By अभिनय आकाश | Sep 11, 2025
दिल्ली उच्च न्यायालय ने उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती संख्या पर गंभीर चिंता जताई है और एक मज़बूत एवं उत्तरदायी रैगिंग-रोधी प्रणाली की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है। यह टिप्पणी अमन सत्य काचरू ट्रस्ट द्वारा दायर दो याचिकाओं के निपटारे के दौरान आई, जिसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा राष्ट्रीय रैगिंग रोकथाम कार्यक्रम का ठेका सेंटर फॉर यूथ (सी4वाई) सोसाइटी को देने के फैसले को चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ ने कहा कि छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं चिंताजनक रूप से लगातार बढ़ रही हैं और तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया। न्यायाधीशों ने कहा, "एक उचित, कार्यात्मक और प्रभावी रैगिंग-रोधी हेल्पलाइन निश्चित रूप से तत्काल और अत्यंत आवश्यक है। इसमें कोई देरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती, अन्यथा हम इस अभिशाप के कारण और अधिक युवाओं की जान गंवा देंगे। आईआईटी खड़गपुर के दुखद मामलों सहित हालिया मीडिया रिपोर्टों का न्यायिक संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने अमित कुमार एवं अन्य बनाम भारत संघ (2025) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया, जिसके कारण छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्याओं पर एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया गया था।
उल्लेखनीय है कि अमन सत्य कचरू ट्रस्ट के संस्थापक प्रोफेसर राजेंद्र कचरू को इस टास्क फोर्स का सदस्य नियुक्त किया गया है। हालांकि न्यायालय ने 2012 में इसकी स्थापना के बाद से एंटी-रैगिंग कार्यक्रम को आकार देने और चलाने में प्रोफेसर कचरू की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया, लेकिन उसने यूजीसी के मौजूदा अनुबंध में हस्तक्षेप नहीं करने का फैसला किया, जो 31 दिसंबर, 2025 तक वैध है। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी दर्ज किया कि यूजीसी ने अपने पूर्व आदेश के अनुपालन में, ट्रस्ट को उसकी पिछली सेवाओं के लिए 12.73 लाख रुपये के भुगतान को मंज़ूरी दे दी है। जनसेवा के एक भाव से, प्रो. काचरू ने बिना किसी मुआवज़े के रैगिंग विरोधी डेटाबेस की निगरानी जारी रखने की पेशकश की।