कोरोना काल (कविता)

By रवि चतुर्वेदी | Jul 10, 2021

कवि ने इस समय फैली महामारी कोरोना वायरस को इस कविता के माध्यम यह बताना की कोशिश की है कि पहले वाला समय कब आएगा। लोगों से मिलना, हाथ मिलाना और गले से लगना जो लोगों की दिनचर्या हुआ करती थी। कवि रवि चतुर्वेदी ने इस कविता में बताया है कि समय बहुत गंभीर है और विश्व पटल पर खतरा है। कविता में कवि ने कहा कि हम सबसे आगे आने चाहिए और मिलकर इस समस्या को हराना चाहिए।


बीत रहे हैं ये दिन जैसे बीत रहे हों युगों के जैसे।

कैसे दिन ये आ गए हैं, युगों युगों पर छा गए हैं।


लोगों से मिलना, बातें करना, हाथ मिलाना, गले से लगना, 

जो सबकी दिनचर्या थी, अब उनसे ही परहेज है करना।


सब घर में हैं बंद अपने, घर से ना कोई बाहर है।

जो घर से बाहर को गया, समझो वो दुनिया से गया।


घर से निकलना, काम पे जाना, मेहनत करना, लाभ उठाना,

जो सबका अधिकार है, अब उनको ही विराम है देना।


गंभीर समय है देश का यह, विश्व पटल पर खतरा है।

परिस्थिति प्रतिकूल है यह, ना कोई सहायक है।


देश बढ़ाना, नाम कमाना, सपनों को सार्थक करना, 

यह संभव कैसे होगा, जब मानव ही मानव से भागे।


मानव का ना दोष है कोई, मानव ही सबका दोषी है।

जो करना नहीं वो करता है, जो करना है वो कैसे करेगा।


आओ मिलकर इसे हराये, जीत का हम डंका बजायें।

जो भी मानव के हित में है, वो सारे हम काज सवारें।।


- रवि चतुर्वेदी

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