By डॉ. शंकर सुवन सिंह | Jun 01, 2025
दूध सेहत का सार है। दूध वो दरिया है जिसमे सभी को डूब के जाना है। कहने का तात्पर्य यह है कि दूध एक विशाल नदी की तरह है जिसमे प्रत्येक स्तनधारियों को पैदा होने के बाद एक बार डुबकी लगानी ही पड़ती है। अर्थात पैदा होते ही बच्चे सर्वप्रथम अपनी माँ का दूध अवश्य पीते है। दूध को क्षीर, दुग्ध, पय, गोरस,और दोहज आदि नामों से भी जाना जाता है। दूध स्तनधारियों की स्तन ग्रंथियों द्वारा उत्पादित होता है। दूध पोषकता से भरपूर होता है। स्तनधारी प्राणियों का पृथ्वी पर अवतरण होते ही उनके बच्चों के जीवन की शुरुआत दूध से होती है। दूध जीवन को जीवंत करने का विशिष्ट गुण रखता है। अतएव दूध स्तनधारियों के बच्चों के जीवन के विकास के लिए एक मुख्य पोषण स्रोत है। दूध के पोषक तत्व बच्चों के निरोगी भविष्य के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
आउटलाइन्स ऑफ़ डेयरी टेक्नोलॉजी पुस्तक के लेखक सुकुमार डे. के अनुसार दूध की संरचना में पानी, वसा, प्रोटीन, लैक्टोज (दूध की चीनी) और खनिज (लवण) शामिल हैं। इनके अलावा, दूध में अन्य पदार्थ जैसे वर्णक (पिगमेंट), एंजाइम, विटामिन, फॉस्फोलिपिड और गैसें भी मौजूद होती हैं। सामान्यतः पानी की मात्रा लगभग 87.34% होती है। वसा लगभग 3.75% और प्रोटीन लगभग 3.45%, लैक्टोज लगभग 4.6% और खनिज लगभग 1% से कम होता है। सामान्यतः दूध में व्याप्त पूर्ण ठोस (टोटल सॉलिड) जो लगभग 12.66 प्रतिशत है उसी की वजह से दूध अपारदर्शी है और दूध में व्याप्त पानी जो लगभग 87.34 प्रतिशत है उसकी वजह से दूध तरल है। अगर हम दूध में मौजूद पानी की बात करें तो सबसे ज्यादा पानी गधी के दूध में 91.5% होता है। पानी की मात्रा घोड़ी में 90.1%, मनुष्य में 87.4%, गाय में 87.2%, ऊंटनी में 86.5% और बकरी में 86.9% होता है। दूध में कैल्शियम, मैग्नीशियम, ज़िंक, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, पोटैशियम, फोलेट्स, विटामिन ए, विटामिन डी, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी-12, प्रोटीन आदि मौजूद होते हैं। गाय के वसा रहित दूध (स्किम्ड मिल्क) में कोलेस्ट्रॉल 2-5 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर होता है। पूर्ण वसा (फुल क्रीम) वाले दूध में कोलेस्ट्रॉल 10-15 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर होता है।
आंकड़ों के अनुसार एक स्वस्थ्य व्यक्ति 300 मिलीग्राम कोलेस्ट्रॉल प्रतिदिन ले सकता है। अतएव दूध पीने से हृदयघात होने की संभावना नगण्य होती है। दूध में मुख्यतः केसिन और व्हेय नामक दो प्रोटीन पाए जाते हैं। दूध में प्रोटीन का 80 प्रतिशत हिस्सा केसिन के रूप में होता है और बाकी 20 प्रतिशत हिस्सा व्हे का होता है। दूध में व्याप्त केसिन प्रोटीन, कैल्शियम और फॉस्फेट के साथ मिलकर छोटे छोटे कण बनाते हैं जिन्हें मिसेल्स कहा जाता है। जब प्रकाश इन मिसेल्स से टकराता है तो यह प्रकाश अपरिवर्तित होकर फ़ैल जाता है। दूध में पाए जाने वाला वसा के कण (फैट ग्लोबुल्स) भी प्रकाश के प्रकीर्णन का कारण बनते हैं। अतएव दूध का रंग सफ़ेद दिखाई देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस दूध में जितना ज्यादा वसा (फैट) होगा उसका रंग उतना ही सफ़ेद दिखाई देगा। गाय के दूध में भैंस के दूध की अपेक्षा वसा (फैट) कम होता है और केसिन नामक प्रोटीन भी कम होता है। इसलिए गाय का दूध हल्का पीला दिखाई देता है। दूध में कैरोटीन और कैसिन नामक दो वर्णक (पिगमेंट) होते हैं जो उसके रंग को प्रभावित करते हैं। अतएव कैरोटीन की वजह से गाय के दूध में हल्का पीला रंग होता है, जबकि कैसिन की वजह से दूध का रंग सफेद होता है। भैंस के दूध में केरोटीन कम होता है और फैट ज्यादा। जबकि गाय के दूध में केरोटीन ज्यादा और फैट अपेक्षाकृत कम होता है। अतएव हम कह सकते हैं कि दूध एक अपारदर्शी, सफेद तरल उत्पाद है।
दूध दिव्य है। यह एक संपूर्ण आहार है। डेयरी (दुग्धशाला), दूध का स्रोत हैं। दूध पोषक तत्वों का स्रोत है। डेयरी (दुग्धशाला) वो शब्द है जिसमे दूध और दूध से बने सभी उत्पाद के रखरखाव, संरक्षण और पैकेजिंग आदि की व्यवस्था होती है। डेयरी शब्द को दुग्ध उद्योग से जोड़ कर देख सकते हैं। दूध को विभिन्न डेरी उत्पादों में परिवर्तन के लिए प्रसंस्करण किया जाता है। दूध के विभिन्न उप उत्पाद भी होते हैं जिन्हे तकनीकी भाषा में मिल्क बाई प्रोडक्ट (दूध के उप उत्पाद) भी कहा जाता है। डेयरी उत्पाद में दूध प्राथमिक घटक के रूप में प्रयोग होता है। जैसे की दूध, दही, पनीर, आइसक्रीम। डेयरी उप उत्पादों में व्हेय, छाछ, स्किम मिल्क, घी के अवशेष (घी रेज़िड्यू) आदि आते हैं। दूधऔर डेयरी (दुग्धशाला) का सम्बन्ध बगिया और माली जैसा है। जिस प्रकार एक माली अपनी बगिया को सींचता और सम्हालता है। उसी प्रकार एक माली रूपी डेयरी (दुग्धशाला), बगियारूपी दूध को सम्हालता और संरक्षित करता है। डेयरी (दुग्धशालाएँ) दूध की सुंदरता और उनकी दिव्यता का द्योतक है। दूध का रखरखाव और उसको ताजा बनाए रखने की जिम्मेदारी डेयरी (दुग्धशाला) की होती है। जिसको तकनीकी भाषा में शेल्फ लाइफ ऑफ़ मिल्क कहा जाता है। अर्थात दूध की पोषकता को लम्बे समय तक बनाए रखना। पोषकता का सम्बन्ध शुद्धता से होना चाहिए। शुद्ध दूध ही एक स्वस्थ्य शरीर का परिचायक है।
आजकल दूध की पोषकता को बढ़ाने के लिए या उसे संरक्षित करने के लिए दूध में रासायनिक पदार्थों या अपशिष्ट पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफ एस एस ए आई) ने दुग्ध उद्योगों को मेलामाइन मिलाने की अनुमति दी। जिसके अनुसार सूखे दूध का इन्फेंट फार्मूला (शिशु दूध) बनाने वाली कोई भी कंपनी 1 किलोग्राम सूखे दूध में 1 मिली ग्राम मेलामाइन मिला सकती है। लिक्विड इन्फेंट फार्मूला जैसे कि लिक्विड मिल्क (तरल दूध) में यह 0.15 मिली ग्राम प्रति लीटर और अन्य खाद्य पदार्थो में 2.5 मिली ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से मेलामाइन नाम का जहर मिलाने की खुली छूट है। एफ एस एस आई कि छूट के आधार पर डेयरी उद्योग चोरी छुपे मेलामाइन की अधिक मात्रा मिला देता है। जिससे दूध और दूध से बने उत्पाद सेहत के लिए खतरा बन जाते हैं। सरकार को मेलामाइन को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर देना चाहिए। मेलामाइन एक कार्बन आधारित रसायन होता है, जिसे दूध और डेयरी उत्पादों में मिलावट करने के लिये प्रयोग किया जाता है। उल्लेखनीय है कि दूध और डेयरी उत्पादों में मेलामाइन की मिलावट करने से गुर्दे संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं और गुर्दा पूर्णतः खराब भी हो सकता है। कई बार दूध के व्यापारी दूध की मात्रा को बढ़ाने के उद्देश्य से उसमें पानी मिला देते हैं, जिससे दूध में प्रोटीन की मात्रा काफी कम हो जाती है। इस प्रोटीन की मात्रा को संतुलित करने के लिये दूध व्यापारियों द्वारा दूध में मेलामाइन मिलाया जाता है। व्यापक तौर पर मेलामाइन का प्रयोग प्लास्टिक, गोंद, काउंटरटॉप्स और व्हाइटबोर्ड आदि बनाने के लिये किया किया जाता है। कुछ इसी प्रकार से पनीर को मुलायम बनाए रखने के लिए बहुत से लोकल और ब्रांडेड डेयरी उद्योग फार्मेलिन नामक रसायन का उपयोग करते हैं जो की कानूनी रूप से प्रतिबंधित है। ये फार्मेलिन कैंसर जैसी घातक बीमारी का कारण बनती है।
अभी हाल ही में लखनऊ शहर में खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा मारे गए छापे में 36 खाद्य नमूने (सैंपल) में से 12 आउटलेट्स के नमूने जांच में फ़ैल पाए गए। जिसमे छप्पन भोग के मावा में मिलावट पकड़ी गई और हल्दीराम के खाद्य पदार्थ के नमूने जाँच में फेल पाए गए। इससे साबित होता है कि पैसा कमाने की होड़ में शरारती तत्व डेयरी उद्योग की आड़ में लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे है। डेयरी उद्योगों (दुग्धशालाओं) के लिए शुद्धता ही प्राथमिकता होनी चाहिए। अधिकांश डेयरी उद्योग (दुग्धशालाएं) शुद्धता का ख्याल रखते हैं और शुद्ध दूध को ही जन जन तक पहुँचाते हैं। भारत में ब्रांडेड डेयरी (दुग्ध्शाला) में अमूल, पारस, ज्ञान, नमस्ते इंडिया, सुधा, आदि डेयरी आती है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में भी बहुत सी लोकल सर्टिफाइड डेयरी (दुग्धशालाएँ) काम कर रही हैं। ये सभी गुणवत्ता व शुद्धता के मामले में काफी आगे हैं। ये सभी डेयरी दूर दराज में रहने वाले लोगों के लिए राम बाण साबित होती हैं। जिस शहर और क्षेत्र में दुग्ध उत्पादन की कमी होती है, वहाँ इन डेयरी (दुग्ध्शाला) द्वारा कमी को पूरा किया जाता है। कुल मिलाकर जनसँख्या के हिसाब से दूध की जितनी खपत है भारत दूध का उतना उत्पादन करने में सक्षम है। अतएव हम कह सकते हैं कि दुग्धशालाएं, दूध को संरक्षित और सुरक्षित करती हैं। विश्व में भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है। वर्ष 2025 में विश्व दुग्ध दिवस की 25 वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही है।
विश्व दुग्ध दिवस प्रत्येक वर्ष 1 जून को मनाया जाता है। विश्व दुग्ध दिवस 2025 का थीम/प्रसंग है- आइए डेयरी की शक्ति का जश्न मनाएं। असली मायने में हम डेयरी की शक्ति का जश्न तभी मना सकते हैं जब हर घर दूध और दूध से बने उत्पाद शुद्धता के साथ पहुंचे। डेयरी उत्पाद का शुद्ध होना आवश्यक है। शुद्धता ही असली स्वास्थ्य की निशानी है। तभी हम कह सकते हैं कि दूध व दूध से बने उत्पाद वैश्विक पोषण का आधार हैं। भारत सरकार ने दूध और दूध उत्पादों की शुद्धता की जांच के लिए कानूनी प्रावधान की व्यवस्था कर रखी है जो इस प्रकार है- खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2016 के अंतर्गत खाद्य पदार्थों में मिलावट करना या मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचना एक अपराध है। दूध और दूध उत्पादों में मिलावट करने पर कठोर दंड का प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत खाद्य सुरक्षा अधिकारी दूध और दूध उत्पादों के नमूने ले सकते हैं और उन्हें जांच के लिए भेज सकते हैं। यदि कोई मिलावट पाई जाती है, तो अधिकारी उचित कार्रवाई कर सकते हैं। भारत में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड डेयरी उद्योग के विस्तार के लिए काम करती है।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एन डी डी बी) के संस्थापक डॉ. वर्गीस कुरियन थे। डॉ. वर्गीस कुरियन को भारत में श्वेत क्रांति का जनक भी कहा जाता है। लोगों या किसानों को डेयरी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की कुछ योजनाएं हैं जिनका लाभ उठाया जा सकता है। भारत सरकार की डेयरी उद्यमिता विकास योजना (डी ई डी एस) के तहत आम नागरिक और किसान मिल्क कलेक्शन सेंटर खोल सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की नंदिनी कृषक समृद्धि योजना, कामधेनु डेयरी योजना, नंद बाबा डेयरी मिशन आदि योजनाएं एक सफल डेयरी उद्योग खोलने में मदद कर सकती हैं। अतः बिना डेयरी उद्योग (दुग्धशाला) के दूध की दिव्यता अधूरी है। यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि दूध की दिव्यता का स्रोत डेयरी (दुग्धशाला) ही हैं। डेयरी (दुग्धशाला) सेक्टर आत्मनिर्भरता की कुंजी है। देश में बढ़ते डेयरी उद्योग लोगों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। आत्मनिर्भरता स्वतन्त्रता का सूचक है। स्वतन्त्रता सकून और शांति को जन्म देती है। अतएव हम कह सकते हैं कि आत्मनिर्भरता डेयरी (दुग्धशाला) की शक्ति का परिचायक है।
- डॉ. शंकर सुवन सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर
फ़ूड एंड डेयरी इंजीनियरिंग विभाग
सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज
नैनी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)