ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका, विपक्ष की घबराहट का नतीजा है

By योगेन्द्र योगी | Apr 17, 2019

देश के 21 राजनीतिक दलों को नींद से जागकर अचानक ख्याल आया है कि ईवीएम मशीन में गड़बड़ी कराकर सत्तारूढ़ भाजपा सत्ता में वापस आने की कवायद कर सकती है। विपक्षी दलों ने इसी आशंका में चुनाव आयोग से 50 प्रतिशत ईवीएम की वीवीपैट से सत्यापन की मांग की है। इसे तर्कों के आधार पर अव्यवहारिक बताकर चुनाव आयोग खारिज कर चुका है। विपक्षी दल आशंका से भरे इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले जा चुके हैं। वहां से भी संतुष्ट नहीं हो सके। अब जब पहले चरण के चुनाव हो चुके हैं, तब मशीनों के इस तरह के सत्यापन की बात करना विपक्षी दलों की बचकानी हरकत ही लगती है।

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ईवीएम मशीनों में छेड़छाड़ की संभावनाओं को चुनाव आयोग पूर्व में ही खारिज कर चुका है। आयोग ने बाकायदा मशीनों की कार्यप्रणाली का प्रदर्शन करके सभी को आश्वस्त करने का पूरा प्रयास किया कि किसी भी तरह से इनसे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। इसके बावजूद विपक्षी दल लगातार इस पर संदेह जाहिर कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ईवीएम का इस्तेमाल देश में चुनाव कराए जाने के लिए पहली बार हो रहा हो। इससे पूर्व के चुनावों में भी इसका इस्तेमाल होता रहा है। 

 

ईवीएम को लेकर सर्वाधिक गर्मी टीडीपी अध्यक्ष और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू दिखा रहे हैं। नायडू पहले चरण के मतदान में ईवीएम में खराबी को लेकर आयोग तक पहुंचे। उन्होंने यहां भी शक्ति प्रदर्शन का प्रयास किया। नायडू के समर्थन में ही अन्य विपक्षी दल भी स्वर में स्वर मिला रहे हैं। गौरतलब है कि नायडू कुछ अर्से पहले तक केंद्र सरकार में भागीदार थे। चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार पर आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए टीडीपी ने समर्थन वापस ले लिया। विशेष राज्य के दर्जा दिए जाने में केंद्र की वायदा खिलाफी नायडू को चुनाव से कुछ अर्से पहले ही नजर आई। इससे पहले हुए चुनावों में भी नायडू को ईवीएम में कोई खराबी नहीं दिखी। 

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पूर्व के चुनावों में उन्होंने इसके इस्तेमाल के खिलाफ धरना−प्रदर्शन तो दूर बयान तक जारी नहीं किया। उस वक्त नायडू और अन्य विपक्षी दलों को देश का लोकतंत्र खतरे में नजर नहीं आया। अब अचानक लोकतंत्र के लिए खतरा माना जा रहा है। चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इस मुद्दे पर कांग्रेस की हालत सांप−छछूंदर जैसी है, जिसे ना तो उगला जा सकता है और ना ही निगला। विपक्षी दलों के मुद्दों को समर्थन देना कांग्रेस की मजबूरी बन चुकी है। विपक्षी दलों ने कांग्रेस की सियासी जमीन को कमजोर देखकर पहले ही अपने राज्यों में गठबंधन करने से इंकार कर दिया। कांग्रेस की कमजोर हालत को देखकर कोई भी दल अपने राज्य में सत्ता के बंटवारे के लिए तैयार नहीं हुआ। कांग्रेस को चुनाव के बाद यदि सत्ता की थोड़ी आस बंधती भी है तो इन्ही क्षेत्रीय दलों के भरोसे। 

 

कांग्रेस के केंद्र में सत्ता में रहने के दौरान ही ईवीएम का चुनावों में उपयोग होना शुरू हुआ था। उस वक्त तक कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों को इस आधुनिक तकनीक में कोई कमी नजर नहीं आई। तब किसी ने सवाल नहीं उठाया कि ईवीएम के जरिए मतों में सेंध लगाई जा सकती है। हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को दाल को काला तक नजर नहीं आया, अब पूरी दाल ही काली बताई जा रही है। रहा सवाल मशीनों में तकनीकी खराबी का तो कांग्रेस के दौर में भी कभी−कभी यह समस्या रही है। हर तकनीक में सुधार की संभावना होती है। तकनीकी तरक्की का राज यही है। लगातार सुधार की वजह से ही भारत की आईटी तकनीक विश्व में परचम फहरा रही है। 

 

देश का आईटी सेक्टर जब विश्व में अपना झंडा गाढ़ सकता है तो ईवीएम में गड़बड़ी की संभावनाओं पर भी लगाम लगा सकता है। विपक्षी दलों ने इसकी भी कभी मांग नहीं की। कांग्रेस सहित अन्य दलों की मांग में ईवीएम में कमी कम और चुनाव परिणामों की घबराहट अधिक नजर आती है। इससे लगता है कि विपक्षी दल भाजपा के प्रभावी तरीके से चुनाव प्रचार करने से परेशान होकर तकनीक की आड़ में चुनाव आयोग को निशाना बनाकर असली मुद्दे से हटना चाहते हैं। इसका कारण है जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल सत्ता में वहां उनके खिलाफ भी कम आरोप नहीं हैं, केंद्र की भाजपा गठबंधन सरकार के खिलाफ जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वहीं आरोप राज्यों में उन पर भी लग रहे हैं। 

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भाजपा के राष्ट्रवाद और सुरक्षा के नारे के खिलाफ देश में तैयार जनमानस की मजबूत काट विपक्षी दल अभी तक नहीं ढूंढ पाए हैं। केंद्र सरकार बेशक विकास और रोजगार के प्रदर्शन को लेकर कमजोर रही हो, किन्तु भ्रष्टाचार पर लगातार वार करने से कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय सत्तारूढ़ दलों में खलबली मची हुई है। भ्रष्टाचार का भूत कांग्रेस का तो पीछा ही नहीं छोड़ रहा है। कांग्रेस के करीब एक दर्जन नेता और इनके करीबी भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे हैं। पूर्व के कांग्रेस शासन में हुए घोटालों की फेहरिस्त भी कम नहीं है। इसके विपरीत विपक्षी दल केंद्र सरकार के खिलाफ अभी तक कोई बड़ा घोटाला साबित करने में सफल नहीं हो सके है।

 

भाजपा सरकार के खिलाफ युद्धक विमान राफेल के जरिए भ्रष्टाचार साबित करने का मुद्दा भी सफल नहीं हो सका। राफेल को लेकर कांग्रेस के आरोपों पर भी विपक्षी दल एकजुट नहीं है। यही वजह है सभी दलों ने मिलकर संसद से लेकर सड़क तक इस मुद्दे पर एक दिन भी बंद या धरने−प्रदर्शन का आयोजन नहीं किया। यहां तक की विपक्षी दलों के महागठबंधन की कवायद के दौरान भी इस मुद्दे को नहीं उठाया गया। सुप्रीम कोर्ट से भी राफेल के मुद्दे पर कांग्रेस को कुछ राहत नहीं मिल सकी। देश में ज्यादातर राज्यों में विपक्षी क्षेत्रीय दलों का मुकाबला भाजपा से होना माना जा रहा है। यही वजह है कि क्षेत्रीय दल चुनाव आयोग को लेकर ज्यादा मुखर हो रहे हैं। विपक्षी दलों को यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे बेबुनियाद मुद्दों पर ना तो मतदाताओं को बरगलाया जा सकता है और ना ही चुनाव जीतने के मंसूबे पूरे किए जा सकते हैं। मतदाताओं के सामने जब तक हकीकत में किए गए विकास के दावे पेश नहीं किए जाएंगे तब विपक्षी दलों के तमाम दावे हवाई ही साबित होंगे।

 

- योगेंद्र योगी

 

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