सही मायनों में भारत रत्न थे डॉ. कलाम, आज भी देते हैं प्रेरणा

By मृत्युंजय दीक्षित | Oct 14, 2017

हम सभी युवाओं व आम जनमानस के दिलों में राज करने वाले देश के महान कर्मयोगी भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के एक मध्यमवर्गीय परिवर में हुआ था। डॉ. कलाम ऐसे राष्ट्रपति थे जिनके जीवन का सफर झोपड़ी से प्रारम्भ हुआ और भारत को सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं में आत्मनिर्भर बनाते हुये उन्होंने विकास के नये मिशन को देश की जनता के सामने प्रस्तुत किया। यह उन्हीं की मेहनत का परिणाम है कि भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन चुका है। उनके दिशानिर्देशों के अनुरूप बनायी गयी मिसाइलों से भारत के पड़ोसी शत्रु कांपते हैं। अब चाहे चीन हो या पाक, कोई भी भारत के साथ आमने सामने के युद्ध से कतरा रहा है।

 

भारत रत्न डॉ. कलाम का जीवन सदा युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बना रहेगा। डॉ. कलाम ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी थे जो वास्तव में पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष था। वे हर धर्म का आदर करने वाले थे। डॉ. कलाम ने अपने जीवनकाल में कोई भी एक ऐसी बात नहीं की या आचरण नहीं किया जिससे यह लगे कि किसी धर्म विशेष के प्रति उनका लगाव या झुकाव था। डॉ. कलाम का पूरा जीवन ही प्रेरणास्पद है। डॉ. कलाम पर उनके जीवनकाल में ही किताबें भी लिखी गयीं और फिल्म भी बन गयी। डॉ. कलाम देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति बने जोकि सोशल मीडिया में लगातार सक्रिय रहते थे और युवाओं तथा नये वैज्ञानिकों एवं बालकों के लिए प्रेरक बातें लिखा करते थे।

 

15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे भारत रत्न राष्ट्रपति डॉ. कलाम का पूरा नाम अबुल जाकिर जैनुल आब्दीन अब्दुल कलाम था। अब्दुल कलाम के जीवन पर उनके माता−पिता की अमिट छाप पड़ी थी। अब्दुल के जीवन पर विभिन्न धर्मों के लोगों का व्यापक प्रभाव पड़ा था। उनके स्कूली जीवन को सही दिशा देने में उनके गुरु की महती भूमिका थी। डॉ. कलाम को अंग्रेजी साहित्य पढ़ने का चस्का लगा। फिर उनकी इच्छा भौतिकशास़्त्र में हुई। उन्होंने अध्ययन के प्रारंभिक दिनों में ही विज्ञान और ब्रह्माण्ड, ग्रह−नक्षत्रों और ज्योतिष का काफी गहराई से अध्ययन कर लिया था।

   

डॉ. कलाम ने सोशल मीडिया में कहा था कि "सरलता, पवित्रता और सच्चाई के बिना कोई महानता नहीं होती।" उनमें यह सभी गुण विद्यमान भी थे। डॉ. कलाम के अंदर कवि, शिक्षक, लेखक, वैज्ञानिक सहित आध्यात्मिक गुण विद्यमान थे। एक प्रकार से वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। यह उनकी महान प्रतिभा का ही कमाल है कि आज भारत के पास अग्नि, पृथ्वी, त्रिशूल जैसी मिसाइलों का भंडार है। साथ ही उनकी प्रेरणा से ही भारत अब अपनी मिसाइल तकनीक को और विकसित करने में लग गया है। 1998 में उन्हीं की देखरेख में भारत ने पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया। इसके बाद भारत परमाणु शक्ति संपन्न देशों की सूची में शामिल हुआ था। डॉ. कलाम ने 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। 1992 जुलाई से दिसंबर 1999 तक वे रक्षा विज्ञान सलाहकर और सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सलाहकार रहे। 1982 में उन्हें डीआरडीओ का निदेशक नियुक्त किया गया। यहीं पर उनकी वैज्ञानिक प्रतिभा ने नये कीर्तिमान को छुआ। इन्होंने अग्नि एवं त्रिशूल जैसी मिसाइलों को स्वदेशी तकनीक से बनाया।

 

डॉ. कलाम अपने जीवनकाल में सदा युवाओं से ही मिलने और उनसे संवाद स्थापित करने का प्रयास करते थे। उनका मानना था कि युवा पीढ़ी ही देश की पूंजी है। जब बच्चे बड़े हो रहे होते हैं तो उनके आदर्श उस काल के सफल व्यक्तित्व ही हो सकते हैं। माता−पिता और प्राथमिक कक्षाओं के अध्यापक आदर्श के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बच्चे के बड़े होने पर राजनीति, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उद्योग जगत से जुड़े योग्य तथा विशिष्ट नेता उनके आदर्श बन सकते हैं। डॉ. कलाम ने ही सर्वप्रथम भारत के लिए अपनी पुस्तक के माध्यम से विजन 2020 प्रस्तुत किया। यह पुस्तक भारत में काफी चर्चित हुयी।

 

डॉ. कलाम जो काम करते थे पूरी तरह से समर्पित होकर करते थे। उनके जीवन पर आधारित दो पुस्तकें "तेजस्वी मन" और फिर "अग्नि की उड़ान" उनके जीवन का एक खुला दस्तावेज हैं। उनकी देशभक्ति व कार्य राजनीति से परे थे। वह देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति बने थे जोकि राजनीति से अलग व बहुत दूर थे। जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में उनका नाम सामने आया तो एक ओर जहां देश के युवाओं व वैज्ञानिकों में हर्ष की लहर दौड़ रही थी वहीं दूसरी ओर एक तबका यह भी सोच विचार में डूब रहा था कि जब कभी कोई बड़ा संवैधानिक विवाद उनके सामने आयेगा तो वे उसका निपटारा कैसे करेंगे क्योंकि उनका राजनीतिक क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था। देश के अधिकांश विद्वानों की यही राय बन रही थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कहीं गलत निर्णय तो नहीं कर लिया है।

 

लेकिन आम राजनैतिक लोगों की यह सोच उस समय निर्मूल साबित हुई जब यूपीए−1 सत्ता में आया तब सोनिया गांधी के पास प्रधानमंत्री बनने का पूरा अवसर था लेकिन विदेशी मूल का होने के कारण डॉ. कलाम ने उन्हें प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर कर दिया था। उसके बाद मनमोहन सिंह का नाम प्रधानमंत्री के रूप में सामने आ गया था। यही कारण रहा कि उसके बाद कांग्रेस और डॉ. कलाम के बीच दूरियां बढ़ती चली गयीं और उन्हें दुबारा राष्ट्रपति बनने का अवसर नहीं मिला। डॉ. कलाम देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्होंने संसद में अपने भाषण के दौरान पंथनिरपेक्ष शब्द का इस्तेमाल किया था। इस बात से भी कांग्रेसी और वामपंथी विचारधारा के लोग चिढ़े रहते थे। एक बात और डॉ. कलाम किसी खूंखार से खूंखार अपराधी को भी फांसी की सजा देने के खिलाफ थे।

 

वह कहा करते थे कि ऐसे सपने देखो कि वे जब अब तक पूरे न हो जायें तब तक आप को नींद न आये। डॉ. कलाम ने ही रेलवे को आधुनिक बनाने का मूलमंत्र दिया। डॉ. कलाम जीवन के अंतिम सांसों तक कार्य करते रहे। वे एक ऐसे कर्मयोगी थे जो जाते−जाते संदेश देकर गये। डॉ. कलाम ने एक सबल सक्षम भारत का सपना देखा था। वे हमेशा देश को प्रगति के पथ पर ले जाने की बातें किया करते थे। डॉ. कलाम बेदाग चरित्र, निश्छल भावना और विस्तृत ज्ञान से पूर्ण दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति थे। वे एक महान सपूत थे। ऐसा लगता ही नहीं कि वे अब हमारे बीच नहीं रहे। देश की भावी पीढ़ी को कलाम साहब के हर सपने को पूरा करने की महती भूमिका अदा करनी है ताकि देश को 24 घंटे बिजली मिलने लगे और गांवों से गरीबी और अशिक्षा का कुहासा दूर हो सके।

 

- मृत्युंजय दीक्षित

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