अब्राहम समझौता क्या है? सऊद अरब के साथ अब कजाकिस्तान भी जिस पर करेगा साइन, ट्रंप मुस्लिम देशों को इजरायल का पक्का दोस्त बनाने में लगे

By अभिनय आकाश | Nov 07, 2025

गल्फ के सभी धनी देश अमेरिका का सामान खरीददारी कर खुश रहते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सऊदी अरब से ही अमेरिका का ईंधन चलता है। क्योंकि अमेरिकी कंपनियों का बेकार से बेकार प्रोडक्ट को सऊदी अरब बिना किसी आलोचना के खरीद लेते हैं। अब देखिए अमेरिका भारत से क्यों नाराज रहता है? उसका कारण एक है कि कोई भी सामान या हथियार खरीदने से पहले भारत के अधिकारी तोलते हैं। फिर सही पैमाने पर देखते हैं। उसके बाद ही उसको खरीदने की हामी भी भरते हैं। इसका एक उदाहरण देख लीजिए। भारत ने रूस से S400 खरीदा। लेकिन इस डील से अमेरिका काफी नाराज है और भारत को धमकी देते हुए कई सेक्शंस लगा दिए। लेकिन भारत पीछे नहीं हटा। इसके साथ ही साथ अपना कबाड़ लड़ाकू विमान F35 जिसे बेचने के लिए भारत पर खूब दबाव बनाया और प्रोपेगेंडा भी किया। लेकिन भारत ने फ्रांस से ही डील की और राफेल खरीद लिया। इससे आप समझ सकते हैं कि आत्मनिर्भरता और दूसरों पर निर्भर रहना क्या है। सऊदी प्रिंस सलमान को मालूम है कि अगर अमेरिका से टकराए तो सत्ता 1 मिनट में गिर जाएगी। इसलिए सलमान बिना कोई लाग लपेट के अमेरिका के साथ रहते हैं और व्यापार भी करते हैं। उसी कड़ी में अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बड़ा इशारा किया है और कहा है कि सऊदी अरब अब्राहम अकॉर्ड में शामिल होगा और यह ऐलान तब हुआ है जब प्रिंस सलमान की यात्रा 18 नवंबर को होने वाली है। उससे आप समझ सकते हैं कि ट्रंप ने कितना बड़ा ऐलान किया है।

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अब्राहम समझौते क्या हैं?

अब्राहम अकॉर्ड्स की शुरुआत 2020 में हुई। तब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप थे। यूएई बहरीन मोरक्को के इजराइल से रिश्ते अच्छे नहीं थे। इन रिश्तों को अच्छे करने के लिए यह पहल शुरू की गई। इसका नाम पैगंबर के नाम पर रखा गया। यहूदी, ईसाई और इस्लाम के पैगंबर के नाम पर रखा गया। पैगंबर अब्राहिम के नाम पर यह अकॉर्ड्स का नाम रखा गया। इसका लक्ष्य तीनों धर्मों के बीच आपसी एकता और स्थाई शांति था। हालांकि फिलिस्तीन ने इसे विश्वासघात बताया था और इसका खुला विरोध किया था।

अब्राहम अकॉर्ड्स 2.0 की तैयारी?

ट्रंप के पहले कार्यकाल के ऐतिहासिक अब्राहिम अकॉर्ड के तहत पहली बार यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान जैसे मुस्लिम देशों ने इजरायल के साथ अपने रिश्ते सामान्य किए थे। ये मीडिल ईस्ट के लिए गेमचेंजर था। तब से ही सब इंतजार कर रहे थे कि इस लिस्ट में अगला और सबसे बड़ा नाम सऊदी अरब का होगा।  मध्य पूर्व में अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने 25 जून को कहा कि समझौतों का विस्तार करना राष्ट्रपति के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है और उन्होंने जल्द ही नए देशों के शामिल होने के बारे में बड़ी घोषणाओं की भविष्यवाणी की।

कजाकिस्तान बनेगा अब्राहम समझौते में शामिल पहला देश

कज़ाकिस्तान आधिकारिक तौर पर अब्राहम समझौते में शामिल हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसकी घोषणा की, जिससे उनके दूसरे प्रशासन के तहत इस समझौते में शामिल होने वाला यह पहला देश बन गया है। कज़ाकिस्तान ने तीन दशकों से भी ज़्यादा समय से इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक और आर्थिक संबंध बनाए रखे हैं, लेकिन मध्य एशिया और पश्चिम एशिया में बदलती भू-राजनीति की पृष्ठभूमि में, इसके शामिल होने से इन समझौतों में नया प्रतीकात्मक और रणनीतिक महत्व जुड़ गया है।

यह घोषणा कैसे हुई?

ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर यह घोषणा करते हुए लिखा कि इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और कज़ाकिस्तान के राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट तोकायेव के बीच एक शानदार बातचीत हुई। उन्होंने आगे कहा, "कज़ाकिस्तान मेरे दूसरे कार्यकाल में अब्राहम समझौते में शामिल होने वाला पहला देश है, जो कई समझौतों में से पहला है। इसे दुनिया भर में पुल बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम बताते हुए, ट्रंप ने कहा मेरे अब्राहम समझौते के माध्यम से और भी देश शांति और समृद्धि को अपनाने के लिए कतार में खड़े हैं। उन्होंने यह भी बताया कि समझौते को औपचारिक रूप देने के लिए "जल्द ही" एक हस्ताक्षर समारोह आयोजित किया जाएगा।

कजाकिस्तान का क्या संबंध है?

कजाकिस्तान मध्य एशिया का एक बड़ा देश है। यहां की आबादी का 70 फीसदी मुस्लिम है। लेकिन अब्राहम समझौते पर अगर यह देश हस्ताक्षर करता है तो भी ये कुछ नया नहीं होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कजाकिस्तान के 1992 से ही इजरायल के साथ अच्छे संबंध रखे हैं। वहां दूतावास हैं, व्यापार होता है, कोई दुश्मनी नहीं। ऐसे में यह कदम नया संबंध बनाने का नहीं, बल्कि पुराने को मजबूत करने का है।

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