तीन पार्टियों ने रखा CM का चेहरा, लालू ने लड़ाया, अगले चुनाव में उन्हीं को हराया, ऐसा रहा है शरद का सफर

By अभिनय आकाश | Feb 14, 2020

नए साल के साथ ही चुनावों का दौर भी शुरू हो गया। दिल्ली विधानसभा के चुनाव संपन्न हो चुके हैं और जनता ने आम आदमी पार्टी की झोली वोटों से भर दी। दिल्ली के बाद इस साल के आखिर में बिहार में विधानसभा चुनाव हैं। जिसको लेकर अभी से तैयारियां दिखने लगी है। चुनावी तैयारियों के मद्देनजर राजधानी पटना में बैठकों का दौर भी जारी है। महागठबंधन के नेताओं ने बैठक करते हुए शरद यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने की मांग की है। महागठबंधन के तीन दलों के नेता जीतन राम मांझी (हम), उपेंद्र कुशवाहा (रालोसपा) और मुकेश साहनी  (वीाईपी) ने पटना में लोकतांत्रिक जनता दल प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव को सीएम पद का उम्मीदवार बनाने की मांग की है। इस बैठक के लिए कांग्रेस या आरजेडी के किसी नेता को न्योता नहीं दिया गया था। सूत्रो से मिली जानकारी के अनुसार उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश साहनी ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के महागठबंधन के नेता होने पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 

1974 में जबलपुर लोकसभा का उपचुनाव जीत कर युवा शरद यादव ने देश की राजनीति में पहली बार ये संदेश दिया था कि इंदिरा गांधी के लहर को भी मात दी जा सकती है। इसके बाद वे गैर कांग्रेसवाद के सबसे बड़े प्रतीक बनकर उभरे थे। जनता पार्टी के दौर में वे देश के बड़े नेता रहे। 1989 में वीपी सिंह की जनमोर्चा सरकार में भी उनका कद बड़ा ही रहा। उनकी हैसियत किंगमेकर की थी। बिहार की राजनीति में या यूं कहें कि मधेपुरा में एंट्री लालू प्रसाद के माध्यम से हुई थी। 1991 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव पहली बार जनता दल के उम्मीदवार बनकर मधेपुरा पहुंचे, उनके मुकाबले खड़े थे आनंद मोहन। जहां उन्होंने जीत दर्ज की।

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1998 में मध्यावधि चुनाव हुआ तो इस बार मधेपुरा से लालू प्रसाद ने खुद चुनाव लड़ने की ठानी। लालू का पूरा कुनबा मधेपुरा पहुंचा। दोनों ओर से जबरदस्त तैयारी थी। देश दुनिया की निगाहें मधेपुरा की ओर लगी थीं. चुनाव परिणाम जब सामने आया तो शरद यादव पराजित हो गये। मगर, लालू प्रसाद की यह खुशी अधिक दिनों तक नहीं टिक सकी और देश की राजनीति ने तेजी से करवट ली। अगले साल फिर मध्यावधि चुनाव हुए और एक बार फिर मधेपुरा सुर्खियों में आ गया। जब लालू प्रसाद और शरद यादव एक दूसरे के खिलाफ खड़े हुए। लेकिन इस बार मतदाताओं ने शरद को आशीर्वाद दिया और लालू चुनाव हार गए। 

 

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