भारत की धरती से चीन के मंत्री ने कैसे हिलाई ट्रंप की जमीन, अमेरिका की उल्टी गिनती हो गई शुरू?

भारत के बाद वांग यी पाकिस्तान की यात्रा पर भी जाने वाले हैं। ऐसे में एक अहम सवाल ये भी है कि ट्रंप-मुनीर की नजदीकियों पर चीन का पाकिस्तान पर एक्शन क्या होगा और पीएम मोदी ने कैसे ट्रंप की टैरिफ नीति पर बढ़त बना ली है?
टैरिफ विवाद के बीच चीनी विदेश मंत्री वांग यी भारत की यात्रा पर आए। सीमा विवाद के बाद भारत और चीन के बीच धीरे धीरे समान्य होते रिश्तों के बीच ये मुलाकात काफी अहम है। वांग यी ने एनएसए अजित डोभाल के साथ भारत चीन विशेष प्रतिनिधि स्तर की सीमा वार्ता के 24वें दौर में शामिल हुए। इसके अलावा विदेश मंत्री एस जयशंकर से भी मिले। गलवान संघर्ष के बाद वांग यी की दूसरी भारत यात्रा है। पीएम मोदी भी इस महीने के आखिरी में एससीओ समिट में हिस्सा लेने चीन जा रहे हैं। वहीं भारत के बाद वांग यी पाकिस्तान की यात्रा पर भी जाने वाले हैं। ऐसे में एक अहम सवाल ये भी है कि ट्रंप-मुनीर की नजदीकियों पर चीन का पाकिस्तान पर एक्शन क्या होगा और पीएम मोदी ने कैसे ट्रंप की टैरिफ नीति पर बढ़त बना ली है?
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ग्लोबल जियो-पॉलिटिक्स बदल रहा
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर टैरिफ लगाया पहले 25 % फिर 50 % और अब धमकी दे रहे हैं कि इसे 100 फीसदी तक कर देंगे। लेकिन इससे इतर प्रधानमंत्री मोदी एक के बाद एक वही काम कर रहे हैं जो ट्रंप चाहते हैं कि भारत न करे। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि मोदी से कैसे डील करें। आपदा को अवसर में बदलना उनका सबसे बड़ा हुनर है। पीएम मोदी एससीओ समिट में हिस्सा लेने के लिए चीन जाने वाले हैं। वहां उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हो सकती है। इससे पहले वांग यी की यात्रा एजेंडा तय करने के लिए महत्वपूर्ण है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा का मकसद दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग और समझ को बढ़ाना है। हालांकि मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए इस यात्रा की अहमियत कहीं ज्यादा हो जाती है। अमेरिका की नीतियों की वजह से ग्लोबल जियो-पॉलिटिक्स जिस तरह से बदल रही है, इस दौरे को भी उससे जोड़कर देखा जाएगा।
ट्रंप की भारत को झुकाने की कोशिश
भारत दौरे पर आए जिनपिंग के मंत्री वांग यी और डॉ. जयशंकर के बीच कई अहम मुद्दों पर बातचीत हुई है। इस दौरान बैठक में एनएसए अजित डोभाल भी मौजूद रहे हैं। भारत और चीन के रिश्ते काफी वक्त से खटास में पड़े हुए थे वो अब सुधरने की कगार पर पहुंच चुके हैं क्योंकि चीन ने भारत के साथ एक ऐसे मद्दे पर डील करने की बात कही है, जिससे डोनाल्ड ट्रंप के पसीने छूट जाएंगे। ट्रंप जो कोशिश में लगे थे वो तार तार हो जाएगी। ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को तोड़ने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए। उन्होंने चीन, भारत, ब्राजील, रूस सभी को निशाना बनाया। ट्रंप ने सबसे ज्यादा किसी को निशाना बनाया तो वो भारत ही था। वो भारत जिसने चीन से लड़ने के लिए अमेरिका के लिए एक बहुत अच्छा मददगार साबित हो सकता था। लेकिन ट्रंप की टैरिफ वॉर वाली नीति और अमेरिका फर्स्ट का नाम लेते हुए भारत पर टैरिफ बम फोड़ दिया। ट्रंप को लगा कि इससे भारत झुक जाएगा और अमेरिका के आगे गिड़गिड़ाएगा। भारत और अमेरिका के बीच जो डील होने वाली थी, उसको लेकर भारत उसकी शर्ते मान जाएगा। लेकिन भारत झुका नहीं।
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क्यों वांग यी की यात्रा है अहम
गलवान के बाद दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ गए थे, उसे पटरी पर वापस लाने के लिए नई दिल्ली और बीजिंग, दोनों ने काफी मेहनत की है। सीमा पर तनाव पहले से कम हुआ है, लेकिन दोनों ओर की सेनाएं अभी भी आमने-सामने तैनात हैं। अच्छी बात यह है कि दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है। चीनी विदेश मंत्री उसी सिलसिले को आगे बढ़ाने भारत आए हैं। हालांकि अमेरिका की वजह से इसे नया आयाम भी मिला है। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में भारत और चीन, दोनों को ही टारगेट किया है। भारत पर इसी महीने के आखिर से 25% एक्स्ट्रा टैरिफ का बोझ पड़ सकता है। इन दोनों देशों के वॉशिंगटन के साथ रिश्तों के आयाम अलग-अलग हैं और मॉस्को के साथ इनका लेनदेन भी जुदा है, लेकिन स्थितियां ऐसी उलझ गई हैं, जहां सारी बातें एक जगह आकर मिल रही हैं।
अहम मुद्दों पर चर्चा का विस्तार
जयशंकर ने बताया दोनों पक्षों के बीच व्यापार, पीपल टू पीपल रिलेशन्स और रिवर डेटा शेयरिंग, सीमा व्यापार और कनेक्टिविटी जैसे मुद्दो पर व्यापक चर्चा का विस्तार है। विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और वांग यी की मंगलवार को होने वाली बैठक पर कहा कि ये मुलाकात इसलिए अहम है, क्योकि दोनों देशों के सबंधों में प्रगति, इस बात पर टिकी है कि कैसे दोनों देश साझे तौर पर बॉर्डर पर शांति स्थापित कायम रख सकते है। वैसे भी सहयोग और प्रतिद्वंद्विता। टैरिफ के असर को कम से कमतर करने के लिए भारत को मौजूदा व्यापारिक साझेदारों के साथ संबंध मजबूत करने और नए पार्टनर तलाशने की जरूरत है। यही जरूरत चीन की भी है। ऐसे में दोनों देश व्यापारिक सहयोग बढ़ाकर टैरिफ के नुकसान को कम कर सकते हैं। हालांकि इससे वह प्रतिद्वंद्विता नहीं बदलेगी, जो ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन के स्थान पर भारत के उभरने से शुरू हुई है।
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