नोट से वोट और वोट से नोट कमाना ही राजनीति का मूल मंत्र है

By डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Jul 30, 2022

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार भयंकर दुर्गति को प्राप्त हो गई है। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि ममता बनर्जी की सरकार इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर सकती है। ममता के राज में मैं जब-जब कोलकाता गया हूँ, वहां के कई पुराने उद्योगपतियों और व्यापारियों से बात करते हुए मुझे लगता था कि ममता के डर के मारे अब वे कोई गलत-सलत काम नहीं कर पा रहे होंगे लेकिन उनके उद्योग और व्यापार मंत्री पार्थ चटर्जी को पहले तो जांच निदेशालय ने गिरफ्तार किया और फिर उनके निजी सहायकों, मित्रों और रिश्तेदारों के घरों से जो नकद करोड़ों रु. की राशियां पकड़ी गई हैं, उन्हें टीवी चैनलों पर देखकर दंग रह जाना पड़ता है। अभी तो उनके कई फ्लैटों पर छापे पड़ना बाकी है।


पिछले एक सप्ताह में जो भी नकदी, सोना, गहने आदि छापे में मिले हैं, उनकी कीमत 100 करोड़ रु. से भी ज्यादा का ही अनुमान है। यदि जांच निदेशालय के चंगुल में उनके कुछ अन्य मंत्री भी फंस गए तो यह राशि कई अरब तक भी पहुंच सकती है। बंगाल के मारवाड़ी व्यवसायियों का खून चूसने में ममता सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। पार्थ चटर्जी सिर्फ तीन विभागों के मंत्री ही नहीं हैं। उन्हें ममता बनर्जी का उप-मुख्यमंत्री माना जाता है। इस हैसियत में ममता का सारा लेन-देन वही करते रहे हों तो कोई आश्चर्य नहीं है। वे पार्टी के महामंत्री और उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्हें बंगाल के लोग पार्टी की नाक मानते रहे हैं। इसीलिए उनकी गिरफ्तारी के छह दिन बाद तक उनके खिलाफ पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटता रहा।

इसे भी पढ़ें: ममता बनर्जी तो हमेशा अपनों का साथ देती हैं, इस बार पार्थ चटर्जी को अकेला क्यों छोड़ा?

तृणमूल के नेता भाजपा सरकार पर प्रतिशोध का आरोप लगाते रहे। अब जबकि सारे देश में ममता सरकार की बदनामी होने लगी तो कुछ होश आया और पार्थ चटर्जी को मंत्रिपद तथा पार्टी की सदस्यता से बर्खास्त किया गया है। यह बर्खास्तगी नहीं, सिर्फ मुअत्तिली है, क्योंकि पार्टी प्रवक्ता कह रहे हैं कि जांच में वे खरे उतरेंगे, तब उनको उनके सारे पदों से पुनः विभूषित कर दिया जाएगा। यह मामला सिर्फ तृणमूल कांग्रेस के भ्रष्टाचार का ही नहीं है। देश की कोई भी पार्टी और कोई भी नेता यह दावा नहीं कर सकता कि वे भ्रष्टाचार-मुक्त हैं। भ्रष्टाचार के बिना यानि नैतिकता और कानून का उल्लंघन किए बिना कोई भी व्यक्ति वोटों की राजनीति कर ही नहीं सकता। रुपयों का पहाड़ लगाए बिना आप चुनाव कैसे लड़ेंगे? अपने निर्वाचन-क्षेत्र के पांच लाख से 20 लाख तक के मतदाताओं को हर उम्मीदवार कैसे पटाएगा? नोट से वोट और वोट से नोट कमाना ही अपनी राजनीति का मूल मंत्र है। इसीलिए हमारे कई मुख्यमंत्री तक जेल की हवा खा चुके हैं। नोट और वोट की राजनीति विचारधारा और चरित्र की राजनीति पर हावी हो गई है। यदि हम भारतीय लोकतंत्र को स्वच्छ बनाना चाहते हैं तो राजनीति में या तो आचार्य चाणक्य या प्लेटो के ‘दार्शनिक नेता’ जैसे लोगों को ही प्रवेश दिया जाना चाहिए। वरना आप जिस नेता पर भी छापा डालेंगे, वह आपको कीचड़ में सना हुआ मिलेगा।


-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

प्रमुख खबरें

Gautam Buddha Nagar में धारा 163 लागू, नव वर्ष पर सुरक्षा के मद्देनजर तैनात होगा भारी पुलिस बल

Germany के एक बैंक में लाखों यूरो की संपत्ति की चोरी

Delhi Airport पर एक यात्री की जींस के अंदर छिपाकर रखा गया लगभग 200 ग्राम सोना जब्त

Skill India Mission की पहल के तहत AI certificates देंगी President