By अनन्या मिश्रा | Oct 14, 2025
ब्रेस्टफीडिंग कराने से न सिर्फ बच्चे के लिए बल्कि मां के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है। यह बच्चे को पोषण देने और इम्यूनिटी देती है और मां के लिए कई गंभीर बीमारियों से बचाव में मददगार साबित हो सकता है। रिसर्च और एक्सपर्ट की मानें, तो ब्रेस्टफीडिंग से महिलाओं में ओवरी कैंसर का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है। बता दें कि ब्रेस्टफीडिंग नेचुरल प्रोटेक्टिव फैक्टर की तरह काम करती है। यह महिलाओं के शरीर में पीरियड्स को कुछ समय रोकने, हार्मोनल बैलेंस बनाए रखने और ओवरी पर पड़ने वाले तनाव को कम करने का काम करती है।
यही वजह है कि ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं में कैंसर का खतरा कम होता है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको ओवरी कैंसर के रिस्क फैक्टर्स और ब्रेस्टफीडिंग की प्रोटेक्टिव भूमिका के बारे में बताने जा रहे हैं।
40 साल की उम्र के बाद ओवरी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है और वहीं 65 साल की उम्र में इसके सबसे ज्यादा मामले देखे जाते हैं।
अगर परिवार के पहले किसी को ओवरी कैंसर या फिर ब्रेस्ट कैंसर हुआ है, तो इसका खतरा अधिक होता है।
जिन महिलाओं को संतान नहीं हुई है, उनमें भी यह खतरा बढ़ सकता है।
जो महिलाएं ब्रेस्डफीडिंग नहीं कराती हैं, उनमें भी ओवरी कैंसर का खतरा ज्यादा पाया गया है।
गर्भधारण के लिए दवाओं का सेवन करने से भी ओवरी कैंसरका खतरा कुछ हद तक बढ़ सकता है।
ज्यादा वजन भी ओवरी कैंसर के रिस्क फैक्टर्स में से एक है।
इसको समझने के लिए हमको ओवरी कैंसर के कुछ मुख्य रिस्क फैक्टर्स को भी समझना होगा। इसका प्रमुख कारण ओव्यूलेशन प्रोसेस होता है। जब महिला प्रेग्नेंट होती है और ब्रेस्टफीडिंग कराती हैं, तो कुछ समय के लिए पीरियड्स और ओव्यूलेशन का प्रोसेस रुक जाता है। ऐसा होने पर ओवरीज को आराम मिलता है। इस समय ओवरीज को मिलने वाले आराम की वजह से ओवरी की कोशिकाओं को दोबारा ठीक होने का समय मिल जाता है। जिससे असामान्य कोशिकाओं के विकसित होने का खतरा कम हो जाता है।
ब्रेस्टफीडिंग से शरीर का हार्मोनल बैलेंस में सुधार होता है और एस्ट्रोजन लेवल कंट्रोल में रहता है।
बच्चे को 6 महीने या फिर इससे ज्यादा समय तक ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं में ओवरी कैंसर का खतरा अधिक कम पाया जाता है।
जिन महिलाओं के बच्चे हैं और उनमें ओवरी कैंसर का खतरा कम होता है। प्रग्नेंसी के समय पीरियड्स रुक जाता है और इससे ओवरीज पर भी तनाव कम होता है।
जो महिलाएं 5 साल या फिर इससे अधिक समय तक ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स लेती हैं, उनमें भी ओवरी कैंसर का खतरा कम पाया जाता है।
साथ ही नसबंदी कराने से भी इस कैंसर का खतरा कम हो सकता है। क्योंकि इस प्रोसेस में फैलोपियन ट्यूब्स को बांध दिया जाता है। इससे ओवरी से यूट्रस तक का रास्ता रुक जाता है।
वहीं जिन महिलाओं की सर्जिकल ऑपरेशन से ट्यूब्स निकाल दी गई हैं, इससे भी ओवरी कैंसर का खतरा कम होता है।
हालांकि यह रिस्क फैक्टर्स हर महिला पर लागू नहीं होता है। कई महिलाओं में ओवरी कैंसर का कोई स्पष्ट रिस्क फैक्टर नहीं मिलता है। लेकिन फिर भी उनको ओवरी कैंसर हो सकता है। इसलिए अगर आपको पेल्विक पेन, बार-बार ब्लोटिंग, भूख कम लगना या जल्दी पेट भरना जैसी समस्याएं होती हैं, तो फौरन डॉक्टर से संपर्क करें।