By अभिनय आकाश | Sep 02, 2025
राष्ट्रपति की मैसूर यात्रा के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच भाषा पर एक दोस्ताना बातचीत ने ध्यान खींचा। यह बातचीत अखिल भारतीय वाणी एवं श्रवण संस्थान (एआईआईएसएच) के हीरक जयंती समारोह में हुई, जहाँ राष्ट्रपति मुख्य अतिथि थे।
राष्ट्रपति का स्वागत करते हुए, सिद्धारमैया ने मुस्कुराते हुए पूछा कि क्या आप कन्नड़ जानते हैं? हँसते हुए कहा कि मैं कन्नड़ बोलता हूँ। इस सवाल पर दर्शकों में ठहाके गूंज उठे। अपने जवाब में, राष्ट्रपति मुर्मू ने स्वीकार किया कि कन्नड़ उनकी मातृभाषा नहीं है, लेकिन उन्होंने भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के प्रति गहरी प्रशंसा व्यक्त की। उन्होंने कहा, "मैं माननीय मुख्यमंत्री को बताना चाहूँगी कि हालाँकि कन्नड़ मेरी मातृभाषा नहीं है, फिर भी मैं अपने देश की सभी भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का बहुत सम्मान करती हूँ। मैं उनमें से प्रत्येक का बहुत सम्मान करती हूँ।
उन्होंने लोगों को अपनी मूल भाषाओं और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि मैं धीरे-धीरे कन्नड़ सीखने का प्रयास ज़रूर करूँगी। राष्ट्रपति के इस भाषण पर दर्शकों ने तालियाँ बजाईं। यह बातचीत ऐसे समय में हुई है जब कर्नाटक में भाषा संबंधी बहस एक बार फिर सुर्खियाँ बटोर रही है। इस साल की शुरुआत में सिद्धारमैया ने दैनिक जीवन में कन्नड़ के व्यापक उपयोग का आह्वान करते हुए कहा था कि कर्नाटक में रहने वाले सभी लोगों को यह भाषा बोलनी सीखनी चाहिए। उनके इस बयान पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और राज्य में भाषा नीतियों पर नए सिरे से बहस शुरू कर दी।
कर्नाटक में भाषा संबंधी मुद्दे लंबे समय से विवाद का विषय रहे हैं। कन्नड़ समर्थक समूह सरकारी, शिक्षा और सार्वजनिक साइनबोर्डों में कन्नड़ के अनिवार्य उपयोग की वकालत करते रहे हैं। दिसंबर 2023 में, कर्नाटक रक्षण वेदिके (केआरवी) ने बेंगलुरु में विरोध प्रदर्शन किया और बीबीएमपी के उस नियम को लागू करने की मांग की, जिसके तहत व्यावसायिक साइनबोर्डों पर 60% पाठ कन्नड़ में होना अनिवार्य है। स्थानीय ऑटो चालकों और गैर-कन्नड़ भाषी निवासियों या पर्यटकों के बीच भी इसी तरह के विवाद सामने आए हैं।