Gyan Ganga: भगवान शंकर के विवाह की स्वीकृति ने किया देवताओं को बहुत प्रसन्न

Lord Shankar
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सुखी भारती । Jan 16 2025 12:02PM

भगवान शंकर के समक्ष सभी थे, देवता भी और ब्रह्मा जी भी। उसी अवसर पर सप्तर्षि भी वहाँ पहुँचा गए। ब्रह्मा जी ने उन्हें तुरंत हिमाचल के घर भेज दिया। वे पहले वहाँ गए, जहाँ माता जहाँ देवी पार्वती जी थीं। उन्होंने देखा, कि देवी अपनी हठ में अब भी अड़ी हुई थी।

देवताओं को भगवान शंकर के विवाह की स्वीकृति ने इतना सुख दिया, कि उनकी प्रसन्नता की सीमा न रही। यह प्रसन्नता केवल इसलिए नहीं थी, कि हम भगवान शंकर का विवाह देखेंगे। क्योंकि उनके मतानुसार भगवान शंकर के विवाह में कोई आनंद थोड़ी न आने वाला था? क्योंकि देवता तो ठहरे श्रेष्ठ श्रेणी के लोग। और भगवान शंकर के विवाह में भूत, विशाच, किन्नरों व अन्य निम्न वर्ग के बारातियों में देवताओं का भला क्या काम? कारण कि ये सभी कौन से देवताओं के स्तर के थे? किंतु फिर भी देवता प्रसन्न थे। क्योंकि यही तो वह घटना थी, जिसके माध्यम तारकासुर का वध करने वाला शिवपुत्र जन्म लेने वाला था, और उनके स्वार्थों की रक्षा होनी थी।

भगवान शंकर के समक्ष सभी थे, देवता भी और ब्रह्मा जी भी। उसी अवसर पर सप्तर्षि भी वहाँ पहुँचा गए। ब्रह्मा जी ने उन्हें तुरंत हिमाचल के घर भेज दिया। वे पहले वहाँ गए, जहाँ माता जहाँ देवी पार्वती जी थीं। उन्होंने देखा, कि देवी अपनी हठ में अब भी अड़ी हुई थी। तब उन्होंने विनोद करते हुए कहा-

‘कहा हमार न सुनेहु तब नारद कें उपदेस।।

अब भा झूठ तुम्हार पन जारेउ कामु महेस।।’

अर्थात हे देवी! नारद जी के उपदेश के चलते उस समय तो आपने हमारी बात नहीं मानी। क्योंकि आपको लगता था, कि हम तो ऐसे ही मिथ्या भाषण किये जा रहे हैं अब देख लीजिए इसके दुष्परिणाम। भगवान शंकर ने काम को ही भस्म कर दिया। अब जब काम ही नहीं रहा, तो विवाहिक जीवन का आधार ही क्या रहा?

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देवी पार्वती जीने यह सुन कर मुनियों को बड़े पते का उत्तर दिया-

‘सुनि बोलीं मुसुकाइ भवानी।

उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी।।

तुम्हारें जान कामु अब जारा।

अब लगि संभु रहे सिबकारा।।’

अर्थात हे विज्ञानी मुनिवरो! आपने उचित ही कहा है। आपकी समझ से शिवजी ने काम को अब जलाया है, अब तक तो वे विकारयुक्त ही थे। देवी पार्वती जी ने मानों कटाक्ष ही किया था, कि यह आपने कब से समझ लिया, कि भगवान शंकर इससे पूर्व काम से पीड़ित रहे होंगे, और अब कहीं जाकर वे काम को जला पाये। हे विज्ञानी मुनिवरो! क्या आपको नहीं पता, कि भगवान शंकर तो सदा से ही काम रहित हैं। जहाँ तक मैं उन्हें समझ पाई हुँ, वे तो सदा से ही योगी, अजन्में, अनिन्द्य, कामरहित और भोगहीन हैं। यदि मैंने शिवजी को ऐसा समझकर ही मन, वचन और कर्म से प्रेम सहित उनकी सेवा की है, तो वे कृपानिधान भगवान मेरी प्रतिज्ञा को अवश्य ही सत्य करेंगे। अभी जो आपने कहा है, कि भगवान शंकर ने काम को भस्म कर दिया है, यही आपका बड़ा भारी विवेक है। कारण कि अग्नि का तो यह सहज ही स्वभाव है, कि पाला अगर अग्नि के पास आ जाये, तो वह अवश्य ही नष्ट हो जायेगा। इसमें अग्नि का दोष तो नहीं है। कामदेव और भगवान शंकर के संबंध में भी ऐसा ही न्याय समझना चाहिए। पार्वजी जी के वचन सुनकर मुनियों का हृदय प्रसन्न हो गया। वे देवी पार्वती जी को प्रणाम कर हिमाचल के पास चल दिए। वहाँ जाकर उन्होंने कामदेव दहन व रति को वरदान की कथा सुनाई। हिमाचल ने भी मुनियों की आज्ञा से विवाह की लग्न पत्रिका तैयार करवाई। जिसे सप्तर्षियों ने लिजाकर ब्रह्मा जी को दी। लग्न पत्रिका पढ़कर ब्रह्मा जी के मन में अत्यंत हर्ष हो रहा था। ब्रह्मा जी ने लग्न पढ़कर सबको सुनाया, जिसे सुनकर सब मुनि और देवताओं का सारा समाज हर्षित हो गया। आकाश से फूलों की वर्षो होने लगी, बाजे बजने लगे और दसों दिशाओं में मंगल कलश दिए गए।

(क्रमशः)  

- सुखी भारती

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