दूसरे देशों से चुराए गए सामानों से भरा पड़ा है ब्रिटिश म्यूज़ियम, कोहिनूर से लेकर रोसेटा पत्थर तक फेहरिस्त बहुत लंबी है

By अभिनय आकाश | Dec 13, 2021

साल 1975 में एक फिल्म आई थी नाम था चोरी मेरा काम, जिसका एक गाना उस दौर में बड़ा मशहूर हुआ करता था मेरी नजर से ना बचा है कोई तू कैसे बच पाएगा वो आज के विश्लेषण पर बहुत ही मुफीद बैठने वाली है। अगर मान लीजिए कोई चोर हो और उसने किसी चीज की चोरी की तो उसे क्या करेगा वो? जाहिर सी बात है आप कहेंगे उसे किसी महफूज जगह पर छुपा देगा। लेकिन इससे इतर एक देश है जो चोरी की हुई चीजों की प्रदर्शनी करता है। जिसके बारे में बात करते हुए ब्रिटेन के चर्चित कॉमेडियन रसेल हावर्ड ने एक बार कहा था कि "The british museum is great for seeing how excellent we were at stealing things" यानी ब्रिटिश संग्रहालय इस बात का सबसे शानदार उदाहरण है  कि हम चीजें चुराने में कितने माहिर थे। ये बाद तो ब्रटिश कॉमेडियन ने कटाक्ष के तौर पर कही थी लेकिन इसमें सत्य कूट-कूट कर भरा है। भारत, नाइजरिया, हांगकांग से जो भी चुरा लिया था या गलत तरीके से लिया था उसकी प्रदर्शनी कर रहा है। हम बात कर रहे हैं ब्रिटिश म्यूजियम की जो ऐसी कलाकृतियां से भरा पड़ा है जिसे दूसरे देशों से या तो चुरा लिया गया था या गलत तरीके से लिया गया था। कोहिनूर से लेकर रोसेटा पत्थर तक, पश्चिमी संग्रहालय औपनिवेशिक लूट से भरे हुए हैं। चाहे बात रोसोटा के ऐतिहासिक पत्थरों की करें या एल्गिन के मार्बल की, तंजावुर शिव की एक कांस्य प्रतिमा की करें या फिर दुनिया के सबसे बेशकीमती हीरे कोहिनूर की। ब्रिटेन की चोरी के किस्से दुनिया में किसी से छुपे नहीं हैं। अगर आपको उसके हाथ की सफाई के सबूत देखना हो तो बस टिकट कटा कर ब्रिटिश म्यूजियम का एक चक्कर काट आएं।

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रोसोटा पत्थर- आपने कबी रोसोटा स्टोन के बारे में सुना है? प्राचीन मिस्र की लिपियों को समझने का पहला सुराग। यह पत्थर उतना ही पुराना है जितनी आधुनिक सभ्यता। 196 ईसा पूर्व में इसे मिस्र के फ़ारोह ग्रैनोडायराइट ऑफ टॉलेमी द्वारा बनाया गया था। इसके विश्लेषण से ही मिस्र की चित्रलिपि को दुबारा पढना सम्भव हुआ है। सबसे पहले नेपोलियन इसे मिस्र से लेकर आया, लेकिन बाद में फ्रांसीसी सेना की हार के बाद अंग्रेजों ने इसे हासिल कर लिया। अब ये लंदन में ब्रिटिश संग्रहालय में रखा हुआ है।

एल्गिन पत्थर पांचवीं शताब्दी से ग्रीक संस्कृति का एक सबसे बड़ा उदाहरण।  

पार्थेनन (यूनानी) अथीनियान एक्रोपोलिस पर एक मंदिर है, युवती की देवी एथेना को समर्पित ग्रीस, जिसे एथेंस के लोग अपने संरक्षक देवता माना जाता है। 

बेनिन ब्रोंज एक हजार से अधिक धातु पट्टिकाओं का एक समूह है और मूर्तियां जिन्होंने बेनिन के साम्राज्य के शाही महल को सजाया था। 

तंजावुर शिव: भगवान शिव की एक कांस्य प्रतिमा महान चोल शासक राजराज चोल प्रथम द्वारा बनवाया गया था। ये द्रविड़ वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है।

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ये सभी कला का अद्भुत नमूना हैं। इन सभी में एक कॉमन बात है कि ये सभी ब्रिटिश संग्रहालय में मौजूद हैं। इसे हम ब्रिटिश के लूट का गोदाम कहे तो गलत नहीं होगा। इन कलाकृतियों को या तो चुरा लिया गया या बलपूर्वक जीत लिया गया या फिर गलत तरीके से हासिल किया गया था। आज ये औपनिवेशिक काल के क्रूर अनुस्मारक के रूप में याद किए जा सकते हैं। लेकिन ब्रिटिश संग्रहालय इन्हें गर्व के रूप में प्रदर्शित करता है। कानून में, एक चोर को अपने गलत तरीके से अर्जित लाभ को रखने की अनुमति नहीं है, चाहे वे कितने समय पहले लिए गए हों, या उसने उनमें कितना सुधार किया हो। लेकिन यूरोपीय देश द्वारा औपनिवेशिक काल में की गई इन लूट को आजाद हुए मुल्कों को लौटाना तो दूर की बात है उस पर चर्चा भी नहीं करना चाहते। अमेरिका के पुरातत्व संस्थान के अनुसार 85 से 90 प्रतिशत वर्गीकृत कलाकृतियों का कोई दस्तावेजी नहीं है। मतलब उनके पास स्वामित्व का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इनमें से ज्यादातर अफ्रीका और एशियाई देशों से संबंधित हैं। 

ब्रिटिश म्यूजियम और नाइजीरिया की कहानी 

बेनिन सिटी एक समय बेनिन एडो किंगडम का हिस्सा हुआ करता था। 18 फरवरी को 1200 सैनिकों की फौज के साथ ब्रिटेन ने किंगडम ऑफ बेनिन पर हमला किया। ब्रिटिश सैनिकों ने मारकाट के साथ ही लूट का तांडव भी रचा। एक सैनिक ने इस घटना का जिक्र अपनी डायरी में कुछ इस प्रकार किया। राजमहल और आसपास में जो कुछ भी काम का मिला उसे हम जमा कर अपने साथ ले गए। इसमें सजावटी हाथी दांत, धातु के बर्तन, आभूषणों के साथ ही हजारों कलाकृतियां भी शामिल थी। इनमें से कुछ बाद में लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम पहुंची। कुछ की नीलामी हुई। ये कलाकृतियां बेनिन की पहचान थी। इन्हें लूटने का मतलब था उस क्षेत्र से उसका गौरव छीन लेना। साल दर साल बीतता रहा और किंगडम ऑफ बेनिन द्वारा ब्रिटेन से इसे लौटाने को कहा गया। फिर आया 1960 का साल जब अक्टूबर के महीने में नाइजीरिया और किंगडम ऑफ बेनिन आजाद हो गया। 1977 में नाइजीरिया के लागोस में ब्लैक कल्चर और आर्ट पर एक समारोह का आयोजन किया गया। आयोजको की तरफ से ब्रिटिश म्यूजियम से अनुरोध करते हुए कुछ समय के लिए 16वीं शताब्दी का हाथी दांत से बना एक मुखौटा देने को कहा, जिसे किंगडम ऑफ बेनिन के राजा पहना करते थे। लेकिन ब्रिटिश म्यूजियम ने नाजुक होने का हवाला देते हुए इसे देने से मना कर दिया।  

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फ्रांस लौटा रहा है अफ्रीका से लूटी हुई कलाकृतियां

कलाकृतियां पश्चिमी अफ्रीका के देश बेनिन को लौटाई जा रही हैं, जहां कभी दहोमेय साम्राज्य था। लौटाने से पहले इन्हें पेरिस में एक खास प्रदर्शनी में दर्शाया गया है। 1892 में जब फ्रांस की सेना बेनिन पर कब्जा जमा रही थी, जो पूर्व शाही शहर अबोमेय स्थित राजमहल से कई कलाकृतियां चुरा कर फ्रांस पहुंचा दी गई थीं। 2006 में इन कलाकृतियों को पहली बार फ्रांस में एक प्रदर्शनी में सार्वजनिक किया गया।  बेनिन 1960 में स्वतंत्र हुआ था और उसने 2016 में फ्रांस की सरकार को एक चिट्ठी लिखकर इन कलाकृतियों को वापस मांगा था। 2017 में फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने लूटी हुईं कलाकृतियों को वापस लौटाने के लिए एक कानून बनाने में मदद करने का वादा किया था। तब तक फ्रांस में रखी गई सांस्कृतिक वस्तुएं सरकारी संपत्ति थी और उन्हें हस्तांतरित नहीं किया जा सकता था, चाहे वो किसी भी तरह से लाई गई हों। इन्हें लौटाने की अनुमति देने वाला कानून 2020 में पारित किया गया। अनुमान है कि यूरोप में अफ्रीका की वस्तुगत सांस्कृतिक विरासत का 90 प्रतिशत हिस्सा रखा हुआ है। अकेले पेरिस के म्युजि दू क्वे ब्रैन्ली संग्रहालय में अफ्रीका के उप-सहराई इलाके की करीब 70,000 कलाकृतियां रखी हुई हैं। इनमें से आधे से ज्यादा को फ्रांस के औपनिवेशिक काल में हासिल किया गया था। अगस्त 2021 में जर्मनी ने बेनिन सिटी की 400 से अधिक कलाकृतियां वापस लौटाने का ऐलान किया। 

कोहिनूर 

दुनिया में हर चीज की एक कीमत होती है लेकिन एक चीज ऐसी भी है जिसकी आज तक कोई कीमत लगा नहीं पाया। ये एक हीरा है जिसका नाम है कोहिनूर। वहीं कोहिनूर जो हिन्दुस्तान के पाताल से निकला था। जो सैकड़ों साल के सफर के बाद ब्रिटेन की महारानी के मुकुट में कैद है। कोहिनूर फारसी भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब होता है रोशनी का पहाड़। कोहिनूर भारत के खदान से निकला था और भारत का ही है। लेकिन करीब 162 साल से ये हीरा ब्रिटेन की महारानी के ताज में चमक रहा है। कोहिनूर हीरा भारत के आंध्र प्रदेश के कुल्लूर की खान से निकला था। इससे पहले ये हीरा पंजाब के महाराज दलीप सिंह के पास था।  महाराजा दलीप सिंह ने ये हीरा ब्रिटेन की महारानी के सामने सरेंडर करना पड़ा था। कोहिनूर को जीतने के बाद ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने कहा था कोहिनूर सदियों से भारत पर विजय का प्रतीक रहा है और अब ये हीरा अपनी सही जगह पर पहुंच चुका है। 1877 में इस हीरे को ब्रिटेन के खजाने में शामिल किया गया था। 1891 में लंदन के हाइड पार्क में कोहिनूर की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। 1852 में इस हीरे को महारानी विक्टोरिया के पति प्रिंस अलबर्ट की उपस्थिति में फिर से तराशा गया। इस हीरे को क्वीन मदर्स क्राउन में जड़कर टॉवर ऑफ लंदन में रखा गया है। तिलक और गांधी की जिंदगी से निकला स्वराज का सपना साकार हुआ। देश से यूनियन चेक उतर गया, तिरंगा लहर गया। लेकिन आजादी के 75वें साल में भी इतिहास उसी दहलीज पर खड़ा है कि कब कोहिनूर वापस भारत में लौटेगा। इसकी वापसी के भी कई प्रयास हुए लेकिन सभी विफल रहे हैं। पाकिस्तान भी इस हीरे पर अपना दावा करता है।

देशों को अपनी संपत्ति वापस करने का अधिकार 

स्वदेशी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र का डेक्लिरेशन इसे संबंधित देश को पुनः प्राप्त करने का अधिकार देने के साथ ही संग्रहालय को पूर्व और उचित सहमति के बिना ली गई संपत्ति को वापस करने के लिए बाध्य करता है। वास्तव में यह अदालतों द्वारा मान्यता प्राप्त है। इंग्लैंड, आयरलैंड और अमेरिकी की अदालतों ने  गलत तरीके से हासिल की गई कलाकृतियों को लौटाने के पक्ष में फैसला दिया। उन्होंने कहा है कि अन्य देशों का उन मदों पर प्रभुत्व है जो मानव अधिकार संधियोंके तहत गठित इन दावों का समर्थन करते हैं। लेकिन ब्रिटेन ने अपने कानों में रूई डाल रखी है। 

-अभिनय आकाश