काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-29

By विजय कुमार | Nov 17, 2021

शूपणखा दौड़ी गयी, फिर रावण के पास

धिक्कारा उसको बहुत, और किया उपहास।

और किया उपहास, रात-दिन सोने वाले

सिर पर आया काल, शराबी ओ मतवाले।

कह ‘प्रशांत’ रो-रोकर पूरी बात बताई

रावण सहित सभा सारी सुनकर अकुलाई।।31।।

-

शूपणखा ने फिर कहा, हैं वे अवध कुमार

और साथ उनके वहां, अति सुंदर इक नार।

अति सुंदर इक नार, बड़े उनमें हैं रामा

मार रहे दुष्टों को, बल के अतुलित धामा।

कह ‘प्रशांत’ जो है दूजा वह लखनलाल है

उसके ही हाथों मेरा ये हुआ हाल है।।32।।

-

हूं रावण की बहिन मैं, परिचय मेरा जान

हंसी उड़ाई खूब फिर, किया घोर अपमान।

किया घोर अपमान, क्रोध में भाई आये

मगर राम ने तीनों रण में मार गिराये।

कह ‘प्रशांत’ रावण ने उसको धैर्य बंधाया

पर चिन्ता में डूबा जरा नहीं सो पाया।।33।।

-

मेरे तीनों बंधु थे, अति बलशाली वीर

उनका वध जिसने किया, होगा वह रणधीर।

होगा वह रणधीर, धरा का भार घटाने

क्या ईश्वर आये हैं दुष्टों को निबटाने।

कह ‘प्रशांत’ हैं मानव तो उनको मारूंगा

हैं ईश्वर तो मरकर खुद को ही तारूंगा।।34।।

-

लक्ष्मण जब वन में गये, लेने को फल-फूल

लीला कीन्ही राम ने, भावी के अनुकूल।

भावी के अनुकूल, जानकी को समझाया

और अग्नि प्रगटाकर उन्हें प्रविष्ट कराया।

कह ‘प्रशांत’ फिर मूरत छाया की रच डाली

बिल्कुल सीता जैसी सुंदर भोली-भाली।।35।।

-

अगले दिन रावण गया, जहं मारीच निवास

बोला कपटी मृग बनो, चलो राम के पास।

चलो राम के पास, करो माया अलबेली

राम-लखन हों दूर, रहे जानकी अकेली।

कह ‘प्रशांत’ मैं वेश बदल उसको हर लूंगा

जो चाहोगे तुमको पुरस्कार मैं दूंगा।।36।।

-

समझाया मारीच ने, सुनिए मेरी बात

उनसे झगड़ा ठानना, उचित नहीं है तात।

उचित नहीं है तात, मनुज उनको मत मानो

हैं ईश्वर अवतार, उन्हें समझो-पहचानो।

कह ‘प्रशांत’ यह सुनते ही रावण गुस्साया

लगता है मारीच काल तेरा है आया।।37।।

-

देखा जब मारीच ने, मौत खड़ी तैयार

तो रावण के हाथ से, मरना है बेकार।

मरना है बेकार, राम के हाथ मरूंगा

क्षण भर में ही भवसागर को पार करूंगा।

कह ‘प्रशांत’ सोने के मृग का रूप बनाया

और राम की कुटिया के आगे मंडराया।।38।।

-

सीता ने देखा उसे, हर्षित हुई अपार

कहा राम से हे प्रभो, इसका करो शिकार।

इसका करो शिकार, छाल है कितनी सुंदर

इसे मारकर चमड़ा इसका दीजे लाकर।

कह ‘प्रशांत’ रघुनंदन उसके पीछे दौड़े

लक्ष्मण को सीताजी की रक्षा में छोड़े।।39।।

-

माया का मृग था बना, जिसके पीछे राम

धनुष बाण संधान कर, दौड़ रहे अविराम।

दौड़ रहे अविराम, सताया बहुत छली ने

बाण मारकर उसे गिराया राम बली ने।

कह ‘प्रशांत’ अब उसने असली रूप दिखाया

मरने से पहले ‘लक्ष्मण-लक्ष्मण’ चिल्लाया।।40।।


- विजय कुमार

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