By अभिनय आकाश | Aug 22, 2025
"मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया" मजरूह सुल्तानपुरी की ये लाइनें वर्तमान राजनीति पर बिल्कुल फिट बैठती हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा लिखी गई किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में उन्होंने एक किस्से का जिक्र किया है जब महात्मा गांधी दिसंबर 1914 के अंत में अवतरित होती है और उसके बाद से देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आता है। इलीट लोगों के क्लब लगने वाली कांग्रेस पार्टी एक मॉस आर्गनाइजेशन में बदल जाती है। जवाहरल लाल नेहरू ने गांधी जी का जिक्र करते हुए इसमें बताया है कि गांधी जी ने सबसे बड़ा बदलाव जो भारतीय राजनीति में किया वो ये था कि उन्होंने लोगों के मन में जो खौफ था। अंग्रेजी साम्राज्य को लेकर जो डर था। गांधी ने मनोवैज्ञानिक स्तर पर और लोगों के मानस में एक बड़ा बदलाव किया। अंग्रेजों के डर को खत्म कर दिया। उन्होंने लोगों को अभय की बात सिखाई। अभय मतलब जिसको भय नहीं है। जुलाई 2024 को राहुल गांधी ने देश की संसद में खड़े होकर राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान अभय मुद्रा का बार बार जिक्र किया। शिव की तस्वीर में और कांग्रेस का चुनाव चिह्न अभय मुद्रा है और ये निडर रहने की बात करता है। इसी दौरान राहुल ने कहा कि इस्लाम में दोनों हाथों से दुआ करना भी एक तरह की अभय मुद्रा है। वैसे तो देश में गौतमबुद्ध, शंकराचार्य, गुरुनानक से लेकर महात्मा गांधी और विनोबा भावे तक की पदयात्रा का अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है। महात्मा गांधी जब चला करते थे तो लोग जुड़ते चले जाते थे। वो कारवां इतना बड़ा हुआ करता था कि परिवर्तन की दिशा इस देश को आजादी में ले गई। इससे इतर राजनीतिक दलों के नेताओँ की तरफ से भी पदयात्रा निकाली गई। यात्राएं इस देश की भीतर बहुत हुईं हैं और हर यात्रा का कोई न कोई प्रतिफल उस राजनीतिक दल या नेता के भीतर जरूर आया है। देश में अब तक कई सियासी यात्राएं हुई है, उनमें से कुछ ने राष्ट्रीय या राज्य सियासत पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। लोगों ने उनसे संवाद बनाया। उनके अपने सरोकार लोगों से जुड़े और एक संवाद की स्थिति ने सत्ता तक भी पहुंचाया है।
आज़ादी की लड़ाई से आजादी के बाद तक विभिन्न दलों की लोगों तक पहुंच बनाने की कोशिश कहीं न कहीं रंग लाती दिखी है। अब राहुल गांधी एक बार फिर से यात्रा पर निकले हैं। अब राहुल गांधी वोट चोरी के सवाल को खड़ा करके बिहार के सासाराम से निकले हैं। 17 अगस्त शुरू हुई यह यात्रा 16 दिनों में बिहार के 20 से ज़्यादा ज़िलों से होकर गुज़रेगी। राहुल इस दौरान 1300 किमी की दूरी तय करेंगे। राहुल की वोट अधिकार यात्रा उनकी अब तक की पांचवी बड़ी यात्रा होगी। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली। बर्फ औऱ ठंड में टी शर्ट में उनका खड़े होना एक पहचान बन गई थी। उसके बाद उन्होंने मणिपुर से लेकर मुंबई तक और उसका नतीजा लोकसभा के चुनाव में दिखा। कांग्रेस की सीटें बढ़ीं। बीजेपी की सीटें कम हुईं। लेकिन अब राहुल गांधी के लिए शायद सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा शुरू हो रही है। पहले की राहुल गांधी की यात्रा को लेकर लोगों के मन में बहुत ज्यादा अपेक्षा नहीं थी। न कोई बहुत ज्यादा उम्मीद लगाए बैठा था। लोगों को लग रहा था कि राहुल कुछ नहीं कर रहे हैं तो यात्रा पर निकले हैं। लेकिन दोनों यात्राओं से राहुल गांधी की छवि बदली। कांग्रेस और उससे भी कहीं ज्यादा उनके सहयोगियों को फायदा हुआ। लोकसभा चुनाव में नतीजा भी नजर आया।
पिछले दिनों नेता विपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी से अपेक्षाएं बढ़ गई हैं। राहुल गांधी खास हमलावर तेवर दिखा रहे हैं। सरकार को लगातार कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे है। वोट चोरी को सही मायनों में उन्होंने एक अखिल भारतीय मुद्दे में तब्दील कर दिया है। ऐसे में ये यात्रा क्या रंग लाती है। कांग्रेस और बिहार के गठबंधन को विधानसभा चुनाव में कैसे फायदा पहुंचाती है। 80 सीटों वाले यूपी, 48 सीटों वाले महाराष्ट्र और 42 सीटों वाले बंगाल में बीजेपी गिरी। लेकिन 40 सीटों वाले बिहार ने मोदी को बचा लिया। अगला युद्ध उसी बैटल ग्राउंड में है। जहां 90 के दशक के बाद कांग्रेस कभी उठ नहीं सकी है। राहुल जहां मोदी के साथ रेस लगाने के लिए उतरे हैं वहां की पॉ़लिटिकल पिक्चर पर थोड़ा नजर डालें तो । राहुल गांधी की बिहार यात्रा का मकसद बहुजन समाज को आकर्षित करना और नीतीश कुमार की जदयू व चिराग पासवान की लोजपा के वोट बैंक में सेंध लगाना है। राहुल ने जाति जनगणना, आरक्षण की सीमा हटाने, अत्याचारों को उजागर करने और धर्मनिरपेक्षता को मिलाकर एक नई पहचान गढ़ी है। वो मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी और दीपंकर भट्टाचार्य की सीपीआईएमएल की लाइन पर हैं।
राजनीति में अपने शुरुआती दिनों में भी राहुल ने पश्चिम यूपी के भट्टा-पारसौल में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ पदयात्रा की थी। उनकी यात्रा को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के लिए एक और चुनौती के रूप में देखा गया था। राज्य सरकार ने युवा सांसद को 9 जुलाई को पड़ोसी अलीगढ़ जिले में किसानों की महापंचायत की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, जो जबरन भूमि अधिग्रहण को लेकर इसी तरह के आक्रोश का सामना कर रहे थे। मंदिर में राहुल ने ग्रामीणों से कहा था कि मैंने आज तक एक भी किसान नहीं देखा जो विकास के खिलाफ हो। मगर विकास के नाम पर आपकी जमीन चोरी हो रही है।
किसानों के मुद्दों को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने देवरिया से दिल्ली तक 'किसान यात्रा' की। 30 दिनों के दौरान वह लगभग एक महीने में 2,500 किलोमीटर की दूरी तय किया था। राहुल देवरिया के पंचलारी गांव से अपनी यात्रा की शुरुआत की थी। यात्रा के दौरान पार्टी वर्कर्स घर-घर जाकर घरों के मुखिया से किसानों की समस्याओं के बारे में चर्चा की थी। यात्रा के लिए 250 मिनी रथ तैयार किए गए। तब यूपी में कांग्रेस ने नारा दिया था कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ...समर्थन मूल्य का करो हिसाब।
2015 में उन्होंने केदारनाथ की यात्रा की। इसका मकसद यह बताना था कि 2013 में आई आपदा के बाद स्थितियां सामान्य हो चुकी हैं। पैदल चलकर केदार नाथ मंदिर पहुँचे राहुल गाँधी ने कहा था कि यहाँ आकर मुझे आग जैसी शक्ति मिली है। राहुल ने कहा कि मैं मंदिर में गया, मैंने कुछ मांगा नहीं, लेकिन जब मैं मंदिर के भीतर गया तो मुझे आग जैसी शक्ति मिली। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जब ये आपदा आई तो जो यहाँ अफ़सर काम करते हैं, जिन्होंने अपना ख़ून पसीना दिया, उनके बारे में काफ़ी नकारात्मक बातें कही गईं लेकिन आपदा आने के बाद से अफ़सरों ने, सेना ने, पुलिसवालों ने बहुत अच्छा काम किया।
भारत जोड़ो यात्रा से बहुत अलग है वोटर अधिकार यात्रा महागठबंधन की वोटर अधिकार यात्रा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से काफी अलग है। भारत जोड़ो यात्रा में पूरा फोकस राहुल गांधी पर था। वहीं वोटर अधिकार यात्रा में महागठबंधन के नेता खासकर तेजस्वी यादव बराबरी से शामिल हैं। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल पूरी यात्रा के दौरान पैदल चले थे। वोटर अधिकार यात्रा में राहुल जीप में रहे और आम लोगों से सीधे मिलने नहीं गए। राहुल की ये यात्रा उस समय हो रही है जब सुप्रीम कोर्ट ने विपक्ष की मांगों को स्वीकार करते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि नए ड्राफ्ट रोल में जिनके नाम हटाए गए हैं, उनकी जानकारी सार्वजनिक की जाए। बिहार में इसी साल के आखिर तक विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके कुछ महीनों पहले जब अचानक से एसआईआऱ की प्रक्रिया शुरू हुई, तो तमाम संदेह उठने लगे।
राहुल गांधी 7 अगस्त को सामने आए और उनके हाथों में आयोग का दिया वोटर लिस्ट लिए मीडिया को 2024 पोल डेटा का एक ऑनलाइन प्रजेंटेंशन करके दिखाया। राहुल गांधी ने दावा किया कि कैसे महाराष्ट्र में पांच महीने के अंदर 1 करोड़ नए वोटर्स को जोड़ा गया। चुनाव आयोग ने पोल डेटा का सॉफ्ट कॉपी देने से मना कर दिया। कांग्रेस को पेपर सीट निकालने पड़े। जो पेपर निकला भी वो ओसीआर यानी ऑप्टिकल कैरेक्टर मशीन से निकाल सकते हैं। राहुल गांधी ने ये भी बताया कि चुनाव आयोग चाहता है कि सीसीटीवी फुटेज को खत्म कर दिया जाए। जिससे एक्ट्रा वोटर गायब हो जाए और उस पर सवाल न उठे। कांग्रेस पार्टी ने 30-40 लोग लगाकर, महीने लगाकर लाख वोट चोरी होने का खुलासा किया है। सवाल हमारे डेमोक्रेटिक फाउंडेशन का है और एक एक वोट के हक का है। ऐसे में आज हम विपक्ष के आरोपों, चुनाव आयोग के जवाब, अगर ये आरोप सही होते हैं तो इसके क्या निहितार्थ हो सकते हैं। इस दावे ने देश को चौंका दिया और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव व 2024 लोकसभा चुनाव की कुछ सीटों के नतीजों पर कांग्रेस जो संदेह जताती रही है, उसे बल मिला। जब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया, तो माना गया कि राहुल की मेहनत रंग लाई है। इसी से यह संभावना भी टटोली गई कि क्या एक और यात्रा हो सकती है।
बीजेपी के हिंदुत्व की काट के लिए समाजवादी पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में पीडीए (पिछड़ा, दलित, आदिवासी) फॉर्मूला लेकर आई। राहुल के सामाजिक न्याय और आरक्षण बचाओ वाले एजेंडे के साथ मिलकर अखिलेश ने काम किया और इसका सीधा फायदा सपा को नजर आया। वैसे ही कुछ राहुल ने मायावती सरकार के दौरान साल 2007 में भ्रष्टाचार के विरोध में अभियान चलाया था। कहा तो ये भी जाता है कि इसका फायदा 2012 के विधानसभा चुनान में सपा ने उठाया था। तमिलनाडु से लेकर महाराष्ट्र तक में कांग्रेस के हाशिये पर होने के बावजूद सहयोगियों की तरफ से खासी तवज्यो दी जा रही है। अब बारी बिहार की है और यहां तो पहले से ही ड्राइविंग सीट पर तेजस्वी और राहुल बगल की सीट पर बैठ राज्य के सियासी समीकरण में कौन लीडर, कौन सहयोगी की भूमिका को साफ कर चुके हैं। राजद का पुराना संगठन है और कांग्रेस एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है। कांग्रेस की आइडियोलाजी भी क्लियर है। इसका फेस राहुल हैं। बिहार चुनाव में वैसे तो अब कुछ ही महीने शेष रह गए हैं। लेकिन राहुल की यात्रा कांग्रेस और उनके सहयोगियों को कितनी सफलता दिला पाएगा ये तो आने वाले वक्त में पता चलेगा।