अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के आखिरी फैसले में खामियों को बता कर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड चुनौती देने जा रही है। अयोध्या के फैसले पर लॉ बोर्ड शरियत को भी बीच में लेकर आ रहे हैं। इसके अलावा पांच एकड़ जमीन को भी नहीं लेने की बात कर रहे हैं जो सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मुस्लिम पक्ष को देने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले सभी मुसलमान यही कह रहे थे कि उन्हें कोई भी फैसला स्वीकार होगा। वे तब भी संतृष्ट होंगे जब फैसला उनके पक्ष में नहीं आता है। इस तरह की घोषणा से संदेश तो यही दिखता प्रतीत हो रहा था कि मुसलमानों ने इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा जताया है। लेकिन अयोध्या का विवाद इतनी आसानी से खत्म नहीं होगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे सच साबित कर दिया। मनमाफिक फैसला न आने पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कोर्ट को ही कोसने में लग गया। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसले को त्रुटिपूर्ण करार दिया। बोर्ड की तरफ से बयान देते हुए कासिम रसूल इलियास ने कहा कि बाबरी मस्जिद की ज़मीन न्यायहित में मुस्लिम पक्ष को दी जानी चाहिए, क्योंकि कही अन्यत्र मस्जिद को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इस बैठक में मुस्लिम पक्ष के 45 सदस्य शामिल हुए। सभी ने एक सुर में कहा कि वो किसी अन्य जगह पर मस्जिद लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट नहीं गए थे बल्कि विवादित स्थल रहे ज़मीन पर ही मस्जिद की माँग लेकर गए थे।
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