सुप्रीम कोर्ट की आरक्षण पर टिप्पणी, कोटा में कोटा, यहां समझिए क्या है मामला

By अभिनय आकाश | Aug 31, 2020

आरक्षण किसी के लिए नौकरी पाने की उम्मीद है तो किसी की किसी के लिए यह नौकरी में बराबरी का मौका ना मिलने की वजह है। जो विरोध करते हैं उनके अपने तर्क हैं जो समर्थन करते हैं उनके अपने। जिस मकसद से आरक्षण लागू किया गया क्या वह पूरा हुआ? जवाब है- नहीं, अगर हो जाता तो वर्तमान में इस पर चर्चा करने की जरूरत ही नहीं होती। 1990 के दशक में मंडल कमीशन आया फिर आया सुप्रीम कोर्ट की तरफ से क्रीमी लेयर का सिद्धांत। लेकिन इन दिनों आरक्षण को लेकर जो चर्चा चल पड़ी है। वो सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी टिप्पणी के बाद चर्चा में है। कोर्ट ने कहा था कि समाज में हो रहे बदलाव पर विचार किए बिना हम सामाजिक परिवर्तन के संवैधानिक लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि लाख टके का सवाल ये है कि कैसे आरक्षण का लाभ निचले स्तर तक पहुंचाया जाए। सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या एससी व एसटी वर्ग के भीतर राज्य सरकार सब श्रेणी बना सकती है।

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सात जजों की बेंच समझेगी मामला

असली जरूरतमंद है उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि एससी वर्ग में शामिल सभी जाति वर्ग के कल्याण के लिए आरक्षण है। लेकिन कुछ जातियों को ज्यादा फायदा मिल रहा है। वह क्रीमी लेयर में शामिल हो गई है इसलिए गैर बराबरी हो रही है। 5 जजों की बेंच ने चीफ जस्टिस के पास सात जजों की संवैधानिक पीठ बनाने का प्रस्ताव भेजा है। यह पीठ इस मामले पर विचार करेगी कि क्या एससी एसटी कोटे के भीतर भी कोटा बनाया जाए ताकि वंचितों को उसका लाभ मिले। कई राज्यों ने यह माना है कि उनके यहां आरक्षण का फायदा कई जातियों को नहीं मिल रहा और फिर उन राज्यों द्वारा sc-st जातियों के लिए आरक्षण में ही अलग आरक्षण की व्यवस्था की गई। महादलित की व्यवस्था की गई महा आदिवासी की बात कही गई। 

नीतीश ने खेला था पहला दांव 

बिहार में यही बड़ा प्रयोग नीतीश कुमार ने किया था जिसके सहारे वह आरजेडी को सत्ता से हटाने में सफल रहे थे नीतीश ने महादलित की एक नई कैटेगरी बनाई जिसे अलग से आरक्षण के ब्रैकेट में शामिल किया गया। पिछड़ों के आरक्षण कोटे में यह सब डिवाइडेड था।

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कोटा के भीतर कोटा क्या है?

राज्यों ने आग्रह किया था कि अनुसूचित जातियों में कुछ अभी भी बेहद पिछड़ी हैं जबकि उसी तबके में कुछ अन्य जातियां आगे बढ़ी हैं। अनुसूचित जातियों में असमानता की बात कई रिपोर्ट में भी सामने आई थी। कई राज्यों ने इसके लिए स्पेशल कोटा लागू कर इस समस्या का समाधान करने की कोशिश की थी। जैसे आंध्र प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु और बिहार ने पिछड़े दलितों को लिए कोटा के अंदर कोटा दिया था। 

देश में कितनी अनुसूचित जाति?

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में देश में 1,263 एससी जातियां थीं। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, अंडमान और निकोबार एवं लक्षद्वीप में कोई समुदाय अनुसूचित जाति के रूप में चिह्नित नहीं किया गया।

2005 में आया था ऐतिहासिक फैसला

आंध्र प्रदेश में साल 2000 में जस्टिस रामचंद्र राज्यों की रिपोर्ट के आधार पर राज्य ने एक कानून पास किया जिसमें एससी के भीतर 57 ऐसी जातियों की पहचान की गई और उसके आधार पर एसटी आरक्षण को कई छोटे हिस्सों में बांटा गया। लेकिन इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई। साल 2005 में 5 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि एससी एसटी में कौन सी जातियां शामिल हो सकती है इसका फैसला राज्य नहीं कर सकते, यह अधिकार संविधान के तहत सिर्फ केंद्र के पास है।


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