Mahalaxmi Stotra: शुक्रवार को महालक्ष्मी स्त्रोत से करें पापों का नाश, मां लक्ष्मी की कृपा से मिलेगी धन-संपदा

By अनन्या मिश्रा | Oct 17, 2025

शुक्रवार का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। मां लक्ष्मी इस संसार को वैभव, ऐश्चर्य, सुख, यश, धन, संपदा, समृद्धि, बुद्धि, ओज आदि गुणों से परिपूर्ण करती हैं। एक बाद दुर्वासा मुनि के श्राप के कारण इंद्रदेव श्रीहीन हो गए थे। तब तीनों लोक मां लक्ष्मी से रहित हो गए थे। इंद्र की राज्यलक्ष्मी समुद्र में चली गई थीं। बाद में देवताओं के प्रार्थना करने पर मां लक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुई और सभी देवी-देवताओं, ऋषि-मुनि ने उनका जयगान किया। उसी समय इंद्रदेव ने मां लक्ष्मी की प्रार्थना के लिए महालक्ष्मी स्त्रोत की रचना की, जिससे धन की देवा मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुईं।


इसके फलस्वरूप तीनों ही लोक फिर से मां लक्ष्मी की कृपा से धन-संपदा से संपन्न हो गए। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक जो भी जातक दिन में एक बार महालक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जो दिन में दो बार महालक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करता है, उसको धन-धान्य और संपदा की प्राप्ति होती है। वहीं जो जातक दिन में तीन बार महालक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करता है, उससे मां लक्ष्मी हमेशा प्रसन्न रहती हैं। वहीं शुक्रवार के दिन आप भी महालक्ष्मी स्त्रोत का पाठ कर मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

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महालक्ष्मी स्तोत्र

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।

शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।


नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।

सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।


सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।

सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।


सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।

मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।


आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।

योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।


स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।

महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।


पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।

परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।


श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।

जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।


महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।

सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।


एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।

द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।


त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।

महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।

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