कंप्यूटर सा जीवन (कविता)

By आर्य विकास | Aug 07, 2020

'कंप्यूटर सा जीवन' कविता में कवि कल्पना करता है कि जीवन एक कंप्यूटर की तरह हो जाएं और वह कंप्यूटर की भांति ही जीवन व्यतीत करें। इस कविता के माध्यम से कवि ने मानव जीवन को कंप्यूटर की तरह कार्य करने की स्थिति को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। 


सोचता हूँ कंप्यूटर सा जीवन व्यतीत करूँ,

स्वयं का हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर अपडेट करूँ।

ऊर्जा मिल जाये वृद्धजनों से आशीर्वाद में,

स्विच ऐसा मैं संस्कारों का ऑन करूँ।

रैम सी चिपकी हो हृदय से मेरे संगिनी,

साथ मिलकर मैं उसके सिस्टम बूट करूँ।

सोचता हूँ...


न कर पाये दिल में आसानी से लॉगिन,

मैं पासवर्ड कोई ऐसा रिसेट करूं।

आजकल वायरस बहुत है आस-पास मेरे,

सोचता हूँ एंटीवायरस भी ऑप्टूडेट करूँ।

फेंक दूँ बुरे विचारों को रिसायकलबिन में,

बार-बार खुद को ऐसे रिफ्रेश करूँ।

सोचता हूँ...


भर दूँ रिश्तों के एप्लीकेशन से इसे,

मालवेयर कभी न इनस्टॉल करूं।

कूकीज करता रहूँ नित् प्रायः साफ,

प्रोसेसर पे कभी न ओवरलोड करूं।

हिस्से बना लूँ दिल की हार्डडिस्क में कई,

कुछ डाटा उनमें प्राइवेट भी सेव करूँ।

सोचता हूँ...


जुड़ जाऊँ नेटवर्क से अपने यारों के,

फिर चैटिंग उनसे दिन रात करूं।

एक क्लिक पर हो जाये सब काम मेरे,

मैक्रो मैं कुछ ऐसा ईजाद करूं।

मेलोडी सॉन्ग बजते रहे बैकग्राउंड में,

आनन्द जीवन में ऐसा प्राप्त करूँ।

सोचता हूँ...


आर्य विकास

पू० मा० वि० शेखपुर लाला, नजीबाबाद, बिजनौर

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