By नीरज कुमार दुबे | May 26, 2025
अमेरिका की रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत अपना असली दुश्मन चीन को मानता है और पाकिस्तान उसके लिए बस एक सुरक्षा चुनौती भर है। वहीं पाकिस्तान मानता है कि भारत उसके अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है। रिपोर्ट कहती है कि भारत और पाकिस्तान, परमाणु संपन्न राष्ट्र हैं इसके अलावा दोनों के बीच कोई समानता नहीं है क्योंकि भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जबकि पाकिस्तान आईएमएफ के कर्ज और विदेशी मददगारों से मिलने वाली सहायता पर चलने वाला देश है। हम आपको बता दें कि रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान भारत को एक "अस्तित्वगत खतरा" मानता है इसलिए वह नई दिल्ली की सैन्य श्रेष्ठता के मुकाबले के लिए अपने सैन्य आधुनिकीकरण और सामरिक परमाणु हथियारों के विकास के प्रयासों को जारी रखेगा।
हम आपको बता दें कि DIA की ‘वर्ल्ड थ्रेट असेसमेंट’ रिपोर्ट में भारत द्वारा पाकिस्तान में आतंक के ठिकानों पर किए गए ऑपरेशन सिंदूर और इसके बाद बढ़े तनाव का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रक्षा प्राथमिकताएं "संभवतः" वैश्विक नेतृत्व दिखाने, चीन का मुकाबला करने और भारत की सैन्य शक्ति को बढ़ाने पर केंद्रित होंगी। रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत चीन को अपना प्राथमिक प्रतिद्वंद्वी मानता है, जबकि पाकिस्तान को एक सुरक्षा समस्या के रूप में देखता है। भारत मानता है कि पाकिस्तान से पैदा होने वाले खतरों का इलाज किया जाना जरूरी है।
रिपोर्ट कहती है कि चीन ने वर्षों से पाकिस्तान और उत्तर कोरिया को उनके परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल भंडार बढ़ाने के लिए तकनीकी सहायता देकर परमाणु प्रसार नेटवर्क को बढ़ावा दिया है। वैश्विक अनुमान के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के पास लगभग 170 परमाणु हथियार हैं। रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान अक्सर अपनी शॉर्ट-रेंज नास्र (Hatf-IX) और अन्य मिसाइलों को नई दिल्ली की पारंपरिक सैन्य बढ़त के जवाब में प्रदर्शित करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन का परमाणु भंडार शायद 600 परिचालनात्मक वारहेड्स को पार कर गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुमान है कि चीन के पास 2030 तक 1,000 से अधिक परिचालनात्मक वारहेड्स होंगे, जिनमें से कई को तेजी से प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार स्थिति में तैनात किया जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान अपने परमाणु शस्त्रागार को आधुनिक बना रहा है और इसकी परमाणु सामग्री, कमांड एवं नियंत्रण संरचनाओं की सुरक्षा बनाए रख रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान लगभग निश्चित रूप से विदेशों से WMD (जनसंहारक हथियार) से संबंधित वस्तुएं और तकनीक प्राप्त करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 10 मई की सुबह भारत ने पाकिस्तान के नौ एयरबेस पर हमले किए जोकि एक स्पष्ट रणनीतिक संदेश था। रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष रूप से रावलपिंडी स्थित नूर खान एयरबेस और सर्गोधा एयरबेस पर सटीक और गहरे हमलों ने पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया। हम आपको बता दें कि नूर खान एयरबेस पाकिस्तान के स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन के मुख्यालय के पास स्थित है, जो उसके परमाणु हथियार कार्यक्रम को संभालता है।
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान “मुख्यतः” बीजिंग की “आर्थिक और सैन्य उदारता” का लाभार्थी है और वह हर साल चीनी सेना के साथ कई सैन्य अभ्यास करता है। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के WMD कार्यक्रमों को समर्थन देने वाली विदेशी सामग्री और तकनीक बहुत हद तक मुख्य रूप से चीन से प्राप्त होती है और कभी-कभी हांगकांग, सिंगापुर, तुर्किये और यूएई के माध्यम से भी ट्रांज़िट होती है। रिपोर्ट कहती है कि भारत हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने और वैश्विक नेतृत्व भूमिका को मजबूत करने के लिए द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और चतुष्कोणीय रक्षा साझेदारियों को प्राथमिकता दे रहा है— इसमें सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण, हथियारों की बिक्री और सूचना साझा करना शामिल है।
रिपोर्ट कहती है कि भारत अपने घरेलू रक्षा उद्योग को मजबूत करने, आपूर्ति श्रृंखला संबंधी चिंताओं को कम करने और अपनी सैन्य क्षमता को आधुनिक बनाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ पहल को आगे बढ़ाता रहेगा। रिपोर्ट कहती है कि इस वर्ष भारत ने अपनी परमाणु-सक्षम अग्नि-I प्राइम मीडियम-रेंज बैलिस्टिक मिसाइल और अग्नि-V के मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) संस्करण का परीक्षण किया। रिपोर्ट के अनुसार, “भारत ने अपने परमाणु त्रिकोण को मजबूत करने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अपनी दूसरी परमाणु-संचालित पनडुब्बी INS अरिघाट को भी सेवा में शामिल किया।” रिपोर्ट में पिछले वर्ष अक्टूबर में देपसांग और डेमचोक में भारत-चीन के बीच सैनिकों के पीछे हटने का भी उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि इससे 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से बनी कुछ तनातनी तो कम हुई, लेकिन सीमा रेखा के निर्धारण को लेकर चल रहा विवाद अब भी अनसुलझा है।