असम चुनाव में क्यों खास हुआ तरुण गोगोई फैक्टर? भुनाने में जुटी भाजपा

By अंकित सिंह | Mar 22, 2021

देश में एक केंद्र शासित प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। असम में भी विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। असम में मुख्य मुकाबला भाजपा गठबंधन बनाम कांग्रेस गठबंधन के बीच है। हालांकि अब तक के जो सर्वे आ रहे हैं उसमें भाजपा को बढ़त हासिल है। परंतु कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन उसे कड़ी टक्कर दे रही है। यही कारण है कि अब भाजपा विकास के साथ-साथ असम के भावनात्मक मुद्दे को भी उठाने लगी है। इन सबके बीच सबसे खास बात यह है कि भाजपा को अब कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की भी याद आने लगी है। सवाल ये उठता है कि जिस तरुण गोगोई के 15 साल के सत्ता को कोसकर भाजपा शासन में आई थी, अब वही तरुण गोगोई भगवा पार्टी को क्यों याद आ रहे हैं? इसके पीछे भाजपा की रणनीतिक चाल है। फिलहाल भाजपा तरुण गोगोई को राज्य की अस्मिता के प्रतीक के रूप में पेश कर रही है। जब तक तरुण गोगोई जिंदा थे तब तक वह भाजपा के निशाने पर रहे। लेकिन अब वह नहीं है तो भगवा पार्टी चुनावी नफा-नुकसान को ध्यान में रखते हुए उन्हें असम के अस्मिता से जोड़ रही है।

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लेकिन सवाल यही है कि आखिर भाजपा के लिए तरुण गोगोई इतने अहम क्यों हो गए है? तरुण गोगोई असम के उन दिग्गज नेताओं में से हैं जिनका राजनीतिक कद काफी बड़ा रहा है। उनके कद के राज्य में गिने-चुने नेता ही हुए हैं और वर्तमान परिस्थिति में देखें तो फिलहाल कोई नहीं है। तरुण गोगोई के ही चेहरे पर कांग्रेस लगातार 2006 से 2016 तक असम में सरकार में रही। तरुण गोगोई को असम को मुख्यधारा में लाने का श्रेय दिया जाता है। असम के विकास को लेकर उनकी प्रतिबद्धता को भी चिन्हित किया जाता है। इसके अलावा दशकों से चले आ रहे असम में खूनी हिंसा का दौर अगर खत्म हुआ और अमनचैन लौटा तो वह भी तरुण गोगोई के शासनकाल में। यही कारण है कि असम में उनकी एक खास पहचान रही है। तरुण गोगोई की यह बातें शायद भाजपा कभी चुनाव प्रचार में ना कहे। भाजपा तरुण गोगोई को लेकर चुनाव प्रचार में क्या कह रही है उसे हम आपको बताते हैं। 

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भाजपा तरुण गोगोई को असम की अस्मिता बता रही है। हालांकि या यूं ही नहीं है। दरअसल, तरुण गोगोई अहोम समाज से आते हैं। यह समाज खांटी असमिया पहचान से जुड़ा हुआ है। असम के ऊपरी हिस्से में इस समाज का अपना दबदबा है। एक कहावत है कि जिसने ऊपरी असम को जीता, सरकार उसी की बनेगी। राजीव गांधी के समय हुए असम समझौते के बाद से असमिया अस्मिता की भावना राज्य में लगातार मजबूत हुई है। इसी भावना की वजह से हमने सीएए के खिलाफ बाकी असम की तुलना में ऊपरी असम में ज्यादा विरोध देखा गया। इसी विरोध की वजह से ऊपरी असम में भाजपा के लिए राह मुश्किल हो रही है। सीएए को लेकर ऊपरी असम के लोगों में नाराजगी है। इसी नाराजगी को दूर करने के लिए भाजपा तरुण गोगोई के नाम का इस्तेमाल कर रही है। इसी नाराजगी को दूर करने के लिए भगवा पार्टी असम अस्मिता की बात कर रही है। कांग्रेस तथा तमाम दूसरे दलों पर राज्य में घुसपैठ को बढ़ावा देने का भी आरोप लगा रही है।

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भाजपा को कांग्रेस पर हमला करने का एक और मौका मिल गया है। असम चुनाव में कांग्रेस ने एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन किया है। एआईयूडीएफ के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल बंगाली मुसलमानों को संरक्षण देने की वकालत करते रहे है। हालांकि, असम के मूल लोग बंगालियों की घुसपैठ के सख्त खिलाफ रहे हैं। इसी भावना को भाजपा आगे बढ़ा रही है। भाजपा कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन कर उसने असम की संस्कृति को खतरे में डाला है। भाजपा खुलकर यह कह रही है और हर मंच से कह रही है कि जिस एआईयूडीएफ के साथ तरुण गोगोई ने कभी भी गठबंधन नहीं किया उसी के साथ कांग्रेस इस वक्त चुनाव में है। आपको बता दें कि जब तक तरुण गोगोई का असम में प्रभाव रहा तब तक कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच किसी भी प्रकार के गठबंधन नहीं हुआ। हालांकि, कांग्रेस अब तरुण गोगोई के बेटे और सांसद गौरव गोगोई को आगे कर रही है। गौरव गोगोई भाजपा के इस दावे पर पलटवार करते हुए यह कह रहे हैं कि राज्यसभा चुनाव के वक्त ही एआईयूडीएफ के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो गया था और उस वक्त तरुण गोगोई जिंदा थे।

 

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