By नीरज कुमार दुबे | May 30, 2025
ईरान ने अमेरिका की बात अगर नहीं मानी तो ट्रंप उसे बख्शेंगे नहीं। यह बात खाड़ी देश भलीभांति समझ रहे हैं और पहले से ही तमाम संघर्षों से प्रभावित उस क्षेत्र में नया संघर्ष शुरू होने से बचाने के लिए ईरान को समझाने की कोशिशों में जुट गये हैं। देखा जाये तो यह एकदम स्पष्ट हो चला है कि बातचीत से हल निकालने का एक मौका तेहरान को दिया गया है लेकिन अगर वह नहीं मानता है तो उस पर हमला करने को आतुर बैठे इजराइल को आगे बढ़ने के लिए ट्रंप हरी झंडी दिखा देंगे। इस स्थिति से ईरान को अवगत कराने और उसे समझाने के लिए खाड़ी देश सक्रिय हो गये हैं।
बताया जा रहा है कि सऊदी अरब के रक्षा मंत्री ने पिछले महीने तेहरान में ईरानी अधिकारियों को सीधी चेतावनी देते हुए कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के परमाणु समझौते पर बातचीत के प्रस्ताव को गंभीरता से लें, क्योंकि यह इज़राइल के साथ युद्ध के खतरे से बचने का एकमात्र रास्ता है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक क्षेत्र में और अधिक अस्थिरता की आशंका से चिंतित सऊदी अरब के 89 वर्षीय किंग सलमान बिन अब्दुलअज़ीज़ ने अपने बेटे प्रिंस खालिद बिन सलमान को ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई को यह संदेश देने के लिए भेजा था। बताया जा रहा है कि यह बंद कमरे की बैठक 17 अप्रैल को तेहरान के राष्ट्रपति परिसर में आयोजित हुई थी, जिसमें ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान, सशस्त्र बलों के प्रमुख मोहम्मद बघेरी और विदेश मंत्री अब्बास अराक़ची शामिल थे। हालांकि मीडिया ने 37 वर्षीय प्रिंस खालिद की यात्रा को कवर किया था, लेकिन किंग सलमान का यह गुप्त संदेश अब तक सामने नहीं आया था।
हम आपको बता दें कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका में सऊदी अरब के राजदूत रह चुके प्रिंस खालिद ने ईरानी अधिकारियों को चेतावनी दी कि डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय तक चलने वाली वार्ताओं के लिए धैर्य नहीं रखते। प्रिंस खालिद ने ईरानी अधिकारियों से अपील की कि वे और उनके सहयोगी ऐसा कोई भी कदम न उठाएं जो अमेरिका को उकसा सकते हों, क्योंकि ट्रंप की प्रतिक्रिया उनके पूर्ववर्तियों— जो बाइडन और बराक ओबामा की तुलना में अधिक कठोर हो सकती है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि सऊदी अरब अमेरिका या इज़राइल को ईरान के खिलाफ किसी भी संभावित सैन्य कार्रवाई के लिए अपनी ज़मीन या हवाई क्षेत्र का उपयोग नहीं करने देगा।
हम आपको याद दिला दें कि ट्रंप ने एक सप्ताह पहले अप्रत्याशित रूप से घोषणा की थी कि तेहरान के साथ प्रत्यक्ष वार्ता चल रही है, जिसका उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना और इसके बदले प्रतिबंधों में राहत देना है। उन्होंने यह घोषणा इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की उपस्थिति में की थी, जो वॉशिंगटन यात्रा पर ट्रंप से ईरानी परमाणु ठिकानों पर हमलों के लिए समर्थन की अपेक्षा कर रहे थे। हालांकि ट्रंप ने इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को चेतावनी दी थी कि वे परमाणु वार्ता में कोई हस्तक्षेप न करें क्योंकि दोनों पक्ष "समाधान के बहुत करीब" हैं।
बताया जा रहा है कि ईरानी नेताओं के साथ सीधी बातचीत में प्रिंस खालिद ने कहा कि ट्रंप की टीम जल्द ही समझौते की ओर बढ़ना चाहेगी नहीं तो कूटनीति का रास्ता बंद हो सकता है। बताया जा रहा है कि सऊदी मंत्री ने ईरानी नेताओं से कहा है कि अमेरिका के साथ समझौता करना बेहतर होगा बजाय इसके कि वार्ता विफल हो और ईरान को इज़राइल के हमले का सामना करना पड़े। उन्होंने तर्क दिया कि ग़ाज़ा और लेबनान में हालिया संघर्षों से जूझ रहा यह क्षेत्र और अधिक तनाव को सहन नहीं कर सकता।
हम आपको बता दें कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के छोटे भाई प्रिंस खालिद की यह यात्रा दो दशकों में ईरान की यात्रा करने वाले सऊदी शाही परिवार के किसी वरिष्ठ सदस्य की पहली यात्रा थी। लंबे समय तक दोनों देशों में कड़वाहट रही, लेकिन 2023 में चीन की मध्यस्थता से हुए समझौते ने रिश्तों में सुधार किया। हम आपको बता दें कि ईरान और सऊदी अरब के बीच दशकों से चला आ रहा टकराव पूरे खाड़ी क्षेत्र को अस्थिर करता रहा है और यमन से लेकर सीरिया तक के संघर्षों को हवा देता रहा है। 2023 की सुलह बरकरार है मगर सऊदी अरब और अन्य क्षेत्रीय शक्तियाँ ईरान को शांति के लिए भरोसेमंद साझेदार नहीं मानते और उन्हें डर है कि ईरान की कार्रवाइयाँ उनके आर्थिक विकास के लक्ष्य को खतरे में डाल सकती हैं।
दूसरी तरफ यदि ईरान के हालात पर गौर करें तो एक बात साफ प्रतीत होती है कि पिछले दो वर्षों के दौरान गाजा में हमास और लेबनान में हिज़्बुल्लाह पर इज़राइल के सैन्य हमलों तथा सीरिया में बशर अल-असद की सत्ता से बेदखली के चलते ईरान की क्षेत्रीय स्थिति कमजोर हुई है। इसके अलावा, पश्चिमी प्रतिबंधों ने ईरान की तेल-आधारित अर्थव्यवस्था को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया है। हालांकि अभी यह पता नहीं चल पाया है कि प्रिंस के संदेश का ईरानी नेतृत्व पर क्या प्रभाव पड़ा। बताया जा रहा है कि इस बैठक में राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान ने कहा कि ईरान पश्चिमी प्रतिबंधों से राहत पाने के लिए एक समझौते को चाहता है। यह भी बताया जा रहा है कि ईरानी अधिकारियों ने ट्रंप प्रशासन के "अप्रत्याशित" रुख को लेकर चिंता जताई है जो कभी सीमित संवर्धन की अनुमति देता है, तो कभी पूरे परमाणु कार्यक्रम को बंद करने की मांग करता है। बताया जा रहा है कि पेज़ेश्कियान ने कहा है कि तेहरान समझौता करने को इच्छुक है, लेकिन केवल इसलिए अपना संवर्धन कार्यक्रम नहीं छोड़ेगा क्योंकि ट्रंप चाहते हैं।
हम आपको बता दें कि वॉशिंगटन और तेहरान के बीच परमाणु मुद्दे पर बातचीत के पांच दौर हो चुके हैं, लेकिन संवर्धन जैसे मुख्य मुद्दों पर अब भी गतिरोध बना हुआ है। वहीं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि कूटनीति विफल हुई, तो वह सैन्य बल का उपयोग कर सकते हैं। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलाइन लेविट ने हाल ही में एक बयान में कहा था कि राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि समझौता करें या गंभीर परिणाम झेलें।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि इस महीने ट्रंप की चार दिवसीय खाड़ी यात्रा के दौरान सऊदी अरब नए सुन्नी गठबंधन का नेतृत्वकर्ता बनकर उभरा है। इस यात्रा के दौरान सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने ट्रंप और सीरिया के नए सुन्नी नेता अहमद अल-शराआ के बीच मेल-मिलाप भी करवाया था।