चंद्र ग्रहण भी लगेगा। भारत में चंद्र ग्रहण दिखाई देगा इस कारण सूतक लगेगा। ये चंद्र ग्रहण भारत में दिखेगा। यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक और अंटार्कटिका में भी यह दिखेगा। पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण आदि क्रम किए जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पितर लोक से पितर धरती लोक पर आते हैं। इसलिए इस दौरान उनके नाम से पूजा पाठ करना उनकी आत्मा को शांति देता है। साथ ही उन्हें मोक्ष मिलता है।  पितृपक्ष जिसे श्राद्ध भी कहा जाता है अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। पितरों की पूजा और तर्पण आदि कार्यों के लिए श्राद्ध पक्ष बहुत ही उत्तम माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितृ लोक से धरती लोक पर आते हैं। इसलिए इन दिनों में उनके श्राद्ध, तर्पण, और पिंडदान आदि करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध आदि करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि पितृपक्ष पितरों को समर्पित है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। पंचांग के अनुसार पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से होती है और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर इसका समापन होता है। पितृपक्ष यानी श्राद्ध का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। पितृपक्ष में पितरों को तर्पण देने और श्राद्ध कर्म करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान न केवल पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है। पितरों की कृपा नहीं हो, तो जातक की कुंडली में पितृ दोष लगता है। ऐसे लोगों का जीवन दुखों और परेशानियों से भर जाता है। घर परिवार में सुख-शांति नहीं रहती है। आकस्मिक दुर्घटनाएं होती हैं। वैवाहिक जीवन में भी परेशानियां होने लगती हैं। लिहाजा, पितरों की शांति के लिए श्राद्धपक्ष के ये 15 दिन बहुत विशेष होते हैं।

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7 सितंबर को दूसरा चंद्र ग्रहण (पूर्ण चंद्र ग्रहण)

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि वर्ष का दूसरा चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025 को भाद्रपद मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन लगेगा। यह रात्रि 21:57 बजे शुरू होकर 1:26 बजे तक प्रभावी रहेगा और भारत समेत संपूर्ण एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, न्यूजीलैंड, पश्चिमी और उत्तरी अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका के पूर्वी क्षेत्रों में दिखाई देगा। यह चंद्र ग्रहण भारत में भी नजर आएगा इसलिए इसका सूतक काल मान्य होगा और धार्मिक दृष्टि से इसका महत्व होगा। इस ग्रहण का सूतक काल 7 सितंबर को दोपहर 12:57 बजे से आरंभ होगा और ग्रहण की समाप्ति तक रहेगा। 

 

भारत में दिखाई देगा चंद्र ग्रहण

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि यह चंद्र ग्रहण मुख्य रूप से भारत सहित एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अफ्रीका, पश्चिमी और उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में भी देखा जा सकेगा। यह पूर्ण चंद्रग्रहण भारत के सभी हिस्सों से दिखाई देगा। पूरे देश में ग्रहण की शुरुआत से लेकर अंत तक उपच्छाया सहित ग्रहण के सभी चरण दिखेंगे। 


दोपहर में करना चाहिए तर्पण-अर्पण

कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि देवी-देवताओं की पूजा-पाठ सुबह और शाम को की जाती है। पितरों के लिए दोपहर का समय होता है, दोपहर में करीब 12:00 बजे श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। सुबह नित्यकर्म और स्नान आदि के बाद पितरों का तर्पण करना चाहिए।

 

भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास बता रहे है कब है कौनसा श्राद्ध।

श्राद्ध की तिथियां

7 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध

8 सितंबर- प्रतिपदा श्राद्ध

9 सितंबर- द्वितीया श्राद्ध

10 सितंबर- तृतीया श्राद्ध, चतुर्थी श्राद्ध

11 सितंबर- पंचमी श्राद्ध

12 सितंबर- षष्ठी श्राद्ध 

13 सितंबर- सप्तमी श्राद्ध

14 सितंबर- अष्टमी श्राद्ध

15 सितंबर- नवमी श्राद्ध

16 सितंबर- दशमी श्राद्ध

17 सितंबर- एकादशी श्राद्ध

18 सितंबर- द्वादशी श्राद्ध

19 सितंबर- त्रयोदशी श्राद्ध

20 सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध

21 सितंबर- सर्व पितृ अमावस्या

22 सितंबर- मातामह नान श्राद्ध


- डा. अनीष व्यास

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक

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