By अंकित सिंह | Apr 19, 2021
भले ही पंजाब में कांग्रेस सत्ता में है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी उसके प्रदर्शन अच्छे रह सकते हैं, इसकी भी उम्मीद की जा रही है। लेकिन पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। इसकी शुरुआत तब हुई थी जब अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच मनमुटाव की खबरें सार्वजनिक हुई। गिने-चुने कुछ ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। लेकिन वहां भी पार्टी के अंदर गुटबाजी आने वाले दिनों में उसके लिए हानिकारक साबित हो सकती हैं। छत्तीसगढ़ में भी गुटबाजी की खबरें रहती है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में तो हमने प्रत्यक्ष रूप से देख ही लिया और पंजाब में भी उठापटक लगातार जारी रहता है। पंजाब में अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच मुलाकात तो जरूर हुई लेकिन मामला बनता दिखाई नहीं दे रहा।
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस चाहती है कि वह एकजुट होकर इस में उतरे। यही कारण है कि वह बार-बार सिद्धू हो या अमरिंदर, दोनों को मिलाने की कोशिश में रहती है। कांग्रेस खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश में जरूर है। लेकिन यह बात भी सच है कि वह बाहरी मुश्किलों से ज्यादा आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रही है। यह चुनौतिया पार्टी के अंदर जारी गुटबाजी के कारण ही है। कहा जा रहा है कि जिन नेताओं ने सीएम बनने का ख्वाब देखा है वह अब कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में पचा नहीं पा रहे। उनकी चाहत अब यह है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाए। नवजोत सिंह सिद्धू, प्रताप सिंह बाजवा, शमशेर सिंह दूलो और अमरिंदर सिंह बरार ऐसे कई नेता और भी है जो लगातार सीएम बनने की इच्छा जाहिर करते रहे हैं।
आलाकमान के लिए चिंता का कारण भी यही है। इसी गुटबाजी को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने वहां की प्रभारी आशा कुमारी को दिल्ली बुला लिया और फिर उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत को पंजाब का जिम्मा सौंपा। रावत के ऊपर सभी गुटों को एक करने की जिम्मेदारी जरूर थी। लेकिन कहीं ना कहीं फिलहाल यह उस दिशा में बढ़ता नजर नहीं आ रहा है। इसमें सबसे बड़ा रोड़ा तो उस वक्त आया जब खुद हरीश रावत की तबीयत खराब हो गई। जबकि दूसरी बार ऐसी नौबत तब आई जब मुलाकात के बावजूद सिद्धू और अमरिंदर के बीच बात नहीं बन पाई। इसी पहल के तहत दोनों ही नेताओं की मुलाकात मार्च में करवाई गई थी। संभावना जताई जाने लगी कि सिद्धू अब जल्द ही अमरिंदर सिंह की सरकार में वापसी करेंगे। उन्हें उनका पसंदीदा मंत्रालय भी दे दिया जाएगा। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। सिद्धू जिस प्रकार से अपने ट्वीट में तेवर दिखा रहे हैं कहीं ना कहीं इससे पार्टी के ऊपर दबाव बढ़ता जा रहा है।
सिद्धू को भी पता है कि अगर अभी मंत्रालय ले लिया तो बाद में भी मंत्री पद से ही खुश रहना पड़ेगा। ऐसे में पार्टी के ऊपर दबाव बनाया रखा जाए तो हो सकता है मुख्यमंत्री के वह भी दावेदार बन सकते हैं। इसके अलावा सिद्धू की चाहत यह भी है कि टिकट बंटवारे के समय उन्हें मुख्य रूप से रखा जाए। लेकिन कहीं ना कहीं प्रशांत किशोर के साथ कैप्टन की दोस्ती अब इन नेताओं को रास नहीं आ रही है। कुछ नेता तो यह कह रहे हैं कि प्रशांत किशोर अमरिंदर सिंह के लिए रणनीतिकार हो सकते हैं लेकिन वह पार्टी के लिए रणनीति बनाएं यह नहीं हो सकता है। उन्हें तो टिकट बांटने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। इन सबके बीच आलाकमान चिंतित है। हरीश रावत के स्वस्थ होने के बाद फिर से यह चीजें होंगी लेकिन फिलहाल पंजाब में कांग्रेस के लिए कुछ भी सही नहीं चल रहा है।