नाखुश ईश्वर ने कहा.... (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Sep 20, 2025

खूबसूरत बाग़ में पक्षियों की चहचहाहट के बीच, ईश्वर संग टहलती पत्नी ने कहा, ‘देश के कुछ हिस्सों में, पानी ने तबाही मचा रखी है। मानव स्थाई रखवाले के रूप में आपको पुकार रहा है। आपने कभी कहा था, जब धरतीवासी परेशान होंगे तो मानवता की रक्षा एवं सुकर्मों की पुनर्स्थापना हेतु अवतार लूंगा।’ 


ईश्वर बोले, ‘मैंने मानव को सांकेतिक रूप से एक बार नहीं कितनी ही बार समझाया मगर उसे कभी समझ नहीं आया। बहुत समय बीत गया लेकिन उसने बार बार, लगातार मनमाना अवैज्ञानिक विकास किया। अपनी तिजोरियां धन से भरने के लिए प्रकृति के पहाड़ फाड़ डाले। अवांछित चौड़ी सड़कें, सुरंगे, पुल बनाने के लिए लाखों करोड़ों वृक्ष कलम कर दिए। जहां बरसात का जल इक्कठा होकर तालाब बना रहता था, वहां बड़ी बड़ी इमारतें बना डाली। नदियों को नहीं बख्शा उनका मार्ग बदलने की गुस्ताखी की। जल प्रदूषित किया। शातिर लोगों ने अपने स्वार्थ को सबसे ऊपर रखा। सामयिक स्वार्थी, अवसरवादी राजनेताओं ने इसमें खूब मदद की। यह आपदाएं मानव निर्मित है जिनका श्रेय राजनीति, ठेकेदार और अधिकारियों को जाता है लेकिन दोष प्रकृति को दिया जा रहा है।’ 

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‘जिनकी जान माल की हानि हुई है उनके लिए विकट समस्या है। किया किसी और ने, भुगत कोई और रहा है। ऐसे विकट समय में सदभाव और सहायता की ज्यादा ज़रूरत है लेकिन समाज के तथाकथित नायक आपसी दोषारोपण कर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। बेचारे राजनेताओं को मजबूरी में ज्यादा लोकसेवा करनी पड़ रही है। भगवान, आपको नहीं लगता अब दुनिया के नवीनीकरण का समय आ गया है। अब तो आपको सक्रिय होना ही पड़ेगा।’ पत्नी ने आशा व्यक्त की। 


ईश्वर ने कहा, ‘इंसानियत को दुखी करने में इंसान ही सबसे आगे है। असीमित खजाना पूजा घरों में जकड़ा हुआ है जिनके बाहर अंधी आस्था व बहरे अंधविश्वास का पहरा है और सामाजिक आर्थिकी डांवाडोल है। आयोजनों से मुझे रिझाना चाहते हैं लेकिन सच्चे धार्मिक व्यक्ति और प्रतिबद्ध भक्त कम हैं। जाति, सम्प्रदाय, धर्म, अर्थ बारे उचित बात सुनने, समझने को तैयार नहीं हैं। दुनियावाले, प्रकृति के पांच तत्वों, पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश और वायु का सांमजस्य बिठाए रखते तो मानव जीवन संतुलित रहता। इनके साथ इंसान ने जी भर कर मनमानी की है। प्रकृति अब मानवीय अत्याचार नहीं सहेगी  वह अब निरंतर जवाब देगी और इसी तरह से देगी। मैं धरतीवासियों से बहुत नाराज़ हूं।’  


ईश्वर बोले, ‘पथभ्रष्ट लोग ऐसे नहीं सुधरते, उन्हें सीधा करने के लिए, अनुचित विकास का विनाश करने का रास्ता अपनाना पड़ता है। फिलहाल मैं वहां नहीं जाउंगा और जो होना चाहिए, होकर रहेगा। मेरे प्रिय समझदार लोग, लेखक, पर्यावरण प्रेमी और समाज सेवक ईमानदार प्रयास कर रहे हैं। अब लालची लोगों को सबक सिखाना ज़रूरी हो गया है।’ 


पत्नी समझ गई थी कि ईश्वर अभी नाराज़ हैं। उन्हें पता था कि बिगड़े हुए धरतीवासियों को ज़्यादा शक्तिशाली, झकझोर देने वाली यानी जो सचमुच बदलाव ला सके ऐसी चेतावनी की ज़रूरत है।


- संतोष उत्सुक 

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