World Television Day 2025: सूचना संसार पर ‘टेलीविजन’ ने जमाया अंगद की तरह कदम

By डॉ. रमेश ठाकुर | Nov 21, 2025

चाहें सूचनाएं हों या मनोरंजन के साधन, दोनों ही धड़े अब टेलीविजन के इर्द-गिर्द ठहर गए हैं। सूचनाओं के प्लेटफार्म बेशक बहुतेरे हों, जैसे अखबार, रेडियो, सोशल मीडिया इत्यिदी। पर, टीवी ने दर्शकों का सर्वाधिक हिस्सा अपनी ओर घुमा लिया है। आज ‘विश्व टेलीविजन दिवस’ है जो सालाना नवंबर की 21 तारीख को समूचे संसार में मनता है। वर्ष 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस मकसद के साथ घोषित किया, ताकि निर्णय लेने में टेलीविजन के बढ़ते प्रभाव को पहचाना जा सके और शांति, सुरक्षा और आर्थिक व सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में इसकी भूमिका को सराहा भी जा सके। टेलीविजन दर्शकों को उनकी पसंद का सारा का सारा मनचाहा मटेरियल घर बैठे-बिठाए परोस रहा है। इसलिए कह सकते हैं कि टेलीविजन ने अंगद की भांति देश-दुनिया की तमाम सूचनाओं और मनोरंजनों के साधनों को पहुंचाने और विचारों के आदान-प्रदान के तौर पर अपने पांव मजबूती से जमा लिए हैं।

  

भारत में टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत दिल्ली से 15 सितंबर, 1959 को हुई, जो कुछ वर्षों में तेजी से रफतार पकड़ी। टीवी के आविष्कार की जहां तक बात है, तो एक प्रसिद्व स्कॉटिश इंजीनियर हुआ करते थे जिन्होंने टीवी को पहली मर्तबा खोजा। नाम था ‘जॉन लोगी बेयर्ड’। जॉन ने वर्ष-1924 में टीवी का श्रीगणेश किया। फिर 1927 में संसार में पहले वर्किंग टेलीविजन का निर्माण हुआ, जिसे सितंबर की पहली तारीख और सन-1928 को प्रेस के सामने प्रस्तुत किया गया। इसके बाद टीवी ने अपना ऐसा प्रभाव छोड़ा, जिसके सामने समूचा संसार नतमस्तक हो गया। वैसे, कलर टेलीविजन के आविष्कार का भी श्रेय महान वैज्ञानिक ‘जॉन लोगी बेयर्ड’ को ही जाता है जिन्होंने ही 1928 में टीवी के सफेद पर्दे को रंगीन में बदला था। उसके बाद से रंगीन टीवी का प्रचलन आरंभ हुआ।

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रेडियो ने जहां आवाज और अखबार ने पठनीय माध्यमों से सूचनाओं को पंख लगाए हैं। वहीं, टेलीविजन ने संचार को दृश्यात्मकता तौर पर आंखें प्रदान कर दी हैं। टेलीविजन की पकड़ सिर्फ मनोरंजन तक नहीं है, बल्कि, समाचार, विचार, शिक्षा और जागरूकता जैसे असंख्य क्षेत्रों में भी अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं। टीवी आमजनों की विभिन्न जिज्ञासाओं को भांप कर उन्हें वैसा ही स्वाद देने का प्रयास करता है। सरकारी योजनाएं हों या सार्वजनिक सूचनाएं सभी मे टीवी का पर्दा अभूतपूर्व और अव्वल भूमिका निभा रहा है। कह सकते हैं कि टेलीविजन सशक्त और द्रुतगति का जरिया बनकर सुगमता के अनगिनत रास्ते खोलने महती भूमिका निभाई हैं।

  

विकास और आविष्कार हमेशा से एक-दूसरे के समानार्थी सहयोगी रहे हैं। ये तथ्य समानरूपी चरितार्थ इसलिए हैं कि विकास और अविष्कार ने मिलकर विगत तीन दशकों में बड़ा विस्तार किया है जिसमें टेलीविजन की अग्रणी भूमिका रही है। यूं कहें कि टेलीविजन का पर्दा प्रत्येक इंसान के जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। जैसे, इंसान पेट की भूख मिटाने के लिए भोजन का नियमित सेवन करता है। ठीक उसी तरह सूचनाओं को जानने के लिए टेलीविजन भी जरूर देखता है। बात कोई वर्ष 1996 के आसपास की है, जब पहली मर्तबा विश्व टेलीविजन फोरम की याद मे हर साल 21 नवंबर को ‘विश्व टेलीविजन दिवस’ मनाने का प्रचलन शुरू हुआ। उसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने लोगों के निर्णय की क्षमता पर ऑडियो-विजुअल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और अन्य प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में टीवी की संभावित भूमिका को पहचानने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया।

  

21वीं सदी में टेलीविज़न ने मुद्रित माध्यम की साक्षर होने की शर्त को भी अनावश्यक प्रमाणित कर दिया। भारतीय संदर्भ में देखें, तो सिनेमा उद्योग आज भी अपनी फिल्मों के प्रमोशन से लेकर रिएलिटी शोज़ को आगे बढ़ाने के लिए टेलीविज़न की ओर ही दौड़ते हैं। दरअसल उनको टीवी की ताकत का अंदाजा अच्छे से है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब देशवासियों से कुछ कहना होता है, तो वह भी टीवी के जरिए ही अपनी जरूरी बात को सभी तक पहुंचाते हैं। मौजूदा वक्त में टीवी की भूमिका में एक और बड़ा अध्याय जुड़ गया है। संचार क्रांति फोटोग्राफी, टेलीग्राफी, रेडियो और टेलीविज़न के आविष्कारों से समृद्ध होते हुए बदलाव का सिलसिला अब इंटरनेट तक पहुंच गया है।

  

ये बात तथ्यात्मक है कि इंटरनेट से पहले रेडियो-टेलीविज़न ने ही संचार क्रांति को आगे बढ़ाया था। अनेक प्रकार की आधुनिक प्रसारण तकनीकों के आविष्कार के कारण रेडियो और टेलीविजन ने सारी दुनिया को एक इकाई के रूप में तब्दील कर दिया था। पर, उसमें अब इंटरनेट की एंट्री हो चुकी है। इंटरनेट की अपनी ताकत है वो टीवी को भी परोसता है। उदाहरण के लिए जब क्रिकेट मैच होते हैं, तब टीवी पर जो दर्शक नहीं देख पाते, वो इंटरनेट के माध्यम से टीवी का जरिया खोज लेते हैं। समय के साथ चीजें बदलती हैं और बदलाव तो प्रकृति का नियम है ही। पर, इतना तय है, इंटरनेट कभी भी टीवी के लिए चुनौती नहीं बन सकता। पत्रकारिता क्षेत्र में टीवी की महत्ता को कोई कमतर नहीं आंक सकता। क्योंकि पत्रकारिता में भी टेलीविज़न ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। चाहे किसी तरह की घटनाएं हो, जैसे, प्राकृतिक आपदाएं, युद्धकाल और मानवाधिकारों के क्षेत्र में भी टेलीविजन ने परिवर्तनकारी भूमिकाएं निभाई हैं।

  

मार्च 2025 तक, भारत में 918 निजी उपग्रह टेलीविजन चैनल थे जिनमें से 908 भारत में डाउनलिंकिंग के लिए उपलब्ध हैं। हालांकि चैनलों की संख्या घटती-बढ़ती रहती हैं। दृश्य टीवी की ताकत होते हैं। कवरेज के दौरान दिखाए गए दृश्यों पर दुनिया आंख मूंदकर विश्वास करती है। बेशक, भारत में टेलीविज़न प्रसारण की शुरूआत देरी से हुई हो, पर हिंदुस्तान में टेलीविज़न पत्रकारिता का इतिहास पुराना है। प्रसारण क्षेत्र पर आजादी के बाद दूरदर्शन का लगभग तीन दशकों तक एकतरफा एकाधिकार रहा। लेकिन अब केबल टीवी और प्राइवेट चैनलों का बोलबाला है। सन 1990 के बाद से प्राइवेट चैनलों पर चौबीस घंटे के समाचार की शुरुआत ने चीजें को बहुत तेजी से बदल डाला। पुरानी रूढ़ व्यवस्थाओं को बदलने से लेकर नए-नए वैज्ञानिक आविष्कारों तक, सभी प्रकार के परिवर्तनों में सूचनाओं के आदान-प्रदान में टीवी की भूमिका अहम रही है और सिलसिला आगे भी बदस्तूर जारी रहेगा।


- डॉ. रमेश ठाकुर

सदस्य, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार!

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