By टीम प्रभासाक्षी | Mar 08, 2022
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पूरी दुनिया वहां तबाही का मंजर देख रही है और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आक्रामक रवैए को देखकर हर कोई इस बात को लेकर चिंतित है कि कहीं यह विश्वयुद्ध का रूप अख्तियार न कर ले। रूस का सबसे पक्का मित्र होने के नाते दुनिया भारत की ओर देख रही है। इस मुद्दे पर पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा से भाषा के 5 सवाल और उनके जवाब
सवाल: यूक्रेन पर रूसी सैन्य कार्रवाई जारी है। दुनिया आशंकित है कि कहीं यह तीसरे विश्वयुद्ध का स्वरूप ना ले ले। आपकी प्रतिक्रिया?
इसके जवाब में सिन्हा कहते हैं सबकी चिंता यही है कि कहीं यह युद्ध विश्वयुद्ध में तब्दील ना हो जाए और विश्व युद्ध होने का मतलब है परमाणु युद्ध। यह होता है तो कितने लोग मार जाएंगे, उसकी कोई गिनती नहीं होगी। इसलिए पश्चिम कि वह देश जिनका प्रभाव यूरोप में है, वे नहीं चाहते कि संघर्ष इतना बढ़ जाए कि उनकी सेना को इसमें कूदना पड़े। नाटो ने एक सही रास्ता पकड़ा है वह संघर्ष नहीं बढ़ाना चाहता। लेकिन इसका दूसरा पक्ष भी है। वह यह कि एक बहुत ही ताकतवर देश और उसकी सेना ने एक छोटे से देश पर हमला कर दिया है तथा उसकी आजादी को चुनौती दे रहा है। यह सभी बातें अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विपरीत हैं। ऐसे में अगर ज्यादा ताकतवर देश अपने से कम ताकतवर देश को झुका दे और अपनी बात मानने के लिए विवश कर दें तो फिर यह जंगलराज हो जाएगा। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जो भी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था कायम हुई है, वह खत्म हो जाएगी।
सवाल: इस युद्ध के लिए आप किसे दोषी मानते हैं?
सिन्हा कहते हैं हमें इस बात को मानना होगा कि पश्चिमी देशों की ओर से यूक्रेन को बहुत उकसाया गया। रूस को घेरकर रखने की पश्चिमी देशों की जो मंशा है, वह यूक्रेन को नाटो में शामिल कर रूस को घेरने की तैयारी कर रहे थे। यूक्रेन में बहुत बड़े बड़े परमाणु संयंत्र हैं और ये यूक्रेन के साथ-साथ रूस के लिए भी काफी अहम हैं। उसी सबसे चिंतित होकर रूस ने हमला कर दिया। मेरा यह कहना है कि रूस की चिंता सही थी लेकिन उसका तरीका गलत है। रूस को कोशिश करनी चाहिए थी कि बातचीत से रास्ता निकले। बातचीत के लिए अगर उन्हें दूसरे देशों की मदद चाहिए थी तो वह भी उन्हें लेनी चाहिए थी। जैसे अभी फ्रांस के राष्ट्रपति कोशिश कर रहे हैं। रूस, भारत की सेवाओं का इस्तेमाल भी कर सकता था। वह भारत से हस्तक्षेप करने को कह सकता था। वह भारत को कह सकता था कि वह इस दिशा में कोशिश करें ताकि रूस की सुरक्षा पर खतरा ना आए।
सवाल: भारत के रूख का आप कैसे आकलन करेंगे?
इसके जवाब में वह कहते हैं रूस से हमारी बहुत पुरानी मित्रता है। वह हर मौके पर भारत के काम आया है। वह हमारा बहुत ही बहुमूल्य दोस्त है, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन बहुत ही नजदीकी दोस्त भी अगर गलती करता है तो दोस्त के नाते हमारा हक बनता है कि हम उसको कहे कि भाई यह गलती मत करो। अभी तक ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया है कि भारत सरकार ने ऐसा कुछ किया है। युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद हमारे विदेश मंत्री को वहां जाना चाहिए था और प्रयास करना चाहिए था कि समस्या का हल बातचीत से निकाला जा सके। लेकिन ऐसी कोई पहल भारत की ओर से नहीं की गई। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और दूसरे मंचों पर भी भारत वोटिंग से दूर रहा है। इससे लगता है कि जैसे हम गलत काम में रूस का साथ दे रहे हैं। इस हालात से बचा जा सकता था।
सवाल: यूक्रेन में फंसे छात्रों को वापस लाने के लिए ऑपरेशन गंगा चलाया जा रहा है। बावजूद इसके अभी भी यूक्रेन में सैकड़ों की तादाद में छात्र फंसे हुए हैं और अलग-अलग सोशल मीडिया माध्यमों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। इस बारे में आपकी राय?
इस पर उन्होंने कहा भारत सरकार और हम सब लोगों को पता था कि बड़ी तादाद में हमारे छात्र वहां पढ़ाई के लिए जाते हैं। खासकर मेडिकल की पढ़ाई के लिए। दूसरी बात यह है कि भारत सरकार के पास सूचना होगी कि रूस हमला करने वाला है और हमारे छात्र अगर वक्त रहते नहीं निकले तो वहां पर जाएंगे। इसलिए वक्त रहते उनको वहां से निकाल देना चाहिए था। उन्हें निकलने के लिए बाध्य करना चाहिए था न कि उनके विवेक पर छोड़ना चाहिए था। इसके बावजूद भी कोई नहीं निकलता तब हम कह सकते थे कि उसकी गलती है। इस पूरी प्रक्रिया में गंगा का पानी जब सर के ऊपर से निकलने लगा तब सरकार का ऑपरेशन गंगा शुरू हुआ।
सवाल: रूस और अमेरिका के संदर्भ में भारत की विदेश नीति की आप कैसे समीक्षा करेंगे तथा चीन से मिल रही चुनौती के मद्देनजर इसकी दिशा क्या होनी चाहिए?
इस पर उन्होंने कहा कि नई विश्व व्यवस्था अगर बनती है तो उसमें भारत बहुत कमजोर स्थिति में हो जाता है। क्योंकि अगर इस तरह ज्यादा ताकतवर देश, दूसरे देश के ऊपर आक्रमण करें तो कल चीन को भी यह मौका मिलेगा कि वह ताइवान के ऊपर हमला करे या हमारे यहां लद्दाख और अरुणाचल में। अरुणाचल खासतौर पर। क्योंकि चीन हमेशा यह दावा करता रहा है कि अरुणाचल उसका है। तो कल वह अगर ताकत के बल पर अरुणाचल को हड़पने के लिए सेना भेजे तो फिर क्या होगा? दूसरी बात यह है कि जिस तरह दुनिया यूक्रेन के मसले पर तटस्थ रह गई, उसी प्रकार व भारत और चीन के मसले में भी रह जाएगी। नई विश्व व्यवस्था बनती है तो उसमें सब देश खुद की चिंता करने के लिए छोड़ दिए जाएंगे। भारत को चीन को लेकर चिंता जरूर करनी चाहिए और पूरे इंतजाम करने चाहिए। हमें भ्रम में नहीं रहना चाहिए।