कौन हैं मुख्यमंत्री की रेस में शामिल सतपाल महाराज ? कहीं कांग्रेस पृष्ठभूमि पड़ न जाए भारी

By अनुराग गुप्ता | Jul 03, 2021

देहरादून। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद की रेस में सतपाल महाराज का नाम एक बार फिर से छाया हुआ है। इससे पहले जब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस्तीफा दिया था तब भी उनके नाम की चर्चा थी। तीरथ सिंह रावत ने 111 दिन तक प्रदेश की कमान संभालने के बाद संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना इस्तीफा सौंप दिया। 

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कौन हैं सतपाल महाराज ?

कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले सतपाल महाराज का नाम मुख्यमंत्री की रेस में छाया हुआ है। उन्होंने साल 2016 में हरीश रावत सरकार में बगावत का बिगुल फूंककर भाजपा के पाले में चले गए थे। हालांकि कांग्रेसी पृष्ठभूमि के होने की वजह से सतपाल महाराज को झटका लग सकता है लेकिन उम्मीद बरकरार है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।

हाल ही में भाजपा ने असम में कांग्रेस से आए हिमंत विस्बा सरमा को मुख्यमंत्री बनाया है। यह देखकर सतपाल महाराज का हौसला बुलंद हो गया है। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की पहचान राजनीतिक व्यक्ति के साथ-साथ आध्यात्मिक गुरु के तौर पर भी है और संत समाज में भी उनकी अच्छी पकड़ है। 

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कांग्रेस से हुई राजनीति की शुरुआत

सतपाल महाराज ने 90 के दशक में कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की। उत्तराखंड बनने से पहले सतपाल महाराज कांग्रेस सरकार में राज्य मंत्री के तौर पर काम कर चुके हैं। सतपाल महाराज ने राजनीति के साथ-साथ अपने पिता हंस महाराज की विरासत को भी आगे बढ़ाया है।

प्रदेश की तिवारी सरकार के 20 सूत्रीय कार्यक्रम की अध्यक्षता भी सतपाल महाराज ने की थी। इसके बाद साल 2009 में गढ़वाल सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीत भी हासिल की। लेकिन मोदी लहर को देखते हुए बाद में उन्होंने कांग्रेस को झटका दे दिया। हमेशा मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले सतपाल महाराज ने 2017 में भाजपा के टिकट पर चौबट्टाखाल से चुनाव लड़ा और फिर त्रिवेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। फिलहाल सतपाल महाराज पर्यटन मंत्री हैं। 

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पत्नी अमृता भी मंत्री रहे चुकी हैं

सतपाल महाराज की पत्नी अमृता अंतिम बार हरीश रावत सरकार में मंत्री रही थीं। हालांकि पति सतपाल महाराज के बागी हो जाने के बाद हरीश रावत ने अमृता को मंत्री पद से हटा दिया था। अमृता के राजनीतिक जीवन की बात करें तो वो साल 2002 में पहली बार विधानसभा पहुंचीं और तिवारी सरकार में मंत्री बनीं। इसके बाद 2007 और 2012 में भी चुनाव जीता था। हालांकि पति के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद उन्होंने 2017 का चुनाव नहीं लड़ा।

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