By नीरज कुमार दुबे | Aug 22, 2025
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आज दो सरकारी कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दीं। आरोप है कि इनकी संलिप्तता आतंकवादी गतिविधियों या उनके समर्थन से जुड़ी हुई थी। हम आपको बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है, हाल के वर्षों में केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन ने कई ऐसे कर्मचारियों को बर्ख़ास्त किया है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवादियों के लिए सहानुभूति दिखाते रहे हैं।
देखा जाये तो आतंकवाद का एक बड़ा खतरा यह है कि उसका नेटवर्क केवल जंगलों या सीमावर्ती इलाकों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि प्रशासन और व्यवस्था तक भी पहुँचने की कोशिश करता है। सरकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई यह संदेश देती है कि प्रशासनिक ढांचे में “दोहरी भूमिका” निभाने वालों के लिए कोई जगह नहीं है।
इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर चूंकि लंबे समय से आतंकी हिंसा से प्रभावित रहा है। ऐसे में सरकार की प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि संवेदनशील पदों पर बैठे लोग सुरक्षा तंत्र को कमजोर न करें। देखा जाये तो सरकारी नौकरी करदाताओं के पैसे से मिलती है। यदि कोई व्यक्ति आतंकवाद या अलगाववाद को समर्थन देता है, तो उसका वेतन उसी व्यवस्था से जाता है जिसे वह कमजोर कर रहा है। यह व्यवस्था के साथ धोखा है। बर्ख़ास्तगी इसी विरोधाभास को समाप्त करने की कोशिश है।
दूसरी ओर, आलोचकों का कहना है कि केवल “कथित संलिप्तता” के आधार पर सेवा समाप्त करना उचित प्रक्रिया के खिलाफ़ है। ऐसे मामलों में पारदर्शिता और सबूत की मज़बूती अनिवार्य है, वरना यह निर्णय अदालत में चुनौती झेल सकता है। लेकिन अगर व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन “आतंकवाद मुक्त कश्मीर” की दिशा में क़दम तेज़ी से बढ़ा रहे हैं। हाल के वर्षों में न केवल आतंकियों के खिलाफ़ ऑपरेशन बढ़े हैं, बल्कि उनके “आर्थिक और संस्थागत समर्थन” काटने की रणनीति भी अपनाई गई है। सरकारी कर्मचारियों की बर्ख़ास्तगी उसी रणनीति का हिस्सा है।
बहरहाल, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का यह कदम केवल दो कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त करने का मामला नहीं है, बल्कि यह एक प्रतीकात्मक संदेश है कि आतंकवाद या उसके समर्थन से किसी भी स्तर पर समझौता नहीं होगा। साथ ही सरकारी व्यवस्था को भीतर से खोखला करने की कोशिशें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। जहां तक सेवा से बर्खास्त किये गये लोगों की बात है तो आपको बता दें कि यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के तहत लिया गया। कर्मचारियों की पहचान भेड़ पालन विभाग में सहायक पशुपालक सियाद अहमद खान तथा स्कूल शिक्षक खुर्शीद अहमद राठेर के रूप में की गई है। सियाद अहमद खान केरन इलाके का और खुर्शीद अहमद राठेर कारनाह इलाके का रहने वाला है। दोनों स्थान उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में हैं। अधिकारियों ने बताया कि उपराज्यपाल ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार किया। उन्होंने कहा, ‘‘उपलब्ध जानकारी के आधार पर दोनों की गतिविधियां ऐसी हैं कि उन्हें सेवा से बर्खास्त किया जाना चाहिए।''