बसंत पंचमी पर लावणी छंद (गीत)

By प्रवीण त्रिपाठी | Jan 30, 2020

गीतकार प्रवीण त्रिपाठी ने बसंत पचंमी के त्योहार को सुदंर ढंग से गीत के माध्यम में प्रस्तुत किया है। गीतकार ने बसंत पंचमी के पर्व का बहुत अच्छा वर्णन किया है। गीतकार ने मौसम और पुष्पों के बारे में इस गीत में बताया और इस लावणी छंदाधारित गीत को बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है।

 

रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में।

शीतल मंद समीर प्रवाहित, हर्ष भरे मन आँगन में।

 

मंजरियों की मादक खुशबू, मन मतवाला करती है।

तरुओं में पल्लव आने से, अनुपम छटा बिखरती है।

मस्त मगन भँवरे भी गुंजन, करते नित-प्रति कुंजन में।

रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में।1

 

रंगों का मौसम फिर आया, बाल-वृद्ध हिय हुलस उठे।

प्रमुदित चित्त कराये मौसम, सबके तनमन विहँस उठे।

रँग जायेंगे रँग में फिर से, आस जगी यह जन-जन में।

रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में।2

 

ढोल मंजीरों की थापों पर, फाग सभी मिल गायेंगे।

झूमें नाचें पूर्ण मगन हो, सबके मन हर्षायेंगे।

भर उमंग में हुए तरंगित, लहर उठेगी तन-मन में।

रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में।3

 

करे प्रतीक्षा हर प्रेमी अब, रंगों के बादल छाएं।

मधुमासी सुरभित बयार में, प्रेम कोंपलें उग आएं।

प्रणयबद्ध होने को आतुर, प्रीत निखरती यौवन में।

रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में।4

 

रंगीला बासंती मौसम, स्वर्ग बनाये निर्जन में।

रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं, आज प्रकृति के उपवन में।

 

प्रवीण त्रिपाठी

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