Apara Ekadashi 2025: अपरा एकादशी व्रत से प्राप्त होता है अपार धन

By प्रज्ञा पांडेय | May 22, 2025

इस महीने 'अपरा एकादशी' का व्रत किया जाता है, जिसके प्रभाव से व्यक्ति को कार्यों में सफलता और अत्यधिक धन की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों में अपरा एकादशी का अर्थ अपार पुण्य से जोड़ा गया है और इसे जलक्रीड़ा और अचला एकादशी भी कहा जाता है।


जानें अपरा एकादशी के बारे में

धार्मिक ग्रंथों में अपरा एकादशी का अर्थ को अपार पुण्य से जोड़ा जाता है और इसे जलक्रीड़ा और अचला एकादशी भी कहते हैं। अपरा एकादशी पर बुध देव मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में दान, पूजा-पाठ, जागरण, हवन आदि शुभ कार्य करने से सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। इस दौरान आप विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं, इसके प्रभाव से भगवान विष्णु की कृपा और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना और व्रत करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को पुण्य फल की प्राप्ति होती है।


अपरा एकादशी का शुभ मुहूर्त 

हिंदू पंचांग के अनुसार, अपरा एकादशी हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल 23 मई 2025 को अपरा एकादशी का उपवास रखा जा रहा है। पंचांग के मुताबिक इस तिथि पर आयुष्मान व प्रीति योग बन रहा है जिस पर उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का संयोग बना हुआ है। ज्येष्ठ माह की शुरुआत हो चुकी है, जो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के लिए अति शुभ है। पंडितों के अनुसार "अपरा एकादशी" व्रत से व्यक्ति को कार्यों में सफलता और अपार धन की प्राप्ति होती हैं। अपरा एकादशी व्रत 23 मई के दिन रखा जाएगा, जिसके चलते इस व्रत का पारण अगले दिन 24 मई, शनिवार के दिन किया जाएगा। अपरा एकादशी व्रत पारण करने का समय 24 मई को सुबह 6:01 मिनट से सुबह 8:39 मिनट के बीच कर सकते हैं।

इसे भी पढ़ें: Apara Ekadashi 2025: 4 शुभ योग में 23 मई को रखा जाएगा अपरा एकादशी व्रत

अपरा एकादशी का धार्मिक महत्व

पंडितों के अनुसार अपरा एकादशी व्रत को शास्त्रों में अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति के जीवन में आई कठिनाइयां दूर होती हैं और उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी माना जाता है। 


इस व्रत का महत्व गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में विस्तार से बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से वाजपेय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। साथ ही पूर्वजों को तर्पण देने और ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितृदोष भी शांत होता है।


अपरा एकादशी के दिन ऐसे करें पूजा करें

अपरा एकादशी का हिन्दू धर्म में खास महत्व होता है। पंडितों के अनुसार इस विशेष दिन प्रातःकाल स्नान कर संकल्प लें और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीप जलाएं। सूर्य देव को जल अर्पित कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए. पूजा स्थल को स्वच्छ करें और लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का गंगाजल, दूध और जल से अभिषेक करें. उन्हें फूल, तुलसी पत्र और मिठाई का भोग अर्पित करें। इसके बाद एकादशी व्रत कथा का पाठ करें और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें और अंत में आरती करके प्रसाद का वितरण करें। पीले वस्त्र पहनकर श्रीहरि को पीले फूल, तुलसी दल, पंचामृत, फल व भोग अर्पित करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। दिनभर फलाहार करके व्रत रखें और रात्रि जागरण करें। अगले दिन द्वादशी पर ब्राह्मण भोजन और दान के बाद व्रत पारण करें। 


अपरा एकादशी पर बन रहा है शुभ योग

पंडितों के अनुसार इस वर्ष अपरा एकादशी पर आयुष्मान और प्रीति योग का निर्माण हो रहा है, जो किसी भी शुभ कार्य की सफलता के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसके साथ ही उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के साथ यह व्रत और भी फलदायक हो गया है। इस दिन बुध ग्रह वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे, जिससे व्यापार, शिक्षा और आर्थिक मामलों में सकारात्मक परिणाम मिलने की संभावना है।


अपरा एकादशी पर न करें ये गलतियां 

हमारे शास्त्रों में अपरा एकादशी व्रत के दिन कुछ गलतियों को भूलकर भी न करने की सलाह दी जाती है, उनका कहना है कि इससे भगवान नाराज हो जाते हैं। ऐसे भक्त जो व्रत रख रहे हैं उन्हें तो जरूर इन बातों का पालन करना चाहिए।


1. तामसिक आहार और बुरे विचार से दूर रहें।

2. बिना भगवान कृष्ण की उपासना के दिन की शुरुआत न करें।

3. मन को ज्यादा से ज्यादा ईश्वर भक्ति में लगाए रखें।

4. एकादशी के दिन चावल और जड़ों में उगने वाली सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए।

5. एकादशी के दिन बाल और नाखून काटने से बचना चाहिए।

6. इस दिन सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए।


अपरा एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा 

शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अपरा एकादशी व्रत का महत्व सबसे पहले धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। इसके अनुसार अपरा एकादशी व्रत को करने से प्रेत योनि, ब्रह्म हत्या आदि पाप से मुक्ति मिलती है। अपरा एकादशी कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा था। वहीं उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी और अन्यायी था, जो अपने बड़े भाई महीध्वज से घृणा और द्वेष करता था। राज्य पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए एक रात उसने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसकी देह को जंगल में पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु के कारण राजा महीध्वज प्रेत योनि में पहुंच गया और प्रेतात्मा बनकर उस पीपल के पेड़ पर रहने लगा। प्रेत योनि में रहते हुए राजा महीध्वज आसपास बड़ा ही उत्पात मचाता था। एक बार धौम्य ऋषि ने वहां प्रेत को देख लिया और माया से उसके बारे में सबकुछ पता कर लिया। ॠषि ने उस प्रेत को पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। महीध्वज की मुक्ति के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी व्रत रखा और श्रीहरि विष्णु से राजा के लिए कामना की। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। राजा बहुत खुश हुआ और वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ स्वर्ग लोग में चला गया।


- प्रज्ञा पाण्डेय

प्रमुख खबरें

सोशल मीडिया बैन से वीजा जांच तक: बदलती वैश्विक नीतियां और बढ़ता भू-राजनीतिक तनाव

MGNREGA की जगह नया ग्रामीण रोजगार कानून, VB-G RAM G विधेयक संसद में पेश होने की तैयारी

ICICI Prudential AMC IPO को ज़बरदस्त रिस्पॉन्स, दूसरे ही दिन फुल सब्सक्राइब हुआ

थोक महंगाई में नरमी के संकेत, नवंबर में थोक मूल्य सूचकांक - 0.32 प्रतिशत पर पहुंची