यौवन जब यह भस्म होगा (कविता)

By स्मृति तिवारी 'मुक्त ईहा' | Apr 03, 2018

हिन्दी काव्य मंच 'हिन्दी काव्य संगम' की ओर से प्रेषित कविता 'यौवन जब यह भस्म होगा' में लेखिका स्मृति तिवारी ने अपने मन के उद्गार व्यक्त किये हैं।

 

हाड़ मांस जब खत्म होगा,

यौवन जब यह भस्म होगा।

रगों का साहस पिघल जब बह जायेगा,

थकी आत्मा को कैसे वैतरणी पार लगाओगे?

 

शोहरत का न दम होगा,

न ही मलमल का कफ़न होगा।

पूंजी का रुबाब नहीं चल पायेगा,

इन्द्रियां शिथिल होंगी तब केवल पछताओगे।

 

उत्पत्ति-विनाश का रथ होगा,

कंटक सज्जित इक पथ होगा।

नग्न पगों से आगे बढ़ा न जायेगा,

क्रंदन करते मार्ग में तुम नाहक ही चिल्लाओगे।

 

तेरा बही खाता खुला होगा,

जहां पाप-पुण्य जुड़ा होगा।

कोई कर्म सुधार नहीं हो पायेगा,

यमदूतों के गर्जन से मौन खड़े थरथराओगे।

 

इसलिये दिव्य चक्षु खोलो तुम,

सत्कर्म करो सच बोलो तुम।

अंतिम श्वास प्रस्थान के पूर्व तभी,

जीवन उद्देश्य की नौका पार लगाओगे।

 

विस्मृत न करना ये अंतिम सत्य,

परमात्मा से न कुछ छुपा पाओगे।

क्या अंतर आत्मा को बतलाओगे,

थकी आत्मा को कैसे वैतरणी पार लगाओगे??

 

स्मृति तिवारी 'मुक्त ईहा'

सतना, मध्य प्रदेश

 

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