Chaitra Navratri 2023: नवरात्रि की महानवमी पर इस विधि से करें मां सिद्धिदात्री की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और मंत्र

By अनन्या मिश्रा | Mar 30, 2023

आज यानि की 30 मार्च को चैत्र नवरात्रि का 9वां दिन है। इसे महनवमी और दुर्गा नवमी भी कहा जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी ति​थि को नवरात्रि का नौवां दिन होता है। नवरात्रि के 9वें दिन मां दुर्गा के 9वें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। मां सिद्धितात्री को सभी सिद्धियों की देवी कहा गया है। मां सिद्धिदात्री की पूजा करने के बाद हवन कर कन्या पूजन भी किया जाता है। बता दें कि स्वयं महादेव मां सिद्धिदात्री की उपासना करते हैं। क्योंकि देवी मां की कृपा से ही भगवान शिव को 8 सिद्धियों की प्राप्ति हुई थी। आइए जानते हैं मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और योग के बारे में...


मां सिद्धिदात्री पूजा मुहूर्त

हिंदू पंचाग के मुताबिक 29 मार्च यानि की बुधवार के रात 09:07 मिनट से चैत्र शुक्ल नवमी तिथि की शुरूआत हुई है। वहीं आज यानि की 30 मार्च को देर रात 11:30 मिनट पर नवमी तिथि का समापन होगा। महानवमी पर पूरा दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग है। इन दोनों ही योग में पूजा करने से शुभ फल मिलेगा।

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पूजन विधि

सुबह जल्दी स्नान आदि करने के बाद मां सिद्धिदात्री का स्मरण करें। फिर देवी मां को गंगाजल से स्नान करवाकर उन्हें अक्षत्, फूल, माला, सिंदूर, फल, मिठाई आदि अर्पित करें। मां सिद्धिदात्री की विशेष कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए कमल का फूल चढ़ाएं और तिल का भोग लगाना चाहिए। पूजा के दौरान ओम देवी सिद्धिदात्र्यै नमः मंत्र का जाप करें। इसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर आरती और हवन कर कन्या पूजन करें। कन्या पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करना चाहिए।


मां सिद्धिदात्री का स्वरूप

देवी भागवत पुराण के अनुसार, 8 सिद्धियों की प्राप्ति के लिए भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की पूजा की थी। देवी मां के प्रभाव से ही भगवान भोलेनाथ का आधा शरीर देवी का हुआ था। भगवान शिव के इस स्वरूप को अर्द्धनारीश्वर कहा जाता है। लाल वस्त्र धारण करने वाली मां सिद्धिदात्री कमल पर ​विराजती हैं। माता के चार हाथ हैं। वह अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा ओर कमल पुष्प लिए हैं।


मंत्र

‘सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्ति प्रदायिनी। 

त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः।। 

गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे। 

वराहरूपिणि शिवे नारायणि नमोऽस्तुते।।’

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