Dronagiri Parvat: द्रोणागिरि पर्वत के पास बसे लोग हनुमान जी को क्यों मानते हैं अपना शत्रु, जानिए क्या है कारण

By अनन्या मिश्रा | Jan 16, 2025

हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। मंगलवार का दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी को समर्पित है। मंगलवार के दिन श्रीराम परिवार संग हनुमान जी की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत भी रखा जाता है। धार्मिक शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि मंगलवार के दिन श्रीराम की अपने परम भक्त हनुमान से भेंट हुई थी। इस मौके पर हर साल बड़ा मंगल भी मनाया जाता है। धार्मिक शास्त्रों में निहित है कि लंका विजय में हनुमान जी ने अहम भूमिका निभाई थी। श्रीराम ने वानर सेना की मदद से लंका पर विजय प्राप्त की थी। वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में द्रोणागिरि पर्वत का भी उल्लेख मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि द्रोणागिरी पर्वत के पास बसे लोग हनुमान जी से क्यों खफा रहते हैं।


भगवान श्रीराम का चरित्र

बता दें कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम त्रेता युग के समकालीन थे। उनको अपने जीवन में सिर्फ और सिर्फ दुखों का सामना करना पड़ा था। भक्ति काल के महान कवि रहे गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रचना रामचरित्रमानस में श्रीराम के जीवन चरित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।

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रामचरित्रमानस के अनुसार, अयोध्या के राजा बनने से ठीक एक दिन पहले भगवान श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास मिला था। पिता का आज्ञा का पालन करने के लिए वह अपनी पत्नी मां सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास चले गए। वनवास के दौरान श्रीराम लंबे समय तक दण्डकारण्य वन में रहे। यह वन रावण का गढ़ था। दण्डकारण्य वन असुरों से भरा था और भगवान श्रीराम ने असुरों का वध करके दण्डकारण्य वन को लंकापति रावण के आतंक से मुक्त कराया था।


बताया जाता है कि भगवान श्रीराम ने दण्डकारण्य वन में कोदंड धनुष का निर्माण किया था। वनवास के दौरान रावण ने मां सीता का हरण कर लिया था। उस दौरान भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान ने मां सीता का पता लगाया था। लंका नरेश रावण ने मां सीता को अशोक वाटिका में रखा था।


लंकापति रावण हनुमान के बल से भलीभांति परिचित था। इसका वर्णन रामचरित मानस में भी मिलता है। वानर सेना की सहायता से श्रीराम ने लंकापति रावण का वध कर मां जानकी को मुक्त कराया था। युद्ध के दौरान लंकापति रावण के पुत्र मेघनाथ के ब्रह्मास्त्र से लक्ष्मण मूर्छित हो गए। थे। तब लंका के वैद्य सुषेण के कहने पर हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा की थी। संजीवनी बूटी द्रोणागिरि पर्वत पर मिली थी।


द्रोणागिरी पर्वत

जब मेघनाथ के ब्रह्मास्त्र से लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तो वह लक्ष्मण के पास आए और उनको उठाने का प्रयास करने लगे। इसमें जब इंद्रजीत को सफलता नहीं मिली, तो हनुमान जी ने अपनी गदा के प्रहार से मेघनाथ के बल को भंग कर दिया। फिर हनुमान जी लक्ष्मण को लेकर प्रभु श्रीराम के पास पहुंचे और लक्ष्मण को मूर्छित देखकर श्रीराम विलाप करने लगे।


श्रीराम को विलाप करते देख विभीषण ने उनको सुषेण वैद्य से संपर्क करने के लिए कहा। सुषेण वैद्य की सलाह पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए द्रोणागिरि पर्वत पर पहुंचे। इस दौरान जब हनुमान जी को संजीवनी बूटी नहीं मिली, तो उन्होंने पूरा द्रोणागिरि पर्वत उठा लिया और लंका पहुंच गए। इस तरह से संजीवनी बूटी से लक्ष्मण जी को नवजीवन मिला। कहा जाता है कि द्रोणागिरी पर्वत को लंका ले जाने की वजह से द्रोणागिरि पर्वत के पास रहने वाले लोग हनुमान जी से अप्रसन्न रहते हैं।

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