चंद्रशेखर आजाद भाजपा की नहीं मायावती की मुश्किलें बढ़ाने वाले हैं

By अजय कुमार | Sep 19, 2018

लोकसभा चुनाव से कुछ माह पूर्व भीम सेना प्रमुख चंद्रशेखर की रिहाई के पीछे की सियासत को जो लोग समझ नहीं पा रहे थे, बसपा सुप्रीमो मायावती ने उनके 'सामने दूध का दूध, पानी का पानी' कर दिया है। मायावती का यह कहना गलत नहीं है कि बीजेपी साजिशन भीम आर्मी के चंद्रशेखर को आगे करके उनके परम्परागत दलित वोट बैंक का बंटवारा कराना चाहती है, ताकि बीजेपी की जीत की राह आसान हो सके। 2014 के आम चुनाव में खाता नहीं खोल सकीं और 2017 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार का मुंह देखने वाली मायावती के लिये अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव अस्तित्व बचाने का आखिरी मौका नजर आ रहा है। ऐसे में बीजेपी ने भीम सेना प्रमुख चंद्रशेखर को जब खुली हवा में सांस लेने का मौका दिया तो बसपा सुप्रीमो का चिंतित होना लाजिमी था। चंद्रशेखर ने रिहाई के बाद जब प्रेस कांफ्रेंस में दलित हितों का ढिंढोरा पीटते हुए भाजपा को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया तो मायावती की नींद उड़ गई। अभी तक तो अखिलेश यादव ही उन्हें बुआ कहा करते थे, अब एक और नया भतीजे पैदा होने से मायावती की त्योरियां चढ़ गईं, फिर तो वह यह भी सहन नहीं कर पाईं की चंद्रशेखर भी उन्हें अपनी बुआ बताए। मायावती ने दलितों, आदिवासियों और अन्य लोगों को आगाह करते हुए कहा कि वर्षों से ऐसे हजारों संगठन बनते आ रहे हैं, जिनकी आड़ में लोग धंधा चलाते रहते हैं। सामने कुछ और कहते हैं और पर्दे के पीछे कुछ और करते हैं। वह पूछती हैं ऐसे लोग अगर हमारे हितैषी होते तो इन्हें अलग संगठन बनाने की जरूरत नहीं पड़ती।

 

संभवतः आम चुनाव को लेकर बेहद सजग मायावती अब सियासत में किसी रिश्ते पर भी विश्वास करने को तैयार नहीं हैं। हो सकता है, उन्हें सियासी रिश्तों की पुरानी यादें कचोटती रहती होंगी। कौन भूल सकता है कि वर्षों पहले बीजेपी नेता और वर्तमान में बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन के साथ भाई−बहन का रिश्ता बनाने वाली मायावती को कालांतर में इसकी काफी कीमत चुकानी पड़ी थी। इसीलिये तो उन्होंने 'दूध से जला, मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है', मुहावरे को चरितार्थ करते हुए कहना शुरू कर दिया है कि कुछ लोग राजनीतिक स्वार्थ में अपने बचाव के लिए जबरदस्ती मेरे साथ भाई−बहन या बुआ−भतीजे का रिश्ता जोड़ लेते हैं। ऐसे लोगों से मेरा कोई रिश्ता नहीं हो सकता। लखनऊ में अपने नए बंगले पर पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती ने यहां तक कह दिया कि सहारनपुर के शब्बीरपुर दलित उत्पीड़न कांड में शामिल व्यक्ति भाजपा की रणनीति के तहत रिहा हुआ है।

 

भीम सेना प्रमुख चन्द्रशेखर की समय पूर्व रिहाई के पीछे की सियासत पर नजर दौड़ाई जाये तो यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि पिछले कुछ वर्षों में भीम सेना ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित हितों के नाम पर अपनी जबर्दस्त पकड़ बनाई है। भीम सेना दलितों के हितों के नाम पर कई आंदोलन चला चुकी है, जिसके चलते ही भीम सेना प्रमुख चंद्रशेखर को गत वर्ष मई में जेल की सलाखों के पीछे भी जाना पड़ा था। बीते वर्ष यूपी के सहारनपुर जिले में हुई जातीय हिंसा मामले में भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को यूपी पुलिस की मेरठ एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) ने हिमाचल के पर्यटन स्थल डलहौजी से गिरफ्तार कर लिया था। उसके बाद से वह जेल ही में था, लेकिन इससे उसके समर्थकों का हौसला नहीं टूटा। वह लगातार रावण की रिहाई के लिये आंदोलन कर रहे थे। हां, चंद्रशेखर के जेल जाने से बसपा सुप्रीमो मायावती जरूर राहत महसूस कर रही थीं।

 

चंद्रशेखर ही नहीं भतीजे अखिलेश के साथ भी उनका व्यवहार सख्त बना हुआ है। अखिलेश गठबंधन को लेकर आश्वस्त हैं तो मायावती आशंकित नजर आ रही हैं। ऐसा लगता है कि बसपा सुप्रीमो आम चुनाव को लेकर मायावती अभी अपनी बंद मुटठी खोलने को तैयार नहीं हैं। कभी−कभी तो ऐसा लगता है बसपा सुप्रीमो मायावती धीरे−धीरे अखिलेश की मजबूरी बनती जा रही हैं। बसपा की मदद से अखिलेश ने तीन उप−चुनावों में जीत क्या हासिल की, उन्होंने मेहनत करनी ही बंद कर दी है। वह पूरी तरह से जातीय समीकरण के सहारे बैठ गये हैं। अपनी सोची−समझी रणनीति के सहारे ही बसपा सुप्रीमो ने तो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को घुटनों के बल ला दिया है। कभी−कभी तो ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव बुआ मायावती के हाथ की कठपुतली बनते जा रहे हैं। अगर ऐसा न होता तो गठबंधन को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती के बयान के कुछ घंटे बाद ही सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को बीजेपी का डर दिखाकर यह नहीं कहना पड़ता की गठबंधन के लिये उन्हें दो कदम पीछे हटना पड़े तो उसके लिये भी वह तैयार हैं।

 

पूरे घटनाक्रम पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने मायावती के आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि मायावती को यूपी की जनता के प्रति कितनी वेदना है, यह इससे पता चलता है कि वह लगभग तीन महीने बाद प्रकट हुई हैं। वह केवल राजनीतिक पर्यटन के लिए लखनऊ आती हैं और बयान देकर चली जाती हैं। महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा कि मायावती ने बसपा के संस्थापक और दलितों के मसीहा कांशीराम के साथ क्या किया, यह पूरा देश जानता है। आज भी कांशीराम का परिवार मायावती के खिलाफ अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है। उनकी राजनीति अपना विकास और कुनबे के लूटतंत्र तक सीमित है। जिस कांग्रेस के राज में दलितों, आदिवासियों का उत्पीड़न हुआ, भ्रष्टाचार चरम पर पहुंचा, उसके साथ खड़ी होकर वह सत्ता का सुख उठाती रहीं। जिस सपा के राज में प्रदेश में दलितों के साथ अत्याचार और ज्यादती की इंतहा हो गई, आज उनके साथ हाथ मिला रही हैं।

 

महागठबंधन की कोशिशों से इतर बात बीजेपी की कि जाये तो उसके लिये सपा के विद्रोही शिवपाल सिंह यादव का समाजवादी सेक्युलर मोर्चा और भीम आर्मी के चंद्रशेखर उर्फ रावण भाजपा की मुश्किल कम करते नजर आ रहे हैं। रावण के जेल से छूटने और शिवपाल के अलग से पार्टी बनाये जाने के बाद प्रदेश में एक और नया मोर्चा खड़ा होने की भी चर्चा छिड़ गई है। प्रदेश की सियासत में इस समय भले ही उक्त नेताओं का कोई प्रभाव नहीं दिखता हो लेकिन, यह लोग कुछ सीटों पर वोटों के बिखराव का सबब बन सकते हैं। शिवपाल फिलहाल असंतुष्ट सपाइयों को एक मंच पर लाकर अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे हैं।

 

उत्तर प्रदेश के युवा दलितों के बीच भीम आर्मी का आकर्षण है। यद्यपि यह न कोई राजनीतिक दल है और न ही संगठनात्मक रूप से अभी इसकी कोई बड़ी भूमिका बनी है लेकिन, जिस तरह चंद्रशेखर के खिलाफ मायावती ने आक्रामक रुख अपनाते हुए उनसे किसी भी तरह के रिश्ते से इन्कार कर दिया, उससे इतना तो साफ है कि भीम आर्मी को वह अपने से दूर रखेंगी। ऐसे में अपने अस्तित्व के लिए चंद्रशेखर कोई दांव खेल सकते हैं। फिलहाल तो वह भाजपा को हराने की बात कर रहे हैं लेकिन, भविष्य में कोई नया पैंतरा चल सकते हैं। अगर वह गठबंधन के साथ नहीं भी हुए तो पश्चिम की कुछ सीटों पर उनके लिए मुश्किल बन सकते हैं। ऐसे में मायावती से चंद्रशेखर का दूर होना भाजपा के लिए फायदेमंद होगा।

 

लब्बोलुआब यह है कि बीजेपी की चुनावी रणनीति ने गठबंधन की सियासत की चूलें हिला दी हैं। भीम सेना के प्रमुख रावण का जेल से बाहर आना हो या फिर शिवपाल यादव का अलग दल बनाना। कहीं न कहीं इस पूरे घटनाक्रम के पीछे बीजेपी की सोच नजर आती है। ऐसे में महागठबंधन की सियासत आसानी से परवान चढ़ते नहीं दिख रही है।

 

-अजय कुमार

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