अब जेल से नहीं चलेगी सरकार, मोदी का नया कानून तमाम मंत्री-मुख्यमंत्रियों को क्यों डरा रहा है?

Modi
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अभिनय आकाश । Aug 20 2025 2:35PM

भारत में लोकतंत्र लोक-लाज से भी संचालित होता है। इसलिए उन्हें लगा होगा कि कभी ऐसी स्थिति आएगी ही नहीं कि सत्ता के लिए राजनेता इस स्तर पर आ जाएंगे कि जेल से शासन चलाने की जिद करेंगे।

भारत के संविधान निर्माताओं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस देश के संसदीय लोकतंत्र के जीवन में कोई ऐसा क्षण भी आएगा कभी कि विभत्स और जघन्य अपराध में जेल जाने वाले मंत्री और मुख्यमंत्री जेल से शासन चलाने की दंभपूर्ण जिद करेंगे और अपने पद से त्यागपत्र देने से इनकार कर देंगे और कहेंगे कि हम जेल से शासन चलाएंगे। जेल में ही फाइलें साइन करेंगे। जेल में ही कैबिनेट की बैठक बुलाएंगे। संविधान निर्माताओं को हमेशा इस बात का भान रहा होगा कि ये भारत है और यहां सामाजिक जीवन में लोक-लाज का बड़ा महत्व है। भारत में लोकतंत्र लोक-लाज से भी संचालित होता है। इसलिए उन्हें लगा होगा कि कभी ऐसी स्थिति आएगी ही नहीं कि सत्ता के लिए राजनेता इस स्तर पर आ जाएंगे कि जेल से शासन चलाने की जिद करेंगे। अब आपराधिक मामलों में पीएम, सीएम या मंत्री कोई भी गिरफ्तार होता है तो उसको हटाने के लिए मोदी सरकार एक बिल लेकर आई है, जिस पर कांग्रेस इस पर भड़की हुई है। गंभीर अपराधों में गिरफ्तार किए जाने वाले प्रधानमंत्री हो, मुख्यमंत्री हो या फिर केंद्रीय मंत्री उन्हें हटाने के लिए लोकसभा में विधेयक पेश किया गया। 

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को हटाने वाले विधेयक कौन से हैं?

पेश किए गए तीन विधेयक हैं: संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025। संविधान (130वां संशोधन) विधेयक में प्रावधान है कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री लगातार 30 दिनों तक न्यायिक हिरासत में रहता है, तो उसे स्वतः ही हटा दिया जाएगा। हालाँकि, जिस अपराध के लिए उन्हें हिरासत में लिया गया है, उसकी सज़ा पाँच साल या उससे ज़्यादा होनी चाहिए। इस प्रकार, अगर उन्हें दोषी नहीं भी ठहराया जाता है, तो भी उन्हें उनके पदों से हटाया जा सकता है। यह कानून उन्हें उन सरकारी कर्मचारियों के बराबर लाता है, जिन्हें गिरफ़्तार करने पर निलंबित कर दिया जाता है। इससे धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) चर्चा में आ गया है, जिसका इस्तेमाल ईडी ने हाल के दिनों में कई विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार करने के लिए किया है। पीएमएलए के तहत, किसी को ईडी गिरफ़्तार कर सकता है और 30 दिनों तक ज़मानत से वंचित रख सकता है। ऐसी स्थिति में, प्रस्तावित कानून के तहत गिरफ्तार किए गए किसी भी मुख्यमंत्री या मंत्री का पद 30 दिन की अवधि पार होने के बाद समाप्त हो जाएगा। यही बात विपक्ष के बीच चिंता का विषय है। हालांकि, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों या मंत्रियों को हिरासत से रिहा होने के बाद राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा पुनः नियुक्त किया जा सकता है। इसी तरह के प्रावधान जम्मू-कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेशों पर भी लागू होंगे, जो एक अलग विधायी ढांचे के माध्यम से शासित होते हैं। 

विधेयक लाने की वजह

वर्तमान में गिरफ़्तारी के बाद भी मंत्रियों के अपने पद पर बने रहने पर कोई रोक नहीं है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में विधायकों और सांसदों को अयोग्य घोषित करने का प्रावधान है, अगर उन्हें दो साल या उससे ज़्यादा की सज़ा वाले किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है। पिछले साल, तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी की गिरफ़्तारी के बाद, नेताओं के सत्ता में बने रहने का मुद्दा केंद्र और विपक्ष के बीच विवाद का विषय बन गया था। धन शोधन के एक मामले में गिरफ़्तार हुए बालाजी के मामले में, मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने उन्हें बिना किसी विभाग के मंत्रिमंडल में बनाए रखा था। इस वजह से राज्यपाल के साथ उनकी तीखी बहस हुई थी। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भूमि घोटाला मामले में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने से ठीक एक दिन पहले जनवरी 2024 में इस्तीफा दे दिया था। 

संवैधानिक विश्वास को बढ़ाएगा

वर्तमान में निर्वाचित प्रतिनिधियों की अयोग्यता से संबंधित कानून मौजूद हैं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार, राज्य विधानसभाओं और संसद के सदस्यों को दो वर्ष या उससे अधिक की सजा मिलने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है। भ्रष्टाचार और मादक पदार्थों की तस्करी जैसे गंभीर अपराधों में दोषसिद्धि के मामले में सजा की अवधि की परवाह किए बिना अयोग्यता की जा सकती है। केंद्र अब ऐसे कानून लाने जा रहा है जिनके तहत प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों सहित किसी भी मंत्री को 30 दिन या उससे अधिक समय तक गिरफ्तार रहने पर पद से हटाया जा सकेगा। प्रस्तावित विधेयक के उद्देश्यों और कारणों के विवरण के अनुसार, गंभीर आपराधिक अपराधों के आरोपों का सामना कर रहा कोई मंत्री, गिरफ्तार और हिरासत में लिया गया, संवैधानिक नैतिकता और सुशासन के सिद्धांतों को विफल या बाधित कर सकता है और अंततः लोगों द्वारा उस पर रखे गए संवैधानिक विश्वास को कम कर सकता है।

केजरीवाल का मैटर बना टर्निंग प्वाइंट

राजनीतिक विश्वेषक कहते हैं कि ये मामला सरकार के लिए ट्रिगर प्वाइंट था। जिस बिल को सरकार अभी पेश करने जा रही है अगर ये कानून तब वजूद में होता तो ऐसी स्थिति में गिरफ्तार सीएम कुर्सी उनकी गिरफ्तारी के 31 दिन स्वत: ही चली जाती। अरविंद केजरीवाल के अलावा सत्येंद्र जैन भी कई महीनों तक जेल जाने के बावजूद अपने पद पर बने हुए थे। इसके अलावा तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बाला जी का मामला भी ऐसा ही था। जब उनपर आरोप लगे तो वहां के राज्यपाल ने उन्हें बर्खास्त करने की सिफारिश की थी। लेकिन कानूनी विचार विमर्श के बाद ये तय किया गया कि उन्हें पद से नहीं हटाया जाएगा।

प्रधानमंत्री को भी हटाया जा सकता है

प्रधानमंत्री को हटाने से जुड़े प्रावधान पर एक बिल में प्रावधान है कि यदि कोई प्रधानमंत्री, जो अपने पद पर बने रहने के दौरान लगातार 30 दिनों की अवधि के दौरान, किसी कानून के तहत अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में रखा जाता है, जिसमें पांच साल या उससे अधिक की जेल की सजा है तो उसे ऐसी गिरफ्तारी और हिरासत के बाद इकतीसवें दिन तक अपना त्यागपत्र दे देना होगा और यदि वह त्यागपत्र नहीं देता है, तो वह उसके बाद पड़ने वाले दिन से वह प्रधानमंत्री नहीं रहेगा। 

सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर रहा था ईडी

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि नए विधेयक, यदि पारित हो जाते हैं, तो केंद्रीय एजेंसियों को गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को गिरफ्तार करने या हिरासत में लेने के बेलगाम अधिकार मिल जाएँगे। हाल के महीनों में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय एजेंसियों, विशेष रूप से ईडी के आचरण पर गहरी चिंता व्यक्त की है और कहा है कि यह सभी हदें पार कर रहा है। इस महीने की शुरुआत में शीर्ष अदालत ने ईडी से कहा था, आप एक बदमाश की तरह काम नहीं कर सकते।" साथ ही, अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि एजेंसी को कानूनी सीमाओं के भीतर ही काम करना चाहिए। 

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