तीरथ सिंह रावत के बाद बंगाल में ममता बनर्जी की कुर्सी पर भी मंडरा रहा 'संवैधानिक संकट'

Mamata Banerjee
अंकित सिंह । Jul 3 2021 11:05AM

जनप्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए के मुताबिक निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों और राज्‍यों के विधायी सदनों में खाली सीटों को रिक्ति होने की तिथि से छह माह के भीतर उपचुनावों के द्वारा भरने के लिए अधिकृत है, बशर्ते किसी रिक्ति से जुड़े किसी सदस्‍य का शेष कार्यकाल एक वर्ष अथवा उससे अधिक हो।

भले ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे को अलग-अलग तरह से देखा जा रहा हो। लेकिन यह बात भी सच है कि कहीं ना कहीं उनके इस्तीफे के पीछे संवैधानिक संकट भी था। तीरथ सिंह रावत किसी सदन के सदस्य नहीं थे और ऐसे में वर्तमान हालात को देखते हुए उपचुनाव होना भी मुश्किल लग रहा था। पौड़ी से लोकसभा सदस्य रावत ने इस वर्ष 10 मार्च को मुख्यमंत्री का पद संभाला था और संवैधानिक बाध्यता के तहत उन्हें छह माह के भीतर यानी 10 सितंबर से पहले विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होना था। जनप्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए के मुताबिक निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों और राज्‍यों के विधायी सदनों में खाली सीटों को रिक्ति होने की तिथि से छह माह के भीतर उपचुनावों के द्वारा भरने के लिए अधिकृत है, बशर्ते किसी रिक्ति से जुड़े किसी सदस्‍य का शेष कार्यकाल एक वर्ष अथवा उससे अधिक हो। 

इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड की रावत कथा: एक रावत गए, दूसरे रावत लाए गए, अब तीसरे रावत की बारी !

यही कानूनी बाध्यता मुख्यमंत्री के विधानसभा पहुंचने में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में सामने आई। क्योंकि विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का समय बचा है। वैसे भी कोविड महामारी के कारण भी फिलहाल चुनाव की परिस्थितियां नहीं बन पायीं। कुछ ऐसी ही परिस्थिति का सामना पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को करना पड़ सकता है। ममता बनर्जी भी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं। ममता बनर्जी ने 4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थीं। उन्हें अपने शपथ लेने के 6 महीने के भीतर सदन का सदस्य बनना जरूरी है और यह संवैधानिक बाध्यता भी है। ममता बनर्जी ने उपचुनाव लड़ने के लिए अपनी पुरानी भवानीपुर सीट खाली भी करा ली है। लेकिन वह विधानसभा का सदस्य तभी बन पाएगीं जब अवधि के अंदर चुनाव कराए जाएंगे। कोरोना महामारी की वजह से फिलहाल चुनावी प्रक्रिया स्थगित की गई है। चुनाव कब होंगे इस को लेकर फैसला चुनाव आयोग को करना है। अगर चुनाव आयोग 4 नवंबर तक चुनावी प्रक्रियाओं को खत्म करने का निर्णय नहीं लेता है तो ममता की कुर्सी पर भी खतरा हो सकता है। 

इसे भी पढ़ें: कांग्रेस के पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला बोले- उत्तराखंड में खिलौनों की तरह मुख्यमंत्री बदला जा रहा है

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जब कराए जा रहे थे तब राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया था कि आयोग लोगों की जान से खेल रहा है। अब जब तक कोविड-19 संकट कम नहीं हो जाता तब तक आयोग इस तरह का रिस्क लेता दिखाई नहीं दे रहा। ममता ने हालात को समझते हुए विधान परिषद वाला रास्ता निकालने की कोशिश की थी। उन्होंने विधानसभा के जरिए प्रस्ताव भी पास कराया लेकिन यह लोकसभा की मंजूरी के बगैर संभव नहीं है। केंद्र सरकार के साथ ममता बनर्जी के रिश्ते जगजाहिर है। ऐसे में विधान परिषद वाला रास्ता फिलहाल उनके लिए मुश्किल ही नजर आ रहा है। यह अलग बात है कि ममता ने रिश्तो में मिठास घोलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा और केंद्र के बड़े मंत्रियों को बंगाल के मशहूर आम जरूर भेजे थे।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़