एडवांस्ड वैस्कुलर इंटरवेंशन तकनीक से अब सम्भव हो सकेगा एंडोवैस्कुलर बीमारियों का इलाज

By राजीव शर्मा | Nov 25, 2021

मेरठ, एंडोवैस्कुलर इंटरवेंशन तकनीकों के क्षेत्र में हालिया तरक्की की बदौलत पेरिफेरल आर्टेरियल डिजीज (पीएडी), डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीवीट), वेरिकोस वेन्स जैसी कई बीमारियों से पीड़ित मरीजों का इलाज हो सकता है ताकि उनके जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो सके। मिनिमली इनवेसिव तकनीकों के आने से अब ज्यादातर मामलों में सर्जिकल या खुली प्रक्रिया (अंगच्छेदन आदि) की जरूरत नहीं पड़ती है।


इस बारे में लोगों को जागरूक करने की जरूरत महसूस करते हुए मैक्स हॉस्पिटल पटपड़गंज, नई दिल्ली ने आज एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया। इस बारे में डॉ. कपिल गुप्ता ने विस्तार से बताया जो खुद कई ऐसे मरीजों के जटिल मामलों का सफल इलाज कर चुके हैं जिनकी जिंदगी या अंग लगभग अंतिम अवस्था में पहुंच चुके थे। उन्होंने इन सभी मरीजों का सफल इलाज मिनिमली इनवेसिव एंडोवैस्कुलर प्रक्रियाओं से ही किया।

डॉ. कपिल गुप्ता, मैक्स हॉस्पिटल, पटपड़गंज नई दिल्ली में प्रिंसिपल कंसल्टेंट तथा वैस्कुलर एंड एंडोवैस्कुलर सर्जरी के इंचार्ज हैं। उन्होंने बताया, 'सही समय पर इलाज शुरू कराने से वैस्कुलर की स्थिति बेहतर करने में मदद मिलती है और वैस्कुलर तकनीकों की तरक्की भी समय के साथ बेहतर होती जा रही है। शहरी क्षेत्रों में खानपान की खराब आदतें और श्रमरहित लाइफस्टाइल का चलन तेज हुआ है जिस कारण वैस्कुलर स्थितियों वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ने लगी है। पेरिफेरल आर्टेरियल डिजीज (पीएडी), डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) और अन्य स्थितियों की सही समय पर डायग्नोसिस हो जाए तो इनका इलाज संभव है और मरीजों को बेहतर जीवन मिल सकता है।


मेरठ के सुभाष त्यागी की बाईं टांग में नसों के खिंचाव के कारण तेज दर्द और सूजन था। विस्तृत जांच के बाद पता चला कि उसे वेरिकोज वेन्स है जिस कारण लगातार दर्द और सूजन की शिकायत आ रही थी और कई बार एड़ी पर घाव हो जाता था जो भरता नहीं था। इस वजह से टूटी नसों से रक्तस्राव होने लगता था। उसे रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन नामक एडवांस्ड स्टिचलेस इलाज दिया गया और अब वह अच्छा हो गया है तथा उसकी शिकायतें भी दूर हो गई हैं।


डॉ. गुप्ता कहते हैं, 'वेरिकोस वेन्स की स्थिति में पहले नसों को सीलने के लिए सर्जरी प्रक्रिया अपनाई जाती थी जिस कारण टांगों की सुंदरता बिगड़ जाती थी और ज्यादातर मामलों में यह स्थिति फिर से उभर जाती थी। लेकिन अब रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन (आरएफए) जैसी नॉन—इनवेसिव प्रक्रियाएं आने से मरीजों पर इसका सर्वाधिक असर होता है और मरीज के वेरिकोस वेन का उसके अनुकूल इलाज हो पाता है।'


उन्होंने कहा, 'पेरिफेरल आर्टरी डिजीज एक सामान्य सर्कुलेटरी समस्या है जिसमें संकीर्ण आर्टरी अंग के रक्तप्रवाह को कम कर देते हैं। शुरुआती चरण में तो इसे ब्लड क्लॉट मेडिटेशन, थ्रोम्बोलिटिक थेरापी या एंजियोप्लास्टी से ठीक कर लिया जाता है लेकिन जब ब्लॉकेज बहुत ज्यादा होने लगता है तो बायपास सर्जरी की नौबत ही आती है। इसमें अवरुद्ध या संकीर्ण आर्टरी को ठीक करने में लंबे समय तक सर्जरी करनी पड़ती है। इसी तरह हार्ट बायपास सर्जरी में शरीर के दूसरे हिस्से से नस लेकर बायपास में लगाया जाता है या सिंथेटिक फेब्रिक से बनी नस डाली जाती है।'


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