By अभिनय आकाश | Mar 19, 2024
जून 2013 की वो तारीख जब पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना के घर पर रॉकेट का हमला हुआ। इसके साथ ही जिन्ना के आवास पर लगे पाकिस्तान के झंडे को भी एक अलग ध्वज से बदल दिया। झंडा था बीएलए का यानी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी। पाकिस्तान में आतंकी हमले लगातार देखने को मिलते हैं। जिसमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का नाम अक्सर सामने आता है। दरअसल, बलूचिस्तान के लोगों का मानना है कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त उन्हें जबरदस्ती पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया। वो खुद को एक आजाद मुल्क के तौर पर देखना चाहते थे। ऐसा नहीं हो सका इसलिए इस प्रांत के लोगों का पाकिस्तान की सरकार और वहां की सेना के साथ संघर्ष चलता रहा और वो आज भी बरकरार है।
पाकिस्तान को अपना देश क्यों नहीं मानता बलूचिस्तान?
बलूचिस्तान का मानना है कि हमारे पास अफगानिस्तान और ईरान की तरह एक अलग संस्कृति है और अगर केवल यह कि हम मुसलमान हैं और इस्लाम को मानते हैं तो हमें पाकिस्तानी नहीं समझें। अगर ये पैमाना है तो अफगानिस्तान और ईरान को भी पाकिस्तान के साथ मिला दिया जाना चाहिए। माना कि हमारे पास पैसा नहीं है, लेकिन हमारे पास प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधन हैं। हमारे पास जीवंत बंदरगाह हैं, हमारे पास आय के असीमित स्रोत हैं। हमारी आर्थिक मजबूरियों के नाम पर हमें गुलामी में धकेलने की कोशिश मत करो। बलूचिस्तान पाकिस्तान के पश्चिमी भाग में पड़ता है। इसकी सीमाएं अफगानिस्तान और ईरान से लगती हैं। यहीं पर ग्वादर पोर्ट भी है जो चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का हिस्सा है। इससे आपको अंदाजा लग गया होगा कि यहां के लोगों की शिकायत क्या है। यहां के लोग तंग आ चुके हैं, जो जबरदस्ती दोहन की कोशिश पाकिस्तान की सेना और सरकार के द्वारा की जाती है जबकि इससे इतर पढ़ाई और बेसिक जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
ग्वादर बंदरगाह और चीन
अक्सर ग्वादर बंदरगाह चर्चा में होता है। ये बंदरगाह बलूचिस्तान में ही है, जिसे चीन विकसित कर रहा है। यहां बलूच लोगों के लिए रोजगार के काफी अवसर हो सकते थे। लेकिव ऐसा नहीं हुआ। इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए कुशल श्रमिक बुलाए गए और पूरा क्षेत्र चीन के नियंत्रण में आ गया। इस स्थिति के प्रति भी यहां के लोगों में जबरदस्त आक्रोश है। जिसके परिणाम स्वरूप समय-समय पर चीनियों पर यहां हमले होते रहते हैं। पाकिस्तान की जनता देश में चीन की मौजूदगी और उसके बेल्ट एंड रोड परियोजना से काफी परेशान हैं। दरअसल, पाकिस्तान के ग्वादर में चीन की परियोजनाओं की वजह से जगह-जगह पर अनावश्यक चौकियां बनाई गई है। ग्वादर को कांटेदार बाड़ से घेर दिया गया है। ग्वादर में बलूची लोगों को प्रवेश करने के लिए ठीक उसी तरह से परमिट लेने की जरूरच पड़ रही है जिस तरह से एक देश से दूसरे देश में जाने के लिए वीजा की आवश्यकता होती है। चीन को ये पता है कि उसके जितने भी व्यापार होते हैं वो समुद्री रास्ते से होते हैं। इसलिए चीन सीपीईसी का सहारा लेता है। सीपीईसी इतना खर्चीला प्रोजक्ट है जिसने पाकिस्तान की जीडीपी को चौपट कर दिया। रतलब है कि ग्वादर बंदरगाह का उद्धाटन सबसे पहले 2002 में हुआ था। जब इसे चीन और पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) परियोजना का हिस्सा बनाया गया। तब फिर से इसका उद्घाटन हुआ। ग्वादर के लोगों से वादा किया गया था कि इस परियोजना से उनकी और पाकिस्तान की जनता की जिंदगी बदल जाएगी। लेकिन वर्तमान दौर में आलम ये है कि यहां पानी और बिजली की भारी किल्लत हो गई है और अवैध मछली पकड़ने से आजीविका पर खतरा आ गया है। जिसकी वजह से यहां के लोगों का जीना मुश्किल हो गया है।