खास तरीके से बनाई जाती है मां दुर्गा की प्रतिमा, पंडालों की भव्यता में लगता है चार चांद

By अंकित सिंह | Oct 07, 2021

नवरात्र शुरू हो चुका है। नवरात्र में शक्ति की देवी मां दुर्गा की आराधना होती है। माता शैलपुत्री की पूजा के साथ ही 10 दिन तक चलने वाले इस महात्योहार के आयोजन में लोग जुट जाते हैं। सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन पूजा पंडालों में भयंकर भीड़ होती है। श्रद्धालु पूजा पंडाल में जाकर मां दुर्गा की पूजा करते हैं। पूजा पंडालों की भव्यता और सुंदरता देखने ही बनती है। पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वांचल में दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है। इन क्षेत्रों में हर चौक-चौराहे पर पंडाल में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। वहां मेला लगता है, आसपास के लोग घूमने जाते हैं और खूब मस्ती भी होती है। माता दुर्गा की मूर्ति और इसके लिए पंडाल को लेकर बेहद ही खास इंतजाम किए जाते है। हर पूजा समितियों की कोशिश होती है कि उनके यहां स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा भव्य हो और मनोरम हो। आज हम आपको बताते हैं कि मां दुर्गा की प्रतिमा बनाते समय किन बातों का ध्यान रखा जाता है और किस चीज का इस्तेमान किया जाता है।

 

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माता दुर्गा की प्रतिमा में जिन पांच तत्वों का अत्यंत महत्व है। उनमें वैश्यालय की मिट्टी, गोमूत्र, गाय का गोबर, गंगा का कीचड़, तिनके और बांस की डंडियां शामिल हैं। इनके अलग अलग महत्व है।


वैश्यालय की मिट्टी

वैश्यालय की मिट्टी मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने में जरूर इस्तेमाल किया जाता है। इस मिट्टी का होना महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि जब लोग वैश्यालय जाते हैं तो अपनी पवित्रता के साथ पूरी तपस्या भी वहीं छोड़ कर आते हैं। यही कारण है कि वैश्यालय की मिट्टी को पवित्र माना जाता है और उसका इस्तेमाल मां दुर्गा के प्रतिमा बनाने में किया जाता है।


गोमूत्र और गाय का गोबर

हिंदू धर्म में गोमूत्र का अत्यंत महत्त्व स्थान माना जाता है। गोमूत्र के साथ-साथ गाय का गोबर भी बेहद पवित्र माना जाता है। यही कारण है कि दोनों का इस्तेमाल मां दुर्गा की मूर्ति बनाने में किया जाता है। हिंदू धर्म में गाय पवित्र पशु है। ऐसे में उसका दूध, गोबर मूत्र सभी पूजा में शामिल होते है। गोबर के लिए माना जाता है कि वह वातावरण को शुद्ध करता है। यही कारण है कि देवी की मूर्तियों को बनाते समय मिट्टी के साथ-साथ गोमूत्र और गाय का गोबर का इस्तेमाल किया जाता है। 

 

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गंगा का कीचड़

हिंदू धर्म के मुताबिक गंगा सबसे पवित्र नदी मानी जाती है और हिंदू धर्म में गंगा का मां को दर्जा दिया जाता है। यही कारण है कि गंगा के पानी के साथ-साथ उसके कीचड़ का भी इस्तेमाल मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए किया जाता है। साथ ही साथ मां दुर्गा की प्रतिमा के लिए गंगा किनारे की मिट्टी भी उपयोग में लाया जाता है। 


तिनका

तिनके का इस्तेमाल मिट्टी को गुथने के लिए किया जाता है ताकि मूर्ति कठोर और मजबूत रहे। इसमें सबसे ज्यादा भूसी का इस्तेमाल किया जाता है जो आमतौर पर गेहूं और धान की फसलों से निकली हुई होती हैं।


बांस की डंडियां 

बांस की डंडियां कुल मिलाकर मूर्ति का सबसे अहम हिस्सा माना जा सकता है। बांस की डंडियों का उपयोग करके ही मूर्ति बनाई जाती है। बांस की डंडी में ऊपर से पुआल बांधा जाता है। उसके बाद उस पर मिट्टी तथा कीचड़ लगाया जाता है और उसे ठोस होने के लिए छोड़ा जाता है। 

 

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वर्तमान में समय में देखें तो मूर्ति को भव्य, चमकीला और आकर्षक बनाने के लिए तरह-तरह के रंगों का प्रयोग किया जाता है। हालांकि कई जगह प्राकृतिक रंग का इस्तेमाल होता है। मां दुर्गा का श्रृंगार करने के लिए विभिन्न प्रकार के साड़ी, बिंदी, नकली औजार का भी इस्तेमाल किया जाता है। 

 

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