आडवाणी की सीट और वाजपेयी का बंगला मिलना अमित शाह के बढ़ते कद का प्रतीक

By अंकित सिंह | Jun 07, 2019

जिस व्यक्ति की सरकार सिर्फ एक वोट से गिरवा दी गई थी उसी व्यक्ति की समाधि पर उसके शिष्य ने 303 सांसदों की लाईन लगवा दी। यह कार्य उस पार्टी अध्यक्ष के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था क्योंकि उस पार्टी को तथाकथित बुद्धिजीवियों ने अछूत घोषित कर रखा था। यह संभव हो सका है तो उस शिष्य की दृढ़ इच्छा-शक्ति, कठोर तपस्या, जुनून और कर्तव्यनिष्ठा की बदौलत। हमने जिस व्यक्ति की बात की है वह कोई और नहीं देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे और जो शिष्य है वह है वर्तमान में देश का गृहमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह। कहना सरल हो सकता है कि मजबूत विपक्ष ना होने की वजह से भाजपा की लहर है पर यह भी सही है कि लहर एक बार हो सकती है बार-बार नहीं। अमित शाह भाजपा के लिए देश भर में लहर को अपने कुशल नेतृत्व के कारण ही कायम रख सके। वह अमित शाह की ही नीति है जिसने विपक्ष के जातीय गठबंधन को भी धाराशायी कर दिया। यही कारण है कि शाह को वर्तमान भारतीय राजनीति के चाणक्य की उपाधि दे दी गई है। शाह ने ही अपनी राजनीतिक कुशलता से भाजपा के संगठन को मजबूत बनाया। 

 

1980 में भाजपा के पहले अधिवेशन में अरब तट पर खड़े होकर अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था 'अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा'। आज दक्षिण के कुछ राज्य छोड़ दें तो भाजपा देश के सभी राज्यों में बेहद ही मजबूत है। भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई है और यह कमाल उस अमित शाह की बदौलत ही संभव हुआ है जो आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद देश का सबसे ज्यादा ताकतवर नेता बन गये हैं। बूथ स्तर से अपनी राजनीति की शुरूआत करने वाले अमित शाह नरेंद्र मोदी से पहली बार 1984 में मिले थे और तब से दोनों एक दूसरे के विश्वासी है गए। दोनों ने संघ की छत्रछाया में रहकर राजनीतिक कुशलता और समाजिक समरसता की सीख हासिल की। नरेंद्र मोदी देश में भाजपा को मजबूती प्रदान करने के लिए निकल गए तो अमित शाह भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी के चुनाव प्रतिनिधि के रूप में अपने सफर को आगे बढ़ाया। 1997 में पहली बार विधायक बनने के बाद शाह ने भाजपा के संगठन को गुजरात में संभाले रखा। जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो उन्हें गृहमंत्री बनाया। तब से लेकर आज तक यह जोड़ी अपने कुशल राजनीतिक नेतृत्व शक्ति की बतौलत दुनिया भर में अपना लोहा मनवा रही है। बीच में कई चुनौतियां भी आई पर पहाड़ जैसी दृढ़ इच्छा-शक्ति टस से मस ना कर सकी।

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जिस लालकृष्ण आडवाणी की गांधीनगर सीट पर अमित शाह चुनाव प्रतिनिधि हुआ करते थे उसी सीट से 2019 में उन्होंने चुनाव लड़ा और भारी मतों के अंतर से जीता भी। सबको हैरानी तो तब हुई जब उन्होंने आडवाणी के रहते गांधीनगर से चुनाव लड़ा। राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज जैसे नेताओं को साइड कर मोदी ने दिल्ली में भी शाह को अपनी सरकार में गृहमंत्री बनाया। चर्चा यह होने लगी कि सरकार में नंबर दो कौन होगा। मोदी ने आठ अहम मंत्रिमंडलीय समितियों में शाह को शामिल कर इस बात का भी जवाब दे दिया है। सोने पर सुहागा तो तब हुआ जब सरकार ने उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सरकारी आवास आवंटित कर दिया। यह महज संयोग ही है मोदी और शाह अटल-आडवाणी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं। अमित शाह का वहीं रुतवा देखने को मिल रहा है जो वाजपेयी के समय में आडवाणी का हुआ करता था। शाह का सौभाग्य तो यह भी है कि उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की परंपरागत सीट से चुनाव लड़ा और अब दिल्ली में उन्हें वाजपेयी का आवास आवंटित किया जा रहा है। 

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प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को 2004 में कृष्णमेनन मार्ग स्थित सरकारी बंगला आवंटित किया गया था। यह आवास सुरक्षा जरूरतों के हिसाब से माकूल है और शाह के नार्थ ब्लॉक ऑफिस से पास भी। अब तक अमित शाह राज्यसभा सदस्य के रूप में 11 अकबर रोड पर रह रहे हैं। फिलहाल अमित शाह के साथ घटित हो रही सार्थक चीजें उनके बढ़ते राजनीतिक कद और मोदी का सबसे ज्यादा विश्वासी दिखाता है। शाह सरदार पटेल के बाद गुजरात से बनने वाले दूसरे गृहमंत्री हैं। उनके निर्णय में भी लौह पुरुष की छवि देखने को मिल सकती है क्योंकि जानकार यह मानते है कि शाह एक गंभीर व्यक्ति हैं और वह जो कहते है उसे निषकर्ष तक पहुंचाते भी हैं। शाह की मेहनत, लगन, जुनून और जज्बो को देखकर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की यह पंक्ति आपके दिमाग में स्वत: ही उभर जाएगी। 

 

खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़।

मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।