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जनादेश भी बड़ा है, चुनौतियां और अपेक्षाएं भी बड़ी हैं, पर ''मोदी है तो सब मुमकिन है''
- डॉ. विजय सोनकर शास्त्री
- जून 6, 2019 13:34
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2019 का जनादेश बहुत बड़ा है। इसलिए केंद्र की नयी सरकार के सामने चुनौतियां भी बड़ी हैं। पर जो लोग प्रधानमंत्री मोदी की कार्यप्रक्रिया के जुनून को जानते हैं, वह कहते हैं- ''मोदी है, तो मुमकिन है''।
23 मई 2019 दिन-बृहस्पतिवार। लगभग 130 करोड़ लोगों वाले देश भारत में यह महज एक तिथि नहीं है, बल्कि यह वह दिन है, जो इतिहास में इसलिए दर्ज किया जायेगा कि अपनी विकासपरक नीतियों के दम पर आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोबारा भारी बहुमत से जीत प्राप्त की। यह जीत इसलिए भी ऐतिहासिक मानी जाएगी क्योंकि पूरा विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी को आम चुनाव में हराने के लिए एकजुट होकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा था। चुनाव के मध्य भाजपा नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र नरेंद्र मोदी जी पर लगातार वार किए जा रहे थे और गलत आरोपों से उनकी छवि को जनता के मध्य तार-तार करने के लिए हर विपक्षी नेता सबसे आगे नजर आ रहा था। लेकिन विपक्ष के तमाम प्रयास और दावों को चुनाव परिणाम ने हवा में उड़ा दिया और प्रधानमंत्री मोदी भारी बहुमत के साथ जीत कर विजेता के रूप में सामने आये।
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भाजपा नेता नरेंद्र मोदी को आम चुनाव में मिली प्रचंड जीत के पीछे छिपे कारणों पर ध्यान दिया जाए तो यह स्पष्ट नजर आता है कि 2014 से लेकर 2019 के मध्य अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह देश की गरीब, दलित और वंचित जनता की मूल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दिन-रात काम किया, उसका परिणाम चुनाव में जनता से मिले भारी समर्थन के रूप में देखा गया। प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में कहें तो पांच साल के दौरान उन्होंने देश की मजबूत नींव को तैयार किया है, जिस पर अब भव्य इमारत बनाने का काम किया जायेगा। आशय यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में देश की गरीब, दलित और वंचित जनता के उन हितों एवं मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने का काम किया, जिन हितों या सुविधाओं की तरफ, स्वतंत्रता के बाद बनाने वाली अधिकांश सरकारों ने न तो ध्यान दिया और न ही विचार किया। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने जिस गंभीरता के साथ इन हितों को सोचा, समझा और फिर काम किया, उसका परिणाम विकास की दौड़ में आगे बढ़ रहे भारत के रूप में देखा जा सकता है।
अब एक बार फिर जब जनता ने लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को फिर से स्थायी और मजबूत सरकार बनाने का जनादेश दे दिया है। नए जनादेश में भारत की जनता की उस आशा, विश्वास और अपेक्षाओं को भी देखा जा सकता है, जिसके सपने उनकी आंखों में सजे हुए हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह हर भारतवासी के शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक हितों के अनुरूप अपनी सरकार की दिशा को निर्धारित करें, जिससे देश का हर नागरिक, वह चाहे दलित हो या गरीब, वंचित हो या कमजोर, सभी अपने जीवन की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति निर्बाध रूप से करते हुए अपना और अपने परिवार का जीवनयापन कर सकें।
अबकी बार का जनादेश बहुत बड़ा है। इसलिए केंद्र की नयी सरकार के सामने चुनौतियां भी बड़ी हैं। पर जो लोग प्रधानमंत्री मोदी की कार्यप्रक्रिया के जुनून को जानते हैं, वह कहते हैं- 'मोदी है, तो मुमकिन है'। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी पर सभी का विश्वास है कि वह भारत की पूरी तस्वीर को बदल कर रख देंगे। आगामी पांच साल के कार्यकाल के दौरान भारत को विकास के पथ पर और आगे ले जाने के लिए नयी सरकार को शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से जो काम करने होंगे, उस पर इस तरह से विचार किया जा सकता है।
भविष्य के भारत का शैक्षणिक एजेंडा
शिक्षा किसी भी देश के निर्माण का महत्वपूर्ण अंग होती है। शिक्षा हर मानव में संस्कार को जन्म देती है और संस्कार से मानव समाज का सकारात्मक विकास प्रशस्त होता है। यह वाक्य हजारों साल पुरानी भारतीय हिन्दू संस्कृति की परंपरा को दर्शाता है। प्राचीन काल में गुरुकुलों, आश्रमों तथा बौद्ध मठों में शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था होती थी। नालन्दा, तक्षशिला एवं वल्लभी जैसे शिक्षा केंद्रों की पहचान विश्व स्तर पर थी और विदेशी छात्र भी भारत में शिक्षा के लिए आते थे। लेकिन समय के साथ ऐसे कई शिक्षा केंद्र नष्ट कर दिए गए। मुगल काल से लेकर अंग्रेजों के समय आने तक शिक्षा का स्वरूप बदलता चला गया। अंग्रेजों के काल में शिक्षा की जिस आधुनिक प्रणाली की शुरुआत हुई, उस प्रणाली ने शिक्षा को आम जन से दूर करने का काम किया। भारत को जब स्वतंत्रता मिली तो देश की सरकारों ने शिक्षा के लिए काम तो किया, लेकिन शिक्षा से आम जनमानस को जोड़ पाने में असफल ही रहे। उनकी असफलता के कारण गरीब, दलित और वंचित समाज शिक्षा से दूर होता चला गया। राजनीति और वोट बैंक की मानसिकता ने सरकारी स्कूलों में मिलने वाली शिक्षा की गुणवत्ता लगातार कम की, परिणाम निजी शिक्षा केंद्रों को धन आधारित शिक्षा के रूप में देखा गया। सभी को शिक्षा देने के लिए कानून भी बनाया गया, लेकिन आम जनमानस के बच्चे गुणवत्तायुक्त शिक्षा से दूर ही रहे।
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देश की नयी मोदी सरकार के सामने शिक्षा क्षेत्र के आमूलचूल परिवर्तन की चुनौती भी है। खासतौर पर गरीब, दलित और वंचित समाज के बच्चों के लिए गुणवत्तायुक्त और रोजगारपरक शिक्षा देने के लिए बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को तो सही करना ही होगा, साथ ही उन निजी और महंगे स्कूलों पर भी नकेल कसनी होगी, जिनके लिए शिक्षा सिर्फ धन कमाने के साधन से ज्यादा और कुछ नहीं है। गुणवत्तायुक्त और रोजगारपरक शिक्षा को उच्च वर्गों के माध्यम से निम्न वर्गों तक पहुंचना होगा। देश में जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हुआ तो 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिये यह मौलिक अधिकार बन गया। इसके बावजूद शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों का अंबार लगा है तथा ऐसे उपायों की तलाश लगातार जारी है, जिनसे इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए जा सकें। मानव संसाधन के विकास का मूल शिक्षा है जो देश के सामाजिक-आर्थिक तंत्र के संतुलन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमारे देश का शिक्षा क्षेत्र शिक्षकों की कमी से सर्वाधिक प्रभावित है। साथ ही राज्यों द्वारा चलाए जाने वाले शिक्षा सुधार कार्यक्रम भी कोई खास उम्मीद नहीं जगा पाए हैं।
वर्तमान में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में प्रोफेसरों की जवाबदेही और प्रदर्शन सुनिश्चित करने का कोई फॉर्मूला नहीं है। देश के शिक्षा संबंधी सभी अध्ययन इंगित करते हैं कि शिक्षा के साथ विद्यार्थियों का स्तर भी अपेक्षा से नीचे है। इसके लिये सीधे शिक्षकों को दोषी ठहरा दिया जाता है और इस वास्तविकता से आंख बंद कर ली जाती है कि शिक्षा का बुनियादी ढाँचा और शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था बेहद कमजोर है। देश में एक लाख से अधिक विद्यालय ऐसे हैं, जहाँ केवल एक शिक्षक है। आजादी के 72 वर्ष बाद भी यदि देश में शिक्षा की यह दशा और दिशा है तो स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के सकारात्मक अभियान में सभी का सक्रिय सहयोग लेना आवश्यक होगा।
आर्थिक असमानता की बड़ी वजह मैकाले की शिक्षा नीति है, जो आम लोगों और संभ्रांत वर्ग के बीच फासले को बरकरार रखने के लिए तैयार की गयी थी। मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में क्या खामी है और नयी शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए ? मैकाले ने अंग्रेजी शासन को कायम रखने के लिए संभ्रांत वर्ग तैयार करने वाली शिक्षा नीति को बढ़ावा दिया। स्वतंत्रता के बाद भी आधुनिकता के नाम पर यही नीतियां अपनायी गयीं। इससे समाज में शिक्षा के स्तर पर असमानता बढ़ी। अमीर अच्छी शिक्षा हासिल कर आर्थिक तौर पर संपन्न होने लगे और गरीब पैसे के अभाव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल करने से वंचित होने लगे। इससे समाज में आर्थिक असमानता बढ़ी है। अब समय आ गया है जब स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कर इस मुद्दे पर एक टीम इंडिया का गठन किया जाना चाहिये, जिससे देश के हर नागरिक का बच्चा ऐसी शिक्षा ग्रहण कर सके, जो उसमें संस्कार भी विकसित करने में सक्षम हो साथ ही देश के हर नागरिक के समग्र विकास का सपना पूरा हो सकेगा।
आर्थिक क्षेत्र
भारत तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था है। लेकिन अर्थव्यवस्था के सामने कई चुनौतियां भी हैं। स्वतंत्रता के बाद खास कर आर्थिक उदारीकरण के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था ने देश के गरीबों, दलितों और वंचित समाज के लोगों पर नकारात्मक असर डाला है। स्वतंत्रता के बाद शासन-सत्ता की जिम्मेदारी संभालने वालों ने अपने निजी हितों को जिस तरह से महत्व दिया, वह समय के साथ बढ़ता गया। इससे राष्ट्रीय आंदोलन की सोच पीछे छूट गयी। कई सफलताओं के बावजूद कई असफलताएं, मसलन गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, बढ़ता प्रदूषण अब भी चिंता के विषय बने हुए हैं। किसी भी देश के विकास में नेतृत्व का अहम योगदान होता है, क्योंकि इसका असर सभी संस्थाओं पर पड़ता है। नेतृत्व की कमजोरी का असर हर ओर दिखायी देता है। भारतीय नेतृत्व की कमजोरी की जड़ें औपनिवेशिक काल से जुड़ी हुई हैं और यही वजह है कि स्वतंत्रता के बाद इसकी गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आयी। कांग्रेस की गलत नीतियों के कारण समस्याएं गंभीर होती चली गयीं।
गांधी जी का मानना था कि आर्थिक नीति के केंद्र में सबसे निचला व्यक्ति होना चाहिए। लेकिन 1991 से पहले और उसके बाद भी आर्थिक नीतियों में आम आदमी की बुनियादी जरूरतों को हल करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। 1950 से ही आर्थिक नीतियों का मुख्य मकसद निवेश बढ़ाना रहा है, न कि रोजगार। होना यह चाहिए था कि हम रोजगार और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लेकिन अब देश में एक मजबूत नेतृत्व है। इसलिए अब ऐसी विकास प्रक्रिया को गति देनी होगी, जिसका लाभ देश के हर नागरिक को प्राप्त हो सके। गरीबी का उन्मूलन हो, रोजगार के अवसर बढ़ें, देश का हर व्यक्ति उत्पादक बन सके और शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधा सभी को समान रूप से उपलब्ध हों, तभी समाज में बराबरी आयेगी और देश आर्थिक रूप से पूर्ण विकसित हो सकेगा।
गांधी जी ने कहा था कि आम लोगों की जरूरत के लिए संसाधन पर्याप्त हैं, लेकिन उनके लालच के लिए नहीं। मौजूदा अर्थव्यवस्था उपभोग पर आधारित है। लोग सोचते हैं कि और अच्छा जीवन हो, सारी सुख-सुविधाएं मिलें, भले ही पर्यावरण पर और दूसरों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता हो। ऐसे हालात को बदलने के लिए ही एक वैकल्पिक मॉडल की जरूरत है, जिसमें उपभोक्तावाद न हो। भारत ही ऐसा देश है, जो यह मॉडल दे सकता है। भारत, चीन, ब्राजील जैसे बड़े देशों में सिर्फ भारत के पास ही वैकल्पिक आर्थिक मॉडल देने की क्षमता है। भारत में इतने संसाधन हैं कि यहां सभी को बुनियादी सुविधा मिल सकती है और हर नागरिक आर्थिक रूप से सशक्त हो सकता है।
1991 के बाद का मॉडल बाजार केंद्रित है। आज बाजार सब कुछ में प्रवेश कर गया है। बाजार की सोच हावी होने से राष्ट्रीय नीति कमजोर होती चली गयी है। मौजूदा आर्थिक संकट की प्रमुख वजह यही है। किसी देश की नीति दूसरे देश में भी सफल नहीं हो सकती, क्योंकि सबके भौगोलिक हालात और समस्याएं अलग-अलग होती हैं। इसलिए मौजूदा आर्थिक हालात से पार पाने के लिए भारत को अपने हितों वाली नीतियों को लागू करना होगा। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बनी नयी सरकार आर्थिक क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव की राह प्रशस्त करेगी। नयी सरकार की नीतियां, योजनाएं एवं कार्यक्रम ऐसे होने चाहिए, जो देश के हर नागरिक को विकास की राह में साथ लेकर चल सके।
भारत के आम आदमी की खुशहाली में कमी होने का बड़ा कारण यह है कि सरकार ने गरीबों के लिये योजनाएं बनायीं, लेकिन वह योजनाएं राजनीतिक लाभ लेने तक सीमित रही। यही कारण है कि देश में अब तक गरीबी नहीं खत्म हुई। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने बदलाव की जो शुरूआत की है, उसका सकारात्मक असर दिखने लगा है। विकास की सार्थकता इस बात में है कि देश का आम नागरिक खुद को संतुष्ट और आशावान महसूस करे। स्वयं आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ बने, तभी वह खुशहाल हो सकेगा। एक महान विद्वान ने कहा था कि जब हम स्वार्थ से उठकर अपने समय को देखते हुए दूसरों के लिए कुछ करने को तैयार होते हैं तो हम सकारात्मक हो जाते हैं। सरकार एवं सत्ताशीर्ष पर बैठे लोगों को निस्वार्थ होना जरूरी है। उनके निस्वार्थ होने पर ही आम आदमी के खुशहाली के रास्ते उद्घाटित हो सकते हैं। तभी आम आदमी को ऊर्जा एवं सकारात्मकता से समृद्ध किया जा सकता है। और प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा करके दिखाया है। खुशहाल और विकसित भारत को निर्मित करने के लिये अतीत से सीखना होगा। एक सार्थक एवं सफल कोशिश पूरे भारत को एक नयी दिशा देगी और गरीब, दलित और वंचित समाज को मुख्यधारा में लेकर आएगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर देश के सभी वर्ग की जनता ने अपना भरोसा दिखाया है और यह भरोसा उनमें नया विश्वास पैदा करेगा, जो देश को फिर से उस ऊंचाई तक लेकर जायेगा, जिस ऊंचाई पर देश को ले जाने का सपना प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के हर कार्यकर्ता ने देखा है।
-डॉ. विजय सोनकर शास्त्री
(लेखक पूर्व सांसद हैं और वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
सुरक्षा परिषद में मिला भारत को महत्वपूर्ण स्थान, आतंक पर पाक की कसेगी नकेल
- राकेश सैन
- जनवरी 16, 2021 14:53
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पाकिस्तान के पूर्व सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन सैयद ने यह बात मानी है कि यह पाकिस्तान के लिए अच्छा समाचार नहीं है क्योंकि तालिबान सेंक्शन कमेटी और काउंटर टेररिज़्म कमेटी, जिसकी भारत 2022 में अध्यक्षता करेगा ये दोनों पाकिस्तान के मूलभूत हित हैं।
दिल्ली में चल रहे कथित किसान आंदोलन के नाम पर हो रही सस्ती राजनीति व मीडिया का पूरा ध्यान इस पर होने के कारण देशवासियों का ध्यान भारत को मिली अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि पर नहीं गया कि दुनिया में बदलती परिस्थितियों के चलते पाकिस्तान का टेंटुआ अब भारत के हाथों में आता दिखाई दे रहा है। दुनिया में आतंकवाद, तालिबान का पोषण करने सहित अनेक मुद्दों पर फैसले करने में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण होने जा रही है और पाकिस्तान पशोपेश में है कि नई परिस्थितियों से बचे तो बचे कैसे ? संयुक्त राष्ट्र में भारत के पास सुरक्षा परिषद् की तीन समितियों की अध्यक्षता का जिम्मा मिला है। इनमें तालिबान प्रतिबंध समिति (सेंक्शन कमेटी), आतंकरोधी समिति और लीबिया प्रतिबंध समिति शामिल हैं।
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बीबीसी लंदन में सहर बलोच की रिपोर्ट के अनुसार, काउंटर टेररिज़्म और तालिबान सेंक्शन कमेटी दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके तहत भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को परेशान कर सकता है और साथ ही उस पर और प्रतिबंध भी लगवा सकता है। तालिबान सेंक्शन कमेटी उन देशों की सूची तैयार करती है, जो तालिबान का आर्थिक रूप से समर्थन करते हैं, या उनके साथ किसी और तरह से सहयोग करते हैं। इसके आधार पर, दुनिया भर के 180 से अधिक देश अपने कानूनों में संशोधन करते हैं और उन लोगों के नाम को प्रतिबंधित संगठनों और व्यक्तियों की सूची में जोड़ दिया जाता है। इसके बाद उन पर मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय सहायता पर बनने वाले कानून लागू होते हैं। संयुक्त राष्ट्र की इन कमेटियों के मामले आधिकारिक रूप से संचालित होते हैं और ये इन्हें लागू कराते आ रहे हैं।
जैसा कि सभी जानते हैं कि पाकिस्तान इस समय दो से तीन समस्याओं का सामना कर रहा है, उनमें से एक फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ का आगामी ऑनलाइन सत्र है। यह टास्क फोर्स मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादियों को वित्तीय सहायता की रोकथाम करने वाली एजेंसी है। अक्तूबर 2020 में पाकिस्तान ने एफएटीएफ की 27 सिफारिशों में से 21 को पूरा कर लिया था, लेकिन शेष छह सिफारिशों को टास्क फोर्स ने बहुत महत्वपूर्ण माना है। इसकी समय सीमा फरवरी 2021 में पूरी होगी। पाकिस्तान को भय है कि भारत अपनी पूरी ताकत लगा कर उसे एफएटीएफ की काली सूची में शामिल करवा सकता है। इसके तहत भारत पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता भी रुकवा सकता है।
पाकिस्तान के पूर्व सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन सैयद ने इस पत्रकार को बताया कि यह पाकिस्तान के लिए अच्छा समाचार नहीं है क्योंकि तालिबान सेंक्शन कमेटी और काउंटर टेररिज़्म कमेटी, जिसकी भारत 2022 में अध्यक्षता करेगा ये दोनों पाकिस्तान के मूलभूत हित हैं। भारत इन दोनों मुद्दों पर पाकिस्तान का विरोध करता रहा है। अब भारत को पिछले दरवाजे से अफगान शांति प्रक्रिया में शामिल होने का मौका मिल गया है। अफगानिस्तान में पाकिस्तान ने एक तरफ अमेरिका और तालिबान के बीच और दूसरी तरफ अफगान सरकार और अफगान तालिबान के बीच, बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत इन मूलभूत हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकता है।
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ज्ञात रहे कि साल 1996 में भारत ने कॉम्प्रिहेंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेरर के तहत आतंकवाद की वित्तीय सहायता और आतंकवाद की रोकथाम पर विस्तृत बात करने की कोशिश की थी और भारत एक बार फिर से इसे लागू कराने की पूरी कोशिश करेगा। तालिबान कमेटी पर संयुक्त राष्ट्र के गैरस्थायी सदस्य इन कमेटियों की अध्यक्षता करते आ रहे हैं, लेकिन सुरक्षा परिषद् भी अक्सर उन देशों को चुनती है जो पड़ोसी नहीं हैं और अकसर क्षेत्र के बाहर के देशों को अध्यक्षता करने का अवसर दिया जाता है। लेकिन अब जब भारत को तालिबान सेंक्शन कमेटी का अध्यक्ष चुना गया है यह भारत सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण बात है।
चाहे देश का आंतरिक मामला हो या बाहरी आतंकवाद के मोर्चे पर भारत विशेषकर मोदी सरकार का बहुत सख्त दृष्टिकोण रहा है। मोदी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दुनिया को 'गुड टैरेरिज़्म-बैड टेरेरिज़्म' के बीच अंतर न करने व आतंकवाद की व्याख्या करने पर जोर देते रहे हैं। अभी पिछले साल 27 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन के दौरान मोदी ने आतंकवाद को लेकर दुनिया को भारतीय दृष्टिकोण से अवगत करवाया था और आतंकवाद के स्रोत पर कार्रवाई की जरूरत पर जोर दिया था। पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राईक व एयर स्ट्राईक आदि बहुत-सी कार्रवाइयां हैं जो साबित करती हैं कि मोदी सरकार ने केवल ऐसा कहा ही नहीं बल्कि करके भी दिखाया है। अब कूटनीतिक क्षेत्र में भारत को जो सफलता हासिल हुई है उससे आतंकवाद और इसको स्तनपान करवाने वाले पाकिस्तान का टेंटुआ भारत के हाथों आता दिखाई दे रहा है।
-राकेश सैन
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- ललित गर्ग
- जनवरी 15, 2021 12:54
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रक्षामंत्री राजनाथ सिंह स्वदेशी रक्षा-उत्पादों के लिये सक्रिय हैं, अपनी दूरगामी सोच एवं निर्णायक क्षमता से उन्होंने तेजस के स्वदेशी विमानों की खरीद की स्वीकृति को बाजी पलटने वाला बताया। पूर्व में 40 तेजस विमानों की खरीद से पृथक है 83 तेजस विमानों की खरीद का निर्णय।
सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की ओर से निर्मित किये जाने वाले हल्के लड़ाकू विमान की खरीद को मंजूरी देकर भारत के स्वदेशी रक्षा उद्योग को तेजस्विता एवं स्वावलंबन की नयी उड़ान दी है। पिछले साल भारतीय वायु सेना ने 48 हजार करोड़ रुपये से अधिक की लागत के इन 83 तेजस विमानों की खेप की खरीद के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसे स्वीकृति मिलना नये भारत, आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक है। नरेन्द्र मोदी सरकार की आत्मनिर्भर भारत की पहल के क्रम में रक्षा मंत्रालय ने अनुकरणीय कदम उठाया है। स्वदेशी आयुध सामग्री एवं रक्षा उत्पादों के निर्माण से विदेशों से आयात पर रोक लगेगी, जो न केवल आर्थिक दृष्टि से किफायती साबित होगी बल्कि भारत दुनिया में एक बड़ी ताकत बनकर भी उभरेगा।
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यह पहल इस मायने में महत्वपूर्ण है कि भारत की गिनती दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाले देशों में होती है। दूसरी ओर पाक व चीन की सीमाओं पर सुरक्षा चुनौतियों में लगातार इजाफा हुआ है। वहीं विगत में हर बड़े रक्षा सौदों में बिचैलियों की भूमिका को लेकर जो विवाद उठते रहे हैं, उसका भी पटाक्षेप हो सकेगा। साथ ही जहां भारत में रक्षा उद्योग का विकास होगा, वहीं देश में रोजगार के अवसरों में आशातीत वृद्धि हो सकेगी, भारत का पैसा भारत में रहेगा।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह स्वदेशी रक्षा-उत्पादों के लिये सक्रिय हैं, अपनी दूरगामी सोच एवं निर्णायक क्षमता से उन्होंने तेजस के स्वदेशी विमानों की खरीद की स्वीकृति को बाजी पलटने वाला बताया। पूर्व में 40 तेजस विमानों की खरीद से पृथक है 83 तेजस विमानों की खरीद का निर्णय। इन विमानों की स्वीकृति इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि भारत में निर्मित ये लड़ाकू विमान वायुसेना की कसौटी पर खरे उतरे हैं, यह एक शुभ एवं नये विश्वास का अभ्युदय है कि हम सेना की जरूरतों के लिये अब दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहेंगे। इसके लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगातार कोशिशों एवं संकल्पों की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि सधे हुए कदम से आगे बढ़ते जायें तो संभव है भविष्य में भारत हथियारों के निर्यातक देशों में भी शुमार हो जाये।
भारत में आजादी के बाद से ही सरकारी स्तर पर सेनाओं की जरूरत का सामान आयुधशालाओं में निर्मित होता रहा है, लेकिन सरकार की दोहरी नीतियों, आधुनिकीकरण के अभाव, नेताओं के स्वार्थ तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी न हो पाने के कारण हम रक्षा उत्पादों के मामले में दूसरे देशों पर ही निर्भर रहे। हमारा देश में हथियारों की खरीद की दृष्टि से दूसरे देशों की निर्भरता का एक बड़ा कारण विदेशी कम्पनियों से मिलने वाला कमीशन भी रहा है। मोदी की पहल एवं राजनाथ सिंह की सूझबूझ एवं तत्परता से मौजूदा वक्त में रक्षा उत्पादों के स्वदेशीकरण से सेना को आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलने लगी है। इसी का परिणाम है राजनाथ सिंह द्वारा लिया गया 101 रक्षा उत्पादों के आयात पर रोक का निर्णय।
भारत की बड़ी विडम्बना एवं विवशता यह भी रही है कि वह उन देशों में गिना जाता रहा है, जो अपनी तमाम रक्षा सामग्री का आयात करता रहा है, इस पराधीन स्थिति से मुक्ति एवं आयातक से निर्यायक बनने की सुखद स्थिति में पहुंचने के लिये अभी बड़े एवं प्रभावी निर्णय लेने एवं उन्हें क्रियान्वित करने की जरूरत है। इससे न केवल विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि भारत की गिनती सामर्थ्यवान, विकसित एवं शक्ति सम्पन्न देशों में होने लगेगी। भारत रक्षा उत्पादों की दृष्टि से शक्तिशाली एवं आत्मनिर्भर हो सकेगा। दुनिया की एक बड़ी ताकत बनकर उभरने के लिये भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपनी रक्षा जरूरतों को स्वयं पूरा करने में सक्षम बनेगा और किसी भी राजनीति आग्रह-पूर्वाग्रह एवं भ्रष्टाचार को इसकी बाधा नहीं बनने देगा। तेजस लड़ाकू विमानों का संदेश है सरकार और कर्णधारों को कि शासन संचालन में एक रात में (ओवर नाईट) ही बहुत कुछ किया जा सकता है। अन्यथा ''जैसा चलता है- चलने दो'' की पूर्व के नेताओं की मानसिकता और कमजोर नीति ने रक्षा-क्षेत्र की तकलीफें बढ़ाईं एवं हमें पराधीन बनाये रखा हैं। ऐसी सोच वाले व्यक्तियों को अपना राष्ट्र नहीं दिखता, उन्हें विश्व कैसे दिखता। वर्तमान सरकार का धन्यवाद है कि उन्हें देश भी दिख रहा है और विश्व भी।
भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रक्षा बजट वाला देश होने के बावजूद अपने 60 प्रतिशत हथियार प्रणालियों को विदेशी बाजारों से खरीदता है, जबकि भारत की तुलना में पाकिस्तान ने अपनी हथियार प्रणालियां ज्यादा विदेशी ग्राहकों को बेची हैं। इन स्थितियों की गंभीरता को देखते हुए भारत सैन्य उत्पादों के स्वावलम्बन की ओर कदम बढ़ा रहा है तो यह देश की जरूरत भी है और उचित दिशा भी है। इसी दृष्टि से रक्षा मंत्रालय द्वारा जिन उत्पादों के आयात पर रोक लगाने का निर्णय किया गया है, उनमें सामान्य वस्तुएं ही नहीं वरन सैन्य बलों की जरूरतों को पूरा करने वाली अत्याधुनिक तकनीक वाली असॉल्ट राइफलें, आर्टिलरी गन, रडार व ट्रांसपोर्ट एयरक्राप्ट एवं लड़ाकू विमान आदि रक्षा उत्पाद भी शामिल हैं। आगामी छह-सात सालों में घरेलू रक्षा उद्योग को लगभग चार लाख करोड़ के अनुबंध दिये जायेंगे, जिसमें पारंपरिक पनडुब्बियां, मालवाहक विमान, क्रूज मिसाइलें व हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर भी शामिल होंगे। वर्तमान वित्त वर्ष में घरेलू रक्षा उद्योग के लिये 52 हजार करोड़ रुपए के पृथक बजट का प्रावधान किया गया है। सेना में हथियारों की आपूर्ति बाधित न हो, इसलिये इसे चरणबद्ध तरीके से वर्ष 2020 से 2024 के मध्य क्रियान्वित करने की प्लानिंग है। इस रणनीति के तहत सेना व वायु सेना के लिये एक लाख तीस हजार करोड़ रुपये तथा नौसेना के लिये एक लाख चालीस हजार करोड़ के उत्पाद तैयार किये जाने की योजना है।
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हमें मौजूदा तथा भविष्य की रक्षा जरूरतों का गहराई से आकलन करना होगा। इसकी वजह यह भी है कि रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में तकनीकों में तेजी से बदलाव होता रहता है। सभी उत्पादों की आपूर्ति निर्धारित समय सीमा में हो और सेना की जरूरतों में किसी तरह का कोई व्यवधान उत्पन्न न हो। देश की रक्षा के मुद्दे पर किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। इसके लिये जरूरी है कि तीनों सेनाओं और रक्षा उद्योग के मध्य बेहतर तालमेल स्थापित हो। इसके लिये कारगर तंत्र विकसित किया जाना भी जरूरी है। अभी अन्य उत्पादों के बारे में भी मंथन की जरूरत है, जिनका निर्माण देश में करके दुर्लभ विदेशी मुद्रा को बचाया जा सके। साथ ही यह भी जरूरी है कि देश रक्षा उत्पाद गुणवत्ता के मानकों पर खरा उतरे क्योंकि यह देश की सुरक्षा का प्रश्न है और हमारे सैनिकों की जीवन रक्षा का भी।
सरकारी नीतियों, बजट एवं कार्ययोजनाओं की धीमी रफ्तार का ही परिणाम है कि तेजस को विकसित करने में करीब तीस वर्ष लग गये। इसी तरह रक्षा क्षेत्र की अन्य परियोजनाएं भी लेट-लतीफी एवं सरकारी उदासीनता का शिकार होती रही हैं। इस तरह की स्थितियों का होना दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी हम सेना की सामान्य जरूरतों के साधारण उपकरण और छोटे हथियार भी देश में निर्मित करने में सक्षम नहीं हो पाये हैं। निःसंदेह तेजस एक कारगर एवं गुणवत्तापूर्ण लड़ाकू विमान साबित हो रहा है, लेकिन यह तथ्य भी हमारे ध्यान में रहना जरूरी है कि उसमें लगे कुछ उपकरण एवं तकनीक दूसरे देशों की हैं। हमारा अगला लक्ष्य उसे पूरी तरह स्वदेशी और साथ ही अधिक उन्नत एवं गुणवत्तापूर्ण बनाने का होना चाहिए। यह तभी संभव है कि हमारे विज्ञानियों और तकनीकी विशेषज्ञों को भरपूर प्रोत्साहन एवं साधन दिये जायें। यदि भारत दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर होते हुए अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी छाप छोड़ सकता है और हर तरह की मिसाइलों के निर्माण में सक्षम हो सकता है तो फिर ऐसी कोई वजह नहीं कि अन्य प्रकार की रक्षा सामग्री तैयार करने में पीछे रहे। वर्तमान मोदी सरकार ने जहां स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिये उन्नत एवं प्रोत्साहनपूर्ण नीतियों को निर्मित किया है वहीं उचित बजट का भी प्रावधान किया है। अब समय है उनके सकारात्मक नतीजें जल्दी ही सामने आयें। भारत न सिर्फ आयात के विकल्प के उद्देश्य से रक्षा उत्पादों का निर्माण करे, बल्कि भारत में निर्मित रक्षा उत्पादों का निर्यात अन्य देशों को करने के लिए भी रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाये।
-ललित गर्ग
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- नीरज कुमार दुबे
- जनवरी 14, 2021 11:20
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सेनाध्यक्ष पद पर जनरल मनोज मुकुंद नरवणे आये। जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ऐसे सेनाध्यक्ष रहे जिनको पहले ही साल में तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने एक कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी छाप छोड़ी है।
दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में शुमार भारतीय सेना आज अपना स्थापना दिवस धूमधाम से मना रही है। भारतीय सेना के शौर्य की जहाँ तक बात है तो उसे पूरी दुनिया कई बार देख ही चुकी है, लेकिन कोरोना काल में सेना ने जिस प्रकार राहत अभियानों में बढ़-चढ़कर मदद की वह अपने आप में दुनियाभर के सैन्य बलों के लिए अनुकरणीय है। कोरोना की आहट होते ही भारतीय सेना ने ऑपरेशन नमस्ते शुरू कर महामारी से लड़ने की शुरुआत की और सरकार की ओर से चलाये जा रहे राहत कार्यों में योगदान देने में जुट गयी लेकिन इस कठिन समय में भी पाकिस्तान और चीन ने जिस प्रकार मिलकर भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया उसका भी भारतीय सेना ने दुश्मन को मुँहतोड़ ही नहीं बल्कि हर अंग तोड़ जवाब दिया। भारतीय सेना ने चीन को सिर्फ चेताया ही नहीं बल्कि चौंकाया भी है। सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और पाकिस्तानी आतंकवादियों को भारतीय सीमा में घुसते ही मार गिराने के भारतीय सुरक्षा बलों के रुख से जैसे पाकिस्तान के सामने यह पूरी तरह स्पष्ट है कि भारत इस्लामाबाद की आतंक संबंधी नीति को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा उसी तरह पिछले एक साल में चीन के सामने भी यह स्पष्ट हो गया है कि भारत को दबाया नहीं जा सकता, झुकाया नहीं जा सकता, डराया नहीं जा सकता और पीछे हटाया नहीं जा सकता। चीन को अच्छी तरह समझ आ गया है कि भारत आंखों में आंखें डाल कर बात भी करता है और यदि हालात बिगड़ते हैं तो दुश्मन को सिर्फ अपने बाजुओं की ताकत से ही चित कर सकता है।
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पिछले साल के शुरू में देश को पहले सीडीएस के रूप में बिपिन रावत मिले और सेनाध्यक्ष पद पर जनरल मनोज मुकुंद नरवणे आये। जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ऐसे सेनाध्यक्ष रहे जिनको पहले ही साल में तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने इस एक साल में ही कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी छाप छोड़ी है। दुनिया के सबसे बड़े बलों में शुमार भारतीय सेना का नेतृत्व आसान बात नहीं है। आइये जरा डालते हैं एक नजर पिछले एक वर्ष में सेना के समक्ष पेश आईं चुनौतियों पर और उसे मिली उपलब्धियों पर।
ऑपरेशन नमस्ते
देश में पिछले वर्ष के शुरू में जब कोरोना वायरस की आहट हुई तो सेना ने ऑपरेशन नमस्ते शुरू किया। इस अभियान के तहत जवानों को मास्क लगाने, सामाजिक दूरी बनाये रखते हुए कार्यों को अंजाम देने आदि के बारे में निर्देशित किया ही गया साथ ही सेना ने तमाम जगह क्वारांटीन सेंटर भी बनाये जोकि सभी के लिए काफी लाभकारी रहे। सेना ने इसके साथ ही केंद्र तथा विभिन्न राज्यों की सरकारों की ओर से चलाये जा रहे कोरोना रोधी अभियानों में हरसंभव मदद की।
सीमा पार आतंकवाद पर कड़ा प्रहार
पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत सीमापार से प्रायोजित आतंकवाद को कभी बर्दाश्त नहीं करेगा और देश के पास किसी भी आतंकी गतिविधि से निपटने के लिए अपने चुने हुए समय और स्थान पर सटीक पलटवार करने का अधिकार सुरक्षित है। अब जनरल नरवणे ऐसा कह रहे हैं तो यह सिर्फ बयान भर नहीं समझा जाना चाहिए। भारतीय सेना ने पाकिस्तान को बार-बार उसकी हिमाकतों का तगड़ा जवाब देकर दिखाया भी है। यही कारण है कि इस्लामाबाद के मन में सर्जिकल स्ट्राइक का इतना खौफ बैठ गया है कि वह दिन-रात भय से कांपा रहता है। हालांकि कोरोना वायरस महामारी के बावजूद पाकिस्तान अपनी राज्य नीति के तहत एलओसी पर बिना किसी उकसावे के संघर्षविराम का उल्लंघन करता आ रहा है और कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए भी प्रयास करता रहा है। लेकिन सेना ने संघर्षविराम उल्लंघनों का जवाब पाकिस्तानी चौकियां उड़ा कर दिया और घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों का भेजा उड़ा कर पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं का दिल दहला दिया।
पाकिस्तान भले कितने ही प्रयास कर ले लेकिन कश्मीर घाटी में अब आतंकवाद के पाँव उखड़ने लगे हैं। पिछले वर्ष सर्वााधिक बड़ी संख्या में आतंकवादी और आतंकवादी संगठनों के आला कमांडर मारे गये। पूरा साल यह स्थिति बनी रही कि आतंकी संगठनों के चीफ का पद लगभग खाली ही रहा क्योंकि इस पर बैठने वाला कुछ समय ही जिंदा रह पाया। सेना का मानवीय चेहरा भी कश्मीर घाटी के लोगों ने विभिन्न ऑपरेशन्स के दौरान फिर देखा जब नागरिकों के जीवन के लिए जवानों ने अपनी कुर्बानी दी। सेना की ओर से चलाये जाने वाले सद्भावना मिशनों का ही कमाल है कि कश्मीरी युवा बड़ी संख्या में मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। सेना की भर्तियों में भाग लेने के लिए कश्मीरी युवाओं की भीड़ लग रही है। इसके अलावा कोरोना काल में जिस तरह सेना ने रोजगार संबंधी प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थानीय स्तर पर चलाये उससे युवाओं में कौशल बढ़ा है। लॉकडाउन के दौरान सेना की ओर से कश्मीर में जरूरतमंदों की हरसंभव मदद की गयी, राशन बांटा गया, चिकित्सा संबंधी जरूरतें पूरी की गयीं, युवाओं को खेलों से जोड़ा गया, नशे के खिलाफ अभियान के दौरान युवाओं के बीच जागरूकता फैलायी गयी। आज स्थानीय स्तर पर ऐसे हालात हैं कि यदि कोई बहकावे में आकर आतंकी गतिविधियों में लिप्त भी हो जाता है तो सेना के आग्रह पर अमूमन वापस लौट भी आता है।
चीनी चौधराहट को चुटकी में चटकाया
जनरल एमएम नरवणे के नेतृत्व वाली भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जिस तरह से चीनी सेना का अत्यंत बहादुरी के साथ सामना किया और उन्हें वापस जाने को मजबूर किया, उसकी कल्पना तक चीन ने नहीं की होगी। भारतीय सेना ने इस साल जो उपलब्धि हासिल की है उस पर देश की आने वाली पीढ़ियों को गर्व होगा। विस्तारवादी चीन की मंशाओं पर पानी फेरना आसान नहीं है लेकिन भारतीय सेना ने यह कार्य करके दिखाया और हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। गलवान में हमारे बलवानों ने जो शौर्य और साहस दिखाया उसके लिए उन्हें बारम्बार सलाम। हमारे 20 जवान उस संघर्ष में शहीद हो गये लेकिन चीनी आक्रामकता का जवाब देते हुए वह जिस तरह चीनी सैनिकों को मारते-मारते मरे हैं वह हमारे शहीदों को सदा के लिए अमर कर गया। चीन ने कोरोना महामारी के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति बदलने की जो भी कोशिशें की वह सभी भारतीय सेना ने विफल कर दीं। भारतीय सेना द्वारा पिछले साल अगस्त में पैंगोंग झील से लगे कुछ ऊंचाई वाले इलाकों पर कब्जा किये जाने से चीन चौंक गया और भारत को उस पोजिशन का लाभ मिला।
भारत और चीन गतिरोध खत्म करने के लिए अब तक 8 दौर की बातचीत कर चुके हैं लेकिन हल नहीं निकला है और दोनों देशों की सेनाएं भयंकर ठंड और विषम परिस्थितियों के बावजूद आमने-सामने हैं। शायद चीन ने ठंड के इस मौसम में भारतीय सेना की परीक्षा लेने की सोची होगी, यदि ऐसा है तो भारतीय सेना उस परीक्षा में पूरी तरह पास हो चुकी है। भारतीय सेना के पास अपार साहस और कुछ भी कर दिखाने की हिम्मत तो पहले से ही थी लेकिन अब उसके पास विषम परिस्थितियों में भी पूरी तैयारी के साथ रहने के लिए साजोसामान भी है। जनरल नरवणे के नेतृत्व में भारतीय सेना ने अपने इतिहास का सबसे बड़ा भंडारण कार्यक्रम चलाया जोकि पूर्वी लद्दाख में ठंड के मौसम के लिए था क्योंकि भीषण ठंड के दौरान जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं उस समय के लिए जवानों की हर चीज की व्यवस्था करना जरूरी था। भीषण सर्दी से मुकाबले की तैयारी भारतीय सेना ने पिछले साल जुलाई से ही शुरू कर दी थी। सैनिकों के लिए खास कपड़े और टेंट खरीदे गए जिनमें शून्य से 40 डिग्री नीचे के तापमान में आराम से रहा जा सकता है।
40 फीट तक बर्फ पड़ने के समय किसी भी सैनिक का इन इलाकों में ज्यादा समय तक तैनात रहना शारीरिक तौर पर काफी कठिन है लेकिन मोदी सरकार सैनिकों की हर जरूरत का खास ख्याल रख रही है। इसलिए एक बड़े अभियान के तहत राशन, केरोसिन हीटर, खास कपड़े, टेंट्स और दवाइयों को पूरी सर्दी के लिए समय से ही जमा कर लिया गया था। बेहद ठंडे मौसम में सैनिकों के इस्तेमाल के लिए खास कपड़ों के 11000 सेट अमेरिका से खरीदे गये। हाई ऑल्टेट्यूड और सुपर हाई ऑल्टेट्यूड में तैनात सैनिकों के लिए गरम रहने वाले टैंटों के अलावा लद्दाख में तैनात सभी सैनिकों के लिए स्मार्ट कैंप भी समय से तैयार कर लिए गए थे जिनमें बिजली, पानी, कमरे को गर्म रखने वाले हीटर, स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी सभी जरूरतों का ख्याल रखा गया। भारतीय सेना ने अपने सबसे बड़े सैन्य भंडारण अभियान के तहत पूर्वी लद्दाख में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लगभग चार महीनों की भीषण सर्दियों के मद्देनजर बलशाली टैंकों, तोपों, सैन्य वाहनों, भारी हथियार, गोला-बारूद, ईंधन के साथ ही खाद्य और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पूरी कर चीन की चौधराहट को चौंका दिया। यही नहीं इस वर्ष ठंड संबंधी दुश्वारियों की वजह से घायल होने वाले सैनिकों की तादाद भी पहले की अपेक्षा ज्यादा नहीं है जबकि इस बार तैनाती बड़ी संख्या में है। भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए सेनाध्यक्ष समय-समय पर पूर्वी लद्दाख का दौरा भी कर रहे हैं, तैयारियों की समीक्षा कर रहे हैं और जरूरतों को पूरा करने के निर्देश भी दे रहे हैं। इसके अलावा लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दौलत बेग ओल्डी और डेपसांग जैसे अनेक अहम इलाकों तक सैनिकों की आवाजाही के लिए अनेक सड़क परियोजनाओं पर काम तेज करवाया गया है।
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सेना प्रमुख ने देश को आश्वस्त किया है हम जब तक अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों और उद्देश्यों को नहीं प्राप्त कर लेते तब तक पकड़ बनाकर रखने के लिए तैयार हैं और भारतीय सैनिक न सिर्फ लद्दाख के क्षेत्र में बल्कि एलएसी से लगे सभी क्षेत्रों में उच्च स्तर की सतर्कता बरत रहे हैं। जनरल नरवणे ने कहा है कि भारतीय सेना की संचालनात्मक तैयारी बेहद उच्च स्तर की है। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक स्थिति के बारे में उन्होंने कहा कि यह वैसी ही है जैसी पहले थी और यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। सेनाध्यक्ष के इस बयान ने उन तमाम राजनीतिक आरोपों पर विराम लगा दिया है जिसके तहत तरह-तरह की बातें कही जा रही थीं।
सेना की उड्डयन शाखा में शामिल होंगी महिला पायलट
जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की एक बड़ी पहल के तहत भारतीय सेना ने अपनी उड्डयन शाखा में महिला पायलटों की शामिल करने का फैसला किया है और माना जा रहा है कि इसके पहले बैच का प्रशिक्षण जुलाई में शुरू हो जायेगा। इस बारे में स्वयं जनरल नरवणे ने कहा कि उन्होंने एक महीने पहले सेना की उड्डयन शाखा में महिलाओं को शामिल करने का निर्देश जारी किया था। फिलहाल सेना की उड्डयन शाखा में महिलाओं को सिर्फ एयर ट्रैफिक कंट्रोल और ग्राउंड ड्यूटी में लगाया जाता है। सेना प्रमुख की पहल पर एडजुटेंट जनरल शाखा, सैन्य सचिव शाखा और उड्डयन निदेशालय में सहमति बन गयी है कि उड़ान भरने वाली शाखा में पायलट के रूप में महिला अफसरों की भर्ती की जा सकती है। माना जा रहा है कि अगला सत्र जुलाई से शुरू होगा और महिला अफसरों को पायलट प्रशिक्षण में शामिल किया जाएगा। एक साल के प्रशिक्षण के बाद वह पायलट के तौर पर फ्रंट लाइन पर ड्यूटी कर सकेंगी।
सैन्यकर्मियों के बीच मानसिक तनाव को कम करने के भरसक प्रयास
सेना ने इस चुनौतीपूर्ण वर्ष में अपने जवानों की सेहत का भी खास ख्याल रखा। कई बार ऐसे हालात हो जाते हैं कि मानसिक तनाव से जूझ रहे जवान आत्महत्या कर लेते हैं इसको देखते हुए विभिन्न अभियान चलाये गये। सैनिकों में तनाव की समस्या को दूर करने के लिए परामर्श भेजने सहित अन्य कई कदम उठाए गए। सेनाध्यक्ष की पहल पर बल ने जवानों के बीच तनाव के कारणों का अध्ययन किया और उनकी समस्याएं दूर करने के प्रयास किये गये और किये भी जा रहे हैं। साथ ही वरिष्ठ अधिकारी इस मुद्दे पर कंपनी कमांडर और कमांडिंग स्तर के अधिकारियों के नियमित संपर्क में बने हुए हैं। देखा जाये तो सेना के बारे में बिना आधार के भी कई बार रिपोर्टें प्रकाशित कर दी जाती हैं और विवाद खड़ा कर उस रिपोर्ट को वापस ले लिया जाता है। हाल ही में प्रमुख सैन्य थिंक टैंक यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (यूएसआई) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय सेना के आधे से ज्यादा सैनिक गंभीर तनाव की स्थिति में मालूम होते हैं और दुश्मनों की गोली के मुकाबले आत्महत्या, आपसी झगड़े और अन्य अप्रिय घटनाओं में हर साल ज्यादा सैनिकों की जान जा रही है। इस रिपोर्ट पर विवाद हुआ और बाद में यूएसआई की वेबसाइट से इस रिपोर्ट को हटा लिया गया।
पूर्वोत्तर में शांति
पूर्वोत्तर में शांति व्यवस्था बनाये रखने में और उग्रवादी तत्वों पर लगाम लगाने में सेना की बड़ी भूमिका रहती है। पिछले एक वर्ष में देखें तो असम सहित पूर्वोत्तर के अन्य भागों में शांति बनाये रखने में सेना का अनुकरणीय योगदान रहा। सीमायी राज्य अरुणाचल प्रदेश में भी उच्च स्तर की सतर्कता बनाये रखने की बात हो, बुनियादी ढाँचे को मजबूत बनाने की बात हो, सभी में सेना बढ़-चढ़कर कार्य करती रही। ओडिशा, बंगाल सहित जहाँ-जहाँ चक्रवाती तूफान आये वहाँ-वहाँ जवान राहत अभियानों में भी उतरे। यही नहीं चाहे नगालैंड के जंगली क्षेत्र में आग बुझाने की बात हो या अन्य प्रकार के सामाजिक कार्य, सेना ने सभी में आगे बढ़कर कार्य किया।
आत्मनिर्भर भारत
जब भारत आत्मनिर्भरता की राह पर कदम बढ़ा चला है तो सेना कहां पीछे रहने वाली है। पिछले वर्ष फरवरी माह में उत्तर प्रदेश की राजधानी में डिफेंस एक्सपो भी आयोजित किया गया जिसमें विदेशी कंपनियों ने देशी कंपनियों के रक्षा उत्पादों को देखा और सराहा। इस दौरान कई विदेशी कंपनियों से रक्षा अनुबंध भी हुए। इसके अलावा सेना ने छोटे से लेकर बड़े हथियारों तक की ऐसी सूची बनाई है जिनको घरेलू स्तर पर रक्षा साजोसामान बनाने वाली कंपनियों से ही खरीदा जायेगा। यही नहीं हाल ही में सेना की ओर से जो नये ऑर्डर दिये गये हैं उनमें 80 प्रतिशत तक भारतीय रक्षा कंपनियों को दिये गये हैं। स्वयं सीडीएस बिपिन रावत इस बारे में उद्योग संगठनों की बैठकों को संबोधित कर उनका हौसला बढ़ा चुके हैं।
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आगे की चुनौती
भारतीय सेना को पाकिस्तान और चीन की मिलिभगत को देखते हुए ‘दो मोर्चों’ पर संभावित खतरे के परिदृश्य से निपटने के लिए सदैव तैयार रहना होगा। साथ ही नये युग की जो तकनीकी संबंधी चुनौतियां हैं उनसे भी निबटने के लिए अपनी शक्ति को बढ़ाना होगा। सरकार को भी चाहिए कि सेना के आधुनिकीकरण के लिए भी जो भी बजटीय सहयोग और समर्थन चाहिए वह उसे प्रदान करती रहे। वैसे स्वयं सेनाध्यक्ष ने बताया है कि कोरोना काल में जब सभी मंत्रालयों को पैसा संभाल कर खर्च करने के निर्देश थे तब सेना के लिए कोई रोकटोक नहीं थी और उसे अपनी हर जरूरत का सामान समय पर मिलता रहा। सेनाध्यक्ष के रूप में जनरल नरवणे ने पड़ोसी देशों के अलावा उत्तर कोरिया और सऊदी अरब समेत कई अन्य देशों की यात्रा कर उन देशों के साथ भारत के रक्षा संबंध मजबूत बनाये, भारतीय सेना का अन्य देशों के साथ संयुक्त अभ्यास अभियान को आगे बढ़ाकर हमारे जवानों का कौशल और बढ़ाया, इस प्रकार के कार्यों को आगे भी किये जाते रहने की जरूरत है।
बहरहाल, हम सभी की भी यह जिम्मेदारी है कि जब हमारी सेना के वीर जवान सीमा पर और दुर्गम पहाड़ियों में डटे हुए हैं तो उनका हौसला बढ़ाने के लिए जो कुछ हो सकता है वह करते रहें। जिस विश्वास, दृढ़ता, प्रतिबद्धता और वीरता के साथ हमारे जवान डटे हुए हैं उसी दृढ़ता के साथ हमें हमारे जवानों के साथ खड़े रहने की जरूरत है।
जय हिन्द
-नीरज कुमार दुबे
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