By विजयेन्दर शर्मा | Jul 13, 2021
शिमला। अपनी पुस्तक मिड नाईट रेट से चर्चा में आये हिमाचल प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक ईशवर देव भंडारी ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद रामपुर रियासत के अगले राजा के प्रस्तुतीकरण की परंपरा पर सवाल उठाया है। भंडारी ने अपने फेसबुक पेज पर रामपुर बुशहर में राज परिवार की इस पंरपरा निभाने का विरोध करते हुये इसे बदलते युग में बेतुका करार दिया है।
भंडारी ने अपनी पोस्ट में वीरभद्र सिंह के अंतिम संस्कार से पहले रियासत की राजगद्दी उनके बेटे को सौंपे जाने की परंपरा को सीधे तौर पर लोकतांत्रिक परंपराओं और व्यवस्था के विरुद्ध बताया है। सुपर काप आईपीएस रहे भंडारी का यह बयान अचानक चर्चा में आ गया है। जिससे प्रदेश में इस मामले पर बहस छिड गई है। भंडारी ने कहा है कि वह प्रदेश और देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते हैं और इसके निर्वहन में ही आस्था रखते हैं। रजवाड़ा शाही को आगे बढ़ाए जाने की परंपरा हमें मानसिक और दैहिक तौर पर गुलाम होने के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है।
भंडारी ने कहा है कि उन्हें भी पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन से बाकी तमाम लोगों की तरह दुख हुआ है और वह परिवार के प्रति अपनी संवेदना भी प्रकट करते हैं लेकिन वह देश मैं मौजूद प्रजातांत्रिक व्यवस्था का समर्थन और सम्मान करते हैं लिहाजा उन्हें यह रियासतों में अगली पीढ़ी को राजगद्दी सौंपने जैसे कदम का समर्थन नहीं कर सकते हैं। पूर्व डीजीपी भंडारी इससे पहले फोन टेपिंग के मामले में सुर्खियों में आये थे सारे मामले को उन्होंने अपनी पुस्तक मिडनाईट रेड में भी सिलसिलेवार वर्णित किया है उस समय आईडी भंडारी पर आरोप लगाए गए थे कि पूर्व धूमल सरकार में जब वे सीआईडी के मुखिया थे तब उन्होंने हिमाचल भवन चंडीगढ़ के उस कमरे में माइक्रोफोन लगवाया, जिस कमरे में पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह को ठहराना था। वीरभद्र की आवाज रिकॉर्ड करने तथा माइक्रो रिकॉर्डर लगवाने के लिए दो पुलिस अधिकारी नियुक्त किए थे। रिकॉर्डिंग करने के बाद इस डाटा को अपने पैन ड्राइव में में डाला गया और कंप्यूटर का सारा डाटा नष्ट करने के आदेश दिए। हालांकि, भंडारी ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया था।
इस मामले पर 26 जून, 2013 को विजिलेंस ने पूर्व डीजीपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। इसके बाद 21 अगस्त 2014 को सीजेएम कोर्ट में चालान पेश किया। आईडी भंडारी ने उस चालान को चुनौती देते हुए सीजेएम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लंबी लड़ाई लड़ने के बाद उन्हें कोर्ट ने बरी किया। भंडारी ने आरोप लगाया कि पूर्व सीएम वीरभद्र के आदेश पर उन पर केस बनाए गए और इसमें वे अकेले ही आरोपी बनाए गए। इस मामले में 150 गवाह बनाए गए गए थे। जब ट्रायल शुरू हुआ तो उन्होंने फिर खुद को मामले से अलग करने की याचिका दी, क्योंकि उनका केस से कुछ लेना देना नहीं था। बाद में निचली अदालत ने कहा कि मामला झूठा है और उन्हें इस केस से बरी किया। अदालत से मिली जीत के बाद जयराम सरकार ने कैबिनेट में पहले राजनीतिक आधार पर बने सभी मामलों को वापस लेने के फैसला लिया सरकार ने अदालत से केस वापस ले लिया।
पूर्व डीजीपी भंडारी ने आरोप लगाया कि वीरभद्र सरकार के समय में उनके ऊपर तत्कालीन मुख्य सचिव, गृह सचिव पीसी धीमान, सामान्य प्रशासन सचिव सुभाशीष पांडा, अभिषेक त्रिवेदी ने तत्कालीन एडीजीपी सीआईडी के साथ एचएएस अधिकारी आरके गौतम ने 24 दिसंबर 2013 को उनके कार्यालय में बिना अनुमति के प्रवेश किया और कंप्यूटर दस्तावेजों सहित गोपनीय सूचनाएं अपने कब्जे में ले ली। इसके बाद आईपीएस अधिकारी एपी सिंह ने उनके खिलाफ जांच की और झूठे आरोप लगाए। इसमें उन्होंने आईपीएस अधिकारी रमेशा झाटजा से लेकर एचपीएस पंकज शर्मा पर भी आरोप लगाए थे।