By संतोष उत्सुक | Oct 16, 2020
जांच का है सारा पंगा। जांच न हो तो सब कुछ पर्दे में, जांच शुरू हो जाए तो खतरा, बढ़ जाए तो परदे में आग दिखने लगती है। बहुत दुविधा है, हर व्यक्ति सुविधा चाहता है लेकिन जांच की आंच नहीं चाहता। सब जानते हैं जांच ईमानदारी व गहराई से की जाए तो बड़े से बड़ा पंगा, नंगा हो सकता है। जांच का हुक्म होना बहुत मुश्किल है। परिस्थितियों का मारा इंसान राजनीति के सामने चीख चीख कर जांच की गुज़ारिश करता है लेकिन जिसके खिलाफ जांच होनी होती है वह भी राजनीतिक ज़बान में कहता है, राजनीति हो रही है। वह शांत रहता है उसे पहले से पता होता है कि आइसक्रीम कहां कहां लगानी है ताकि जांच की भट्टी में उनकी इज्ज़त की कांच न पिघल जाए।
बुज़ुर्ग कहते आए हैं, सांच को आंच नहीं, लेकिन जांच के सांचे ऐसे हो गए हैं कि काले तीतर से लेकर इंसानी शरीर और लोकतंत्र के विशाल हाथी की ह्त्या करने वालों पर कोई खरोंच तक नहीं आती। आज का मुहावरा, ‘सही जांच को नहीं आंख’ हो गया है। वक्त में जांच की टांग न फंसे तो माहौल शांत रहता है, जांच न होने से मान लिया कुछ पता नहीं चलता लेकिन यह भी तो अच्छा है न कि कुछ बुरा भी पता नहीं चलता। सामाजिक नायकों की ज़बान सुन्न हो जाती है, उनके दिमाग खाली इमारतों में तब्दील हो जाते हैं। संजीदा जांच ईमानदारी और सच की तरह परेशान करती है। वक़्त ने हमेशा चाहा कि जांच होती रहे लेकिन यहां जांच करवाने वाले से ज्यादा परेशान जांच करने वाला हो उठता है क्यूंकि उसकी जांच को धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक आंखों से भेदा जा सकता है। उसे कई धारी तलवार पर चलना पड़ता है, सबको जख्मी होने से बचाते हुए अपनी जान की रक्षा भी करनी पड़ती है। काफी कुछ और बचाने के लिए ज़रूरी है यह पहले सुनिश्चित हो कि किन लोगों के खिलाफ जांच हो सकती है और किनके खिलाफ जांच नहीं हो सकती। प्रशासनिक व राजनीतिक पहुंच, आर्थिक, मानवीय व नैतिक आधार पर उचित वर्गीकरण पहले से करके रखना लाज़मी है । राष्ट्रीय पहचान वाले अनेक व्यक्तियों को पहले से क्लीन चिट देना भी देश का सम्मान और उनका कीमती वक़्त बचा सकता है। चैनल वाले बहुत से, अनेक किस्म के मामलों का विश्लेषण समय गवाएं बगैर तेज़ी से करने में माहिर होते जा रहे हैं, जांच करने में उनकी इस बहुप्रशंसनीय भूमिका की मदद लेनी चाहिए। इससे जांच एजेंसियों को ठोस मदद मिल सकती है।
महंगे झूठ को कोई सच नहीं हरा सकता। कितनी बार ऐसा होता है की जांच का तीखा कांच असलियत की अस्वादिष्ट फांके सबके सामने रख देना चाहता है लेकिन कई साल पेट भरते रहने के बाद जांच, हाथों से फिसल जाने वाला बहुत छोटा सा पक्का अंडा देती है। पानी बहुत इक्कठा करती है जांच, लेकिन बहुत मेहनत करने के बावजूद, हाथ में चुल्लू भर पानी नहीं भर पाती। सज़ा, दूर अच्छे वक़्त के सहारे खड़ी मुस्कुराती रहती है। सत्य, समंदर किनारे मनपसंद साज़ बजाता रहता है और किसी को पता भी नहीं चलता।
संतोष उत्सुक