घर के साथ खेल मैदान में भी एक सामाजिक जंग लड़ रही हैं महिलाएं : श्रेयसी सिंह

By दिनेश शुक्ल | Jun 24, 2020

भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ऑनलाइन व्याख्यानमाला ‘स्त्री शक्ति संवाद’ में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज एवं कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मैडल विजेता सुश्री श्रेयसी सिंह ने कहा कि महिलायें घर के साथ खेलों के मैदान में भी एक सामाजिक और मानसिक जंग लड़ती हैं। आज बहुत अच्छा लगता हैं जब लड़कियां किसी खेल के बारे में पूछती हैं। क्योंकि हम बचपन से ही अपने बच्चों को जेंडर के आधार पर ढालने की कोशिश करते हैं। जब माता-पिता बच्चों को खिलौने दिलाने ले जाते हैं तो लड़के को क्रिकेट बैट-बॉल और लड़कियों को किचन सेट या बेबी डॉल इत्यादि दिलाते हैं। इसी तरह हम देखते हैं कि स्पोर्टस और मैन का सीधा रिश्ता जोड़ते हैं, मगर स्पोर्ट्स और वीमेन का रिश्ता कमज़ोर कड़ी है। इस मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है। मीडिया इस काम को बहुत हद तक कर रहा है।

 

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सुश्री सिंह ने बताया कि वे पहली लड़की हैं, जिन्होंने 2007 में बिहार राज्य से शॉर्ट टर्म शूटिंग की राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा में भागीदारी की। उसके वे एक साल बाद बिहार से सीनियर लेवल में सिलवर मैडल प्राप्त करने वाली पहली महिला बनी। उन्होंने मैक्सिको की एक घटना का भी उल्लेख करते हुए बताया कि उन्हें वहां कम गुणवत्ता वाले कारतूस से अभ्यास कराया गया, जबकि पुरुष खिलाडियों को उच्च गुणवत्ता के कारतूस आसानी से प्राप्त हो गए। उन्होंने 2014 की एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे मीडिया के कारण उन्हें उनका हक़ मिला। राष्ट्रमंडल खेलों में शूटिंग में सिल्वर मैडल प्राप्त कर वे भारत लौटीं। लेकिन बिहार सरकार ने किसी भी तरह से उनका स्वागत और सम्मान नहीं किया। दो-तीन दिन बाद जब मीडिया ने उनका इंटरव्यू लिया, तब मीडिया ने यह प्रश्न उठाया। तब जाकर लगभग तीन महीने बाद मुख्यमंत्री ने उनका सम्मान किया। 

 

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सुश्री सिंह ने कहा कि कई बार मीडिया एक तरफा और शोध रहित रिपोर्टिंग भी करता हैं। मीडिया को ऐसी रिपोर्टिंग से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे देश की महिलाएं बहुत ही प्रतिभाशाली हैं। हमारी महिलाएं शारीरिक और मानसिक मज़बूत हैं। हर हालात में लड़ना उन्हें आता है। उन्हें जरूरत सिर्फ एक मंच की है। उनके अंदर के कौशल को परखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि खेल तो खेल है। आज जरूर यह कहा जाता है कि क्रिकेट को मीडिया बढ़ावा देता है। मीडिया तो वही दिखता है जो लोग चाहते हैं। मीडिया अपना काम बहुत ही बेहतर करता है। आम लोगों को ही सभी खेलों में रुचि लेनी चाहिए और अपने आस-पास अपने बच्चों के लिए अवसरों को उपलब्ध कराना चाहिये। हमें पहले अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है।


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