जगन सरकार में एक-दो नहीं बल्कि उपमुख्यमंत्री होंगे पूरे 5, जानें राजनीति में ''उप'' के प्रयोग का इतिहास

By अभिनय आकाश | Jun 08, 2019

अमरावती। जनता की नब्ज को भांपने के लिए सड़कों को नापते हुए सत्ता के शिखर पर कदमताल करने वाले जगन मोहन रेड्डी की राजनीति का तरीका हो या समीकरण को साधने का प्रयोग दोनों ही अनूठा रहता है। आम तौर पर नेतागण चुनाव जीतने के बाद मंत्रीपरिषद का गठन करते हैं लेकिन जगन तो जगन हैं और उनकी राजनीति ही जब दुःख, अपमान, क्रोध, संघर्ष, बदला और फिर हैप्पी इंडिंग जैसे ट्विस्ट और टर्न से भरी है तो मंत्रीमंडल इससे कैसे अछूता रह जाता। इसलिए उन्होंने उपमुख्यमंत्री मंडल का ही गठन कर दिया। विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व जीत हासिल करने वाले वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के नए मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की सरकार में पांच उपमुख्यमंत्री होंगे। इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और प्रभावशाली कापू समुदाय से एक-एक विधायक को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा।

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देश के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि किसी सरकार में दो से ज्यादा उपमुख्यमंत्री होंगे। बता दें कि वाईएसआर कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश विधानसभा की 175 सीटों में से 151 सीट जीतकर जनता का विश्वास हासिल करने के साथ ही लोकसभा की 25 में से 22 सीटों को भी अपने नाम किया। 14 महीने की अपनी चुनावी यात्रा के दौरान 3648 किमी की सड़कें नापने वाले 46 साल के वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी की गिनती आंध्र प्रदेश के बड़े नेताओं में होती है। जगन मोहन की कैबिनेट में 25 सदस्य होंगे और यहां भी एक नया प्रयोग जगन मोहन के द्वारा किया गया है। मंत्रीपरिषद की शपथ लेने वाले सदस्यों का कार्यकाल ढाई वर्ष का होगा और इसके बाद अन्य विधानसभा सदस्यों को मौका दिया जाएगा। जगन मोहन के इस फैसले को सामाजिक समीकरणसाधने का प्रयास माना जा रहा है।

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जगन को इस चुनाव में उन समुदायों का भी समर्थन मिला जो कभी टीडीपी और कांग्रेस का वोटबैंक माने जाते थे। कापू समुदाय की भागीदारी पर गौर करें तो इसकी तादाद हरियाणा में जाट और गुजरात में पाटीदारों जैसी मानी जाती है। गौरतलब है कि उपमुख्यमंत्री पद को संवैधानिक नहीं माना जाता है। संविधान में उपमुख्यमंत्री को लेकर ऐसा कोई जिक्र नहीं है और न ही उसे कोई अलग अधिकार दिए गए हैं। उपमुख्यमंत्री सीधे तौर पर कैबिनेट के अन्य मंत्रियों की तरह ही होते हैं और उनके भी निश्चित विभाग होते हैं। इतिहास पर नजर डालें तो 1989 में देवीलाल के उपप्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद देश में उपमुख्यमंत्री का सिलसिला शुरू हुआ। लेकिन उस वक्त भी इस फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई थी।

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तत्कालीन अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट के समक्ष यह स्पष्ट किया था भले ही देवीलाल ने उपप्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है लेकिन वह मंत्री के रूप में ही कार्य करेंगे। कोर्ट द्वारा इस दलील को माने जाने के बाद यह व्यवस्था बन गई। यही संदर्भ उपमुख्यमंत्री के गठन पर भी लागू होत है। वैसे पहली बार कर्नाटक में 1992 में पूर्व विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा उपमुख्यमंत्री बनाए गए थे। यही नहीं पहली बार दो मुख्यमंत्री भी कर्नाटक में ही 2012 में बनाए गए और फिर तो अन्य तमाम राज्यों में भी यह व्यवस्था लागू होने लगी। 

किस समुदाय से कितनी भागीदारी

पिछड़ा वर्ग- 41 फीसदी

एससी/एसटी- 17 फीसदी

कापू समुदाय- 16 फीसदी

अल्पसंख्यक- 11 फीसदी

अन्य- 15 फीसदी

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किन राज्यों में उपमुख्यमंत्री हैं

अरूणाचल प्रदेश- चोवना मेन (भाजपा)

बिहार- सुशील कुमार मोदी (भाजपा)

गुजरात- नितिन पटेल (भाजपा) 

राजस्थान- सचिन पायलट (कांग्रेस)

तेलांगाना- मोहम्मद महबूब अली (टीआरएस) 

त्रिपुरा- जिष्णु देव वर्मा

कर्नाटक- जी परमेश्‍वर (कांग्रेस)

गोवा- सुदीन धवलीकर (एमजीपी), विजय सरदेसाई (जीएफपी) 

उत्तर प्रदेश- केशव प्रसाद मौर्या, दिनेश शर्मा (भाजपा)

तमिलनाडु- ओ पन्नीरसेल्वम (एआईएडीएमके)

मणिपुर- वाई जॉय कुमार (एनपीपी)

मेघालय- प्रेस्टन तिरसंग (एनपीपी)

मिजोरम- स्वानसुइया (एमएनएफ)

नगालैंड- वाई पैटन (भाजपा)

इसके अलावा केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में मनीष सिसोदिया (आम आदमी पार्टी)

 

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