By नीरज कुमार दुबे | Jul 07, 2025
"ऑपरेशन सिंदूर" की सैन्य सफलता ने न केवल देशवासियों को गर्व से भर दिया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक हलकों में भी भारत की सैन्य तैयारियों और क्षमताओं का लोहा मनवाया है। इस ऑपरेशन में राफेल लड़ाकू विमानों की निर्णायक भूमिका ने वैश्विक स्तर पर भारत की वायु शक्ति को मजबूती दी। लेकिन, इस सफलता के ठीक बाद चीन ने एक संगठित "डिसइन्फॉर्मेशन कैंपेन" (गलत सूचना अभियान) के ज़रिए राफेल विमानों को बदनाम करने की कोशिश की।
हम आपको बता दें कि "ऑपरेशन सिंदूर" रणनीतिक सैन्य अभियान था, जिसमें वायुसेना की सटीक क्षमता और निर्णायक कार्रवाई का प्रदर्शन देखने को मिला। इस ऑपरेशन में राफेल विमान को केंद्र में रखा गया, जिसने तेज़, गुप्त और लक्ष्यभेदी हमले को अंजाम दिया। लेकिन ऑपरेशन की सफलता के बाद चीन ने कई माध्यमों से यह दावा फैलाना शुरू किया कि:
-राफेल विमान तकनीकी रूप से उतने सक्षम नहीं हैं जितना प्रचार किया गया।
-भारत ने ऑपरेशन की सफलता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया।
-राफेल की मारक क्षमता "चीनी J-20" के मुकाबले कमजोर है।
-यह ऑपरेशन फ्रांस के समर्थन से किया गया "प्रोपेगैंडा" मात्र है।
इन सभी बातों को चीनी सोशल मीडिया हैंडल्स, सरकारी प्रचार तंत्र और कुछ छद्म स्वतंत्र विश्लेषकों के माध्यम से प्रचारित किया गया।
दरअसल, चीन पिछले कुछ वर्षों में "हाइब्रिड वॉरफेयर" में विशेषज्ञता हासिल कर चुका है। वह केवल सैन्य शक्ति से नहीं, बल्कि सूचना, कूटनीति, आर्थिक दबाव और साइबर हमलों के ज़रिए अपने प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर करने की कोशिश करता है। राफेल के खिलाफ यह गलत सूचना अभियान भारत की सैन्य छवि को कमजोर करने, फ्रांस के साथ भारत की रक्षा साझेदारी को डगमगाने और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के उद्देश्य से चलाया गया।
लेकिन फ्रांस की सरकार और वहां की खुफिया एजेंसियों ने भी चीन की इस साजिश को पहचान लिया है और इसके विरुद्ध कार्रवाई के संकेत दिए हैं। हम आपको बता दें कि एक चौंकाने वाली रिपोर्ट में फ्रांस की खुफिया एजेंसियों ने खुलासा किया है कि चीनी दूतावासों द्वारा 'राफेल' लड़ाकू विमानों की वैश्विक छवि को नुकसान पहुँचाने की संगठित साजिश रची गई थी। इस खुलासे ने न केवल रक्षा क्षेत्र में हलचल मचा दी है, बल्कि यह भारत-फ्रांस रक्षा सहयोग के खिलाफ एक सुनियोजित चीनी कूटनीतिक हमले के रूप में देखा जा रहा है।
फ्रांसीसी इंटेलिजेंस के अनुसार, चीनी दूतावासों ने रणनीतिक रूप से विदेशी थिंक टैंकों, रक्षा विश्लेषकों और मीडिया संगठनों के माध्यम से राफेल सौदे को विवादास्पद और भ्रष्टाचार से जुड़ा साबित करने की कोशिश भी की थी। इस कार्य में सोशल मीडिया अभियानों, लीक रिपोर्टों, और फेक न्यूज पोर्टलों का भी प्रयोग किया गया, जो अक्सर भारत में विपक्षी हलकों और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में 'राफेल घोटाले' के नाम से प्रचारित होती रहीं।
दरअसल, चीन को यह भलीभांति पता है कि भारत उसका सबसे बड़ा सामरिक प्रतिद्वंद्वी है, विशेषकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में। ऐसे में भारत की सैन्य शक्ति को कमजोर करना उसकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा रहा है। राफेल सौदे के जरिये भारत को मिलने वाली तकनीकी और सामरिक बढ़त चीन के लिए सीधी चुनौती बन गई है। 2016 में भारत और फ्रांस के बीच हुए 36 राफेल विमानों के सौदे को चीन ने हमेशा संदेह और असुरक्षा की दृष्टि से देखा है। भारत की वायु शक्ति में इस विमान के जुड़ने से हिमालयी क्षेत्र में शक्ति संतुलन भारत के पक्ष में झुकता है, जो चीन के रणनीतिक उद्देश्यों के विरुद्ध है।
देखा जाये तो यह घटनाक्रम एक बार फिर साबित करता है कि चीन केवल सैन्य या आर्थिक मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि "सूचना युद्ध" (Information Warfare) और "कूटनीतिक साजिशों" (Diplomatic Subversion) के जरिये भी अपने विरोधियों को कमजोर करने की कोशिश करता है। भारत के लिए यह चेतावनी है कि वह न केवल सीमा पर बल्कि वैश्विक कूटनीतिक मंचों और मीडिया विमर्शों में भी सजग और सक्रिय रहे। हालांकि भारत की तरफ से भी सैन्य प्रवक्ताओं, विश्लेषकों और रक्षा मंत्रालय ने राफेल की वास्तविक क्षमता और ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के तकनीकी पक्ष को सामने लाकर इन दुष्प्रचारों को जवाब दिया है।
बहरहाल, ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की वायु शक्ति और निर्णायक क्षमता को सिद्ध किया है। ऐसे समय में चीन द्वारा फैलाया गया दुष्प्रचार इस बात का प्रमाण है कि वह भारत की सैन्य सफलता से घबराया हुआ है।