By अभिनय आकाश | Apr 28, 2020
कोरोना वायरस के इस दौर में महामारी विशेषज्ञों (एपिडेमोलॉजिस्ट) की मांग में काफी ज्यादा बढ़ी है और राज्य सरकारें इसकी नियुक्ती बढ़-चढ़कर कर रही हैं। लेकिन ज्यादातर राज्य सरकार की ओर से जो विज्ञापन दिए जा रहे हैं उसमें एक साल का अनुबंध और उसके लिए सिर्फ 33 हजार रूपए भुगतान किए जाने की बात कही गई है। लेकिन महामारी विशेषज्ञों के हिसाब से ये राशि बेहद की कम है।
ऐसा लग रहा है कि इसे महज केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी निर्देश के तहत खानापूर्ति के लिए किया जा रहा है। बता दे कि ने शुरुआती महीने में एक पत्र जारी कर राज्य सरकारों को महामारी विशेषज्ञों के रिक्त स्थानों को जल्द से जल्द भरे जाने की बात कही थी। जिसके बाद उसी पत्र की औपचारिकता को पूरी करने के लिए राज्य सरकारों ने विज्ञापन प्रकाशित करवा दिए। महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने हालांकि हेल्थ सिस्टम कुछ हद तक बेहतर है लेकिन ज्यादातर राज्यों में ऐसा नहीं है। कर्नाटर राज्य स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सोसायटी जो कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का ही एक पार्ट है ने राज्य महामारी विशेषज्ञ के लिए एक विज्ञापन प्रकाशित किया था जिसके अंतर्गत 33 हजार 600 रूपए देने की बात कही गई है। मध्य प्रदेश ने भी महामारी विशेषज्ञों की 22 रिक्तियों के लिए एक विज्ञापन प्रकाशित किया था जिसके लिए आवेदन की तारीख 11 अप्रैल तक की थी।
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कम वेतन सरकार के दृ्ष्टिकोण को दर्शाता है
राज्यों द्वारा जारी किए गए विशिष्ट विज्ञापनों में कहा गया है कि नियुक्ति "विशुद्ध रूप से अनुबंध के आधार पर एक वर्ष की अवधि के लिए है और इसका रिनुअल संतोषजनक प्रदर्शन और भारत सरकार के तहत ही तय होगा। इसने कहा कि भविष्य में नियमित पदों पर अवशोषण के लिए किसी भी दावे को नहीं माना जाएगा। इसी तरह के विज्ञापन हिमाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़ और बिहार द्वारा अन्य राज्यों में रखे गए थे। इसमें भी दी जाने वाली सैलरी 33,600 रुपये से 40,000 रुपये प्रति माह थी। बहरहाल, कम वेतन सरकार के नजरिए का पता चलता है कि सरकार किस दृष्टिकोण के तहत महज खानापूर्ति के लिए ये काम कर रही है। ये केंद्र सरकार के आदेश के तहत की गई महज औपचारिकता के तहत बेमन ढंग से इसकी नियुक्ति का फैसला किया।