उपभोक्ताओं के लिए शिकायत करना हुआ आसान, मिल गये कई नये अधिकार भी

By नीरज कुमार दुबे | Aug 10, 2019

संसद से उपभोक्ता संरक्षण कानून को मंजूरी मिल गयी है और यदि उपभोक्ताओं की नजर से देखें तो यह उनके अधिकारों में जबरदस्त वृद्धि करता है। नये कानून के तहत उपभोक्ताओं के प्रति कंपनियों की जिम्मेदारियां और बढ़ गयी हैं। इसके साथ ही शायद यह दुनिया में पहली बार भारत सरकार ने किया है कि भ्रामक विज्ञापन करने वाले सेलेब्रेटीज पर भी कानून का शिकंजा कसा गया है।

 

हम अपने दैनिक जीवन में कई तरह की वस्तुओं का उपभोग करते हैं और हर व्यक्ति उपभोक्ता है। उपभोक्ता के तौर पर हमारे कुछ अधिकार हैं जो संसद की ओर से सुनिश्चित किये गये हैं। अब जबकि संसद ने उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के मकसद से केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना तथा खराब सामान एवं सेवाओं की खामियों के संदर्भ में शिकायतों के निवारण की व्यवस्था करने के प्रावधान वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी है तो आइए जानते हैं आपके उन नये अधिकारों के बारे में जो आपको एक उपभोक्ता के तौर पर दिये गये हैं।

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1. अभी किसी उपभोक्ता को अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए जिला उपभोक्ता फोरम और राज्य उपभोक्ता फोरम में जाना पड़ता था लेकिन अब उपभोक्ताओं को यह अधिकार मिल गया है कि वह कहीं पर भी शिकायत दर्ज करा सकेंगे। फिलहाल यह नियम था कि उपभोक्ता ने जहां से उत्पाद खरीदा है या जहाँ उस उत्पाद को बनाने वाली कंपनी का रजिस्टर्ड ऑफिस है वहां पर ही शिकायत दर्ज कराई जा सकती थी। उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इस बात पर भी गौर कर रहा है कि उपभोक्ता अपनी शिकायतें ऑनलाइन भी दर्ज करा सकें इसके लिए नियम जल्द से जल्द बनाए जाएं और डिजिटली शिकायत दर्ज कराने की सुविधा के लिए फीस भी निर्धारित कर दी जाये। विधेयक में उपभोक्ताओं के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करने तथा खराब सामग्री और सेवा के संबंध में शिकायतों के निवारण के लिए एक व्यवस्था कायम करने का प्रयास किया गया है। नयी व्यवस्था में केन्द्र और राज्य सरकारों को उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण में न्यायिक और गैर न्यायिक सदस्य नियुक्त करने का अधिकार होगा। उपभोक्ताओं को सबसे बड़ा अधिकार यह मिला है कि कोई भी व्यक्ति यदि शिकायत करता है तो 21 दिन के भीतर उसकी शिकायत स्वत: दर्ज हो जायेगी । 

 

2. उपभोक्ता किसी उत्पाद से खुद को किसी भी प्रकार का नुकसान होने या उत्पाद में खराबी निकलने पर विनिर्माता या विक्रेता के खिलाफ शिकायत करा सकता है। उत्पाद के खराब निकलने या विनिर्माण विनिर्देशों में किसी भी प्रकार का अंतर पाये जाने पर भी विनिर्माता ही पूर्ण रूप से जिम्मेदार होगा। 

 

3. नये कानून के मुताबिक उपभोक्ताओं की निजी जानकारी को किसी अन्य से साझा करना अनुचित व्यापार व्यवहार है। इस नियम की खास बात यह है कि इसके तहत ई-कॉमर्स कंपनियां भी आती हैं।

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4. उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत भ्रामक विज्ञापन करने वालों पर भी नकेल कसी गयी है। उत्पाद से संबंधित कोई भी गलत जानकारी उस विज्ञापन को करने वाले सेलेब्रेटी को मुश्किल में डाल सकती है। इस नियम के तहत विनिर्माता को भ्रामक प्रचार के लिए 10 लाख रुपए का जुर्माना अथवा दो साल की जेल या फिर दोनों हो सकती है। भ्रामक विज्ञापन का प्रचार करने वाले पर पहली बार 10 लाख रुपए का जुर्माना और एक साल का प्रतिबंध लग सकता है। बार-बार ऐसा करने पर 50 लाख रुपए का जुर्माना और तीन साल तक का प्रतिबंध भी झेलना पड़ सकता है। यदि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण को ऐसा महसूस होता है कि किसी भ्रामक विज्ञापन को प्रकाशित करने में प्रकाशक भी भागीदार है या उसकी गलती पायी जाती है तो उस पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इसके तहत उपभोक्ता को एक वर्ग के रूप में भी रखा गया है। उत्पाद के संबंध में भ्रामक विज्ञापनों संबंधी शिकायत लिखित में या डिजिटली जिला कलेक्टर या क्षेत्रीय आयुक्त कार्यालय अथवा केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण को कार्रवाई के लिए भेजी जा सकती है।

 

5. प्रत्येक उपभोक्ता की शिकायत को जिला उपभोक्ता आयोग को सुनना ही होगा और यदि शिकायतकर्ता आवेदन कर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये पेश होना चाहता है तो उसे इसकी अनुमति दी जा सकती है।

 

6. उपभोक्ता आयोग बिना शिकायतकर्ता की बात सुने उसकी शिकायत को खारिज नहीं कर सकता। उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह यह जान सके कि उसकी शिकायत क्यों खारिज की गयी। कोई शिकायत आने पर आयोग को 21 दिन के भीतर यह फैसला लेना होगा कि उसकी शिकायत सुनी जाये या खारिज कर दी जाये। यदि आयोग को लगता है कि मध्यस्थता से कोई मुद्दा सुलझाया जा सकता है तो वह दोनों पक्षों से बातचीत कर मध्यस्थता की पहल करेगा।

 

बहरहाल, नये उपभोक्ता संरक्षण कानून में केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना का प्रस्ताव है जिसका मुख्यालय राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में होगा। इसमें उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिये आयोग गठित करने के साथ जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर फोरम गठित करने का प्रस्ताव किया गया है। सरकार का कहना है कि इस कानून का मकसद उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार व्यवहारों से होने वाले नुकसान से बचाना और व्यवस्था को सरल बनाना है।

 

-नीरज कुमार दुबे

 

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