Chief Architect of Indian Security Policy: पद्म भूषण लेने से किया मना, CDS पद के रचियता, कौन थे एस जयशंकर के पिता, जिन्हें इंदिरा-राजीव सरकार ने किया इग्नोर

By अभिनय आकाश | Feb 22, 2023

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एएनआई के साथ एक साक्षात्कार में विदेश सेवा से लेकर राजनीति तक की अपनी यात्रा के बारे में बात की और कहा कि वह हमेशा विदेश सचिव के पद पर पहुंचने की आकांक्षा रखते थे। मंत्री ने कांग्रेस के आरोपों, पीएम मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के समय और चीन के साथ तनाव सहित कई अन्य मुद्दों पर भी बात की। इस दौरान उन्होंने अपने पिता के साथ हुई नाइंसाफी पर भी दो टूक बात की। उन्होंने कहा कि उनके पिता डॉ. के सुब्रमण्यम कैबिनेट सेक्रेटरी थे लेकिन 1980 में इंदिरा गांधी के दोबारा सत्ता में लौटने पर उन्हें पद से हटा दिया गया। जयशंकर ने बताया कि उनके पिता पहले ऐसे सचिव थे, जिन पर इस तरह की कार्रवाई हुई। राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान भी उन्हें बाहर ही रखा गया था।

इसे भी पढ़ें: चीन को लेकर एस जयशंकर पर कांग्रेस का पलटवार, बताया अब तक का सबसे असफल विदेश मंत्री

एस जयशंकर ने 40 साल पुरानी घटना का किया जिक्र

जयशंकर ने कहा, “मैं सबसे अच्छा विदेश सेवा अधिकारी बनना चाहता था। हमारे घर में भी दबाव था, मैं इसे प्रेशर नहीं कहूंगा, लेकिन हम सभी इस बात से वाकिफ थे कि मेरे पिता जो कि एक ब्यूरोक्रेट थे, सेक्रेटरी बन गए थे, लेकिन उन्हें सेक्रेटरीशिप से हटा दिया गया। वह उस समय 1979 में जनता सरकार में संभवत: सबसे कम उम्र के सचिव बने थे। जयशंकर ने कहा कि 1980 में वे रक्षा उत्पादन सचिव थे। 1980 में जब इंदिरा गांधी दोबारा चुनी गईं, तो वे पहले सचिव थे जिन्हें उन्होंने हटाया था।  1980 में  वे रक्षा उत्पादन सचिव थे। वह सबसे ज्ञानी व्यक्ति थे। विदेश मंत्री ने कहा कि उनके पिता बहुत ईमानदार व्यक्ति थे, और हो सकता है कि समस्या इसी वजह से हुई हो, मुझे नहीं पता। लेकिन तथ्य यह था कि एक व्यक्ति के रूप में उन्होंने नौकरशाही में अपना करियर देखा और उसके बाद वे फिर कभी सचिव नहीं बने। राजीव गांधी काल के दौरान उनके कनिष्ठ व्यक्ति के लिए उन्हें हटा दिया गया था जो कैबिनेट सचिव बन गए थे। जयशंकर ने कहा कि हमने शायद ही कभी इसके बारे में बात की हो। इसलिए जब मेरे बड़े भाई सचिव बने तो उन्हें बहुत, बहुत गर्व हुआ। जयशंकर के भाई, IAS अधिकारी एस विजय कुमार, भारत के पूर्व ग्रामीण विकास सचिव हैं। उनके एक और भाई हैं, इतिहासकार संजय सुब्रह्मण्यम।

कौन थे के सुब्रह्मण्यम?

जनवरी 1929 में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में जन्मे सुब्रह्मण्यम ने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश किया। सुब्रह्मण्यन सुरक्षा थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (IDSA) के संस्थापक निदेशक थे जो वर्तमान में मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस है। 1999 में सुब्रह्मण्यम ने पद्म भूषण के सम्मान को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि नौकरशाहों और पत्रकारों को सरकारी पुरस्कार स्वीकार नहीं करना चाहिए।

इसे भी पढ़ें: S Jaishankar ने 40 साल पुरानी घटना का किया जिक्र, इंदिरा गांधी दोबारा PM बनीं तो सबसे पहले मेरे पिता को पद से हटाया

हामिद अंसारी ने बताया था सुरक्षा नीति सिद्धांत के प्रमुख वास्तुकार 

सिविल सेवक और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ के रूप में अपने लंबे करियर में सुब्रह्मण्यम को अन्य बातों के अलावा, कारगिल युद्ध समीक्षा समिति की अध्यक्षता करने और भारत की परमाणु निरोध नीति का समर्थन करने के लिए जाना जाता है। 2011 में जब उनका निधन हुआ, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि सुब्रह्मण्यम ने भारत की रक्षा, सुरक्षा और विदेश नीतियों के विकास में महत्वपूर्ण और स्थायी योगदान दिया है। तत्कालीन पीएम ने कहा था, "सरकार के बाहर उनका काम शायद और भी प्रभावशाली है और उन्होंने देश में रक्षा अध्ययन के क्षेत्र को आगे बढ़ाया और विकसित किया। तत्कालीन उपराष्ट्रपति, हामिद अंसारी ने उन्हें "भारत में सामरिक मामलों के समुदाय के प्रमुख" के रूप में वर्णित किया और कहा कि वह "हमारी सुरक्षा नीति सिद्धांत के प्रमुख वास्तुकारों में से एक हैं। वह नीति निर्माताओं और नागरिकों को रणनीतिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाने और उनसे निपटने के लिए नीतिगत विकल्पों के निर्माण में मदद करने में सहायक थे।

सीडीएस पद के रचियता

कारगिल युद्ध के दौरान वायुसेना और भारतीय सेना के बीच तालमेल का अभाव साफ दिखाई दिया था। वायुसेना के इस्तेमाल पर तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष और सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक की राय अलग-अलग थी। करगिल में आर्मी ने इसे आपरेशन विजय कहा और एयरफोर्स ने आपरेशन सफेद सागर कहा। जिसके बाद इस पर विचार करने के लिए के सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में कारगिल रिव्यू कमेटी बनी। संसद में पेश हुई कमेटी की रिपोर्ट में साफ लिखा था कि देश में सेनाओं के तालमेल के लिए तीनों सेना प्रमुखों से ऊपर भी कोई होना चाहिए। समिति के चेयरमैन के. सुब्रमण्यम विदेशमंत्री एस. जयशंकर के पिता थे।

भारत का परमाणु सिद्धांत

1998 में पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के तहत सुब्रह्मण्यम को पहले राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सलाहकार बोर्ड (NSCAB) का संयोजक नियुक्त किया गया, जिसने देश के ड्राफ्ट परमाणु सिद्धांत का मसौदा तैयार किया। आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय दोनों विरोधों के सामने, सुब्रह्मण्यम की स्थिति बनी रही कि भारत को परमाणु हथियारों की आवश्यकता है, लेकिन वह पहले प्रयोग का सहारा नहीं लेगा। जैसा कि उन्होंने 2009 में द इंडियन एक्सप्रेस के लिए एक लेख में लिखा था, "किसी भी देश ने भारत के रूप में परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए जोरदार अभियान नहीं चलाया, जो अंततः बेहद नाजुक सुरक्षा स्थिति के कारण खुद को परमाणु हथियार राज्य घोषित करने के लिए मजबूर हो गया था जिसमें उसने खुद को पाया था... वहां लगभग सार्वभौम रूप से साझा धारणा है कि प्रतिरोध ने काम किया है और भारतीय आधिकारिक परमाणु सिद्धांत इसी आधार पर आधारित है।-अभिनय आकाश


प्रमुख खबरें

हैमस्ट्रिंग चोट के कारण श्रीलंका लौटेंगे CSK के तेज गेंदबाज पाथिराना

भारत, घाना के बीच दोनों देशों की भुगतान प्रणालियों को आपस में जोड़ने पर सहमति बनी

Lok Sabha Elections 2024 । मेरा भारत, मेरा परिवार... Dhaurahara में PM Modi ने जनता से कहा- मुझे आपके क्षेत्र का विकास करना है

प्रियंका चोपड़ा ने करीना कपूर के लिए प्यारा संदेश पोस्ट किया, यूनिसेफ परिवार में बेबो का किया स्वागत